किस्मत का फेर – संगीता त्रिपाठी   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  उफ़्फ़ इस जंगली बेल के साथ मै कैसे जीवन बीता सकता हूँ, ऊँची साड़ी, होठों के बाहर तक फैली लिपस्टिक, राघव ने चिढ़ कर मुँह फेर लिया।

जूली की करीने से लगाई गई लिपस्टिक और आँखों में लगाया आई -लाइनर याद आ गया।और एक ये महारानी हैं जो ना साड़ी ठीक से पहन पाती , ना मेकअप कर पाती और तो और, खाना बनाना भी नहीं आता, पर खाने के टाइम ही -ही करते दाँत निकालते आ जाती हैं।

राघव मन ही मन इस बालिका वधु बेला को देख दाँत पीस रहा। जो दस दिन पहले उसकी पत्नी बन कुसुम सदन में आई हैं।राघव को अपनी सहपाठी जूली बहुत पसंद थी। दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे। जूली एक खूबसूरत व्यक्तित्व की मालकिन, कितनी सुघड़ता से तैयार होती थी और कहाँ ये जंगल से लाई गई जंगली बेल…, राघव का मन और खट्टा हो गया.., किस्मत का फेर है, जो उसके हिस्से खूबसूरत फूल नहीं जंगली बेल आई…।पिता के वचन ने उसके प्रेम की आहुति दे दी। जूली ने उसको कितना बुरा -भला कहा था।राघव सर झुकाये सुनता रहा।

   राघव एक खूबसूरत व्यक्तित्व का स्वामी और कहाँ ये जंगली सी बेला, पता नहीं पिताजी ने क्या देखा इसमें। राघव और उसकी माँ कुसुम जी को बेला बिल्कुल पसंद नहीं थी। पर राघव के पिताजी श्याम बाबू अपने मित्र मनोहर जी को वचन दिये थे उसकी बेटी को अपनी बहू बनायेंगे।

मनोहर जी ने किसी समय श्याम जी की बहुत मदद की थी। समय चक्र बदला, श्याम बाबू आर्थिक रूप से संपन्न हो गये पर मित्र को दिया वचन भूले नहीं। राघव और कुसुम जी के हठ ने भी उनको अपने निर्णय पर से हटने नहीं दिया।राघव ने जी तोड़ कोशिश की थी विवाह टालने की, पर श्याम बाबू के आगे उसकी एक ना चली।शुभ मुहर्त में दोनों का विवाह हो गया।

     चौबीस साल के राघव को सोलह साल की अलबेली बेला में कोई गुण ना दिखता। जब से शादी हुई चिढ़ कर राघव ने अपने कमरे में सोना बंद कर दिया। एक दिन कपड़े लेने गया तो देखा पूरी अलमारी साड़ी -ब्लाउज़ से भरे थे, उसके कपड़े एक किनारे पड़े थे।राघव और गुस्सा हो गया। उधर कुसुम जी भी बेला को डांटने -फटकारने का कोई मौका ना छोड़ती।

बस पूरे घर में कोई उसे स्नेह करता तो श्याम बाबू और राघव की छोटी बहन रजनी, जो बेला की हमउम्र थी।कैसी विडंबना थी एक ही उम्र की दो लोग, एक कन्या हैं दूसरी विवाहित हो रिश्तों की उम्र जीने लगी।शायद यही भाग्य या किस्मत होती हैं, तभी तो एक उमंगों से भरी थी, दूसरी कर्तव्यों की बलि वेदी पर अरमानों की आहुति दे रही थी…।

    इतने दिनों में ना राघव ने बेला से बात करने की कोशिश की ना ही बेला ने राघव से बात करने की कोशिश की। बेला को लगता वो यहाँ मेहमान हैं, अब तो बाबूजी के आने का समय हो रहा। फिर इन सबसे पीछा छूट जायेगा।

हाँ यहाँ वाले बाबूजी और रजनी जरूर बहुत याद आएंगे। बेला ने तो सुना था पति तो बहुत प्रेम करते हैं, फिर उसका पति उससे दूर क्यों भागता हैं।मेरी बला से, ना बात करें, मै कौन सा मरी जा रही हूँ… कह मुँह फेर सो गई।

         आज सुबह जब बेला ने बाबूजी की आवाज़ सुनी दौड़ कर पिता के गले से लग गई। मनोहर जी की ऑंखें भर आई, विवशता में जल्दी शादी कर दी। बिटियाँ में अभी बचपना हैं। कुसुम जी के तेवर देख समझ गये बेला अभी ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पाई।

बेला ने मायके जाते समय सास -ससुर के पैर छुये , तब मनोहर जी ने कहा…दामाद बाबू से भी मिल आओ। राघव के पास जा बेला बोली -हम जा रहे जी, अब आप अपने कमरे में रहिएगा आराम से। कह बिना जवाब सुनें पिता के पास आ खड़ी हुई।

घर पहुँच बेला मस्त हो गई, पर जाने क्यों रह रह कर उसे राघव याद आ रहा था.।

 उधर राघव अपने कमरे में आया तो पहले तो खूब खुश हुआ। अच्छा हैं आफत से जान छूटी

,चलो जूली से मिल आऊंगा।

अपनी पसंदीदा रेस्टोरेंट में जूली से मिलने का प्लान कर, जब अपनी जगह रिजर्व कराने पहुंचा तो उसे देख कर धक्का लगा, जूली किसी और के साथ हाथों में हाथ डालें वहाँ बातें करने में व्यस्त थी।

 राघव उलटे पैर वापस आ गया। ठीक भी तो हैं उसने शादी कर लिया तो जूली को भी अपनी लाइफ में आगे बढ़ने का अधिकार हैं, पर जूली की वो हँसी.. “अरे उस बुद्दू के साथ तो मै टाइम पास कर रही थी, पैसे वाला था राघव, मैंने सोचा आराम से जिंदगी कटेगी, पर अपने पिता क सामने वो स्टैंड ही नहीं कर पाया। कावर्ड कहीं का,अच्छा ही हुआ।”… फिर जूली और उसके साथी की सम्मिलित हँसी, कानों में अभी भी पीड़ा दे रहे। क्या भावनाओं का कोई मूल्य नहीं। अब राघव को जंगली बेल और कृत्रिम सजी संवरी बेल में अंतर समझ में आ गया।

      घर आ अपने कमरे में गया तो कुछ सूनापन लगा। रोज तो रजनी और बेला की हँसी से घर गुलजार रहता था। अपने मन में उमड़ते विचारों को झटक कर, राघव ने सोचा -अच्छा हुआ चली गई।कुछ दिन तो चैन से कटेंगे

 बेला की खिलखिलाहट हर जगह गूंजती थी अतः सबको उसकी कमी खल रही थी। दस दिन बाद राघव को उदास देख श्याम बाबू को लगा बेटा बहू के बिना उदास हैं। अतः बेला को लिवा लाने को बोला।

राघव बेला के मायके पहुंचा तो सास -ससुर ने उसकी बड़ी आव -भगत की। पहली बार दामाद घर आया। राघव की नजरें बेला को ढूढ़ रही थी

कमरे में पर्दे को पकडे शरारती मुस्कान से वो राघव को ही देख रही थी। दस दिन की जुदाई ने दोनों को एक अनकहे सूत्र में बांध दिया था। उस दिन तो नहीं हाँ विदा के बाद ट्रेन में बैठ राघव ने बेला से बात करना शुरु कर दिया, धीरे धीरे उनकी फ्रेंडशिप धीरे धीरे गहरी होती गई।

 घर तक पहुंचते बेला और राघव एक दूसरे के पक्के दोस्त बन गये।जब दिल मिल जाता तो दोस्ती पक्की होने में देर नहीं लगती। आखिर जंगली बेल की खुश्बू ने राघव को अपना दीवाना बना ही दिया।

अब राघव को अपनी किस्मत अच्छी लगने लगी तभी तो उसे बनावटी प्यार नहीं, बल्कि बेला का  निश्छल प्यार मिला।

  घर पहुंचे तो इस बार बेला के बदले रूप को देख कुसुम जी चकित थी। पास बुला बोली तू पहले जैसी थी, वैसी ही रह, तू और रजनी दोनों ही तो इस घर की जान हो। एक बार फिर कुसुम सदन में खुशियाँ लौट आई। बेला और रजनी के साथ अब राघव के ठहाके भी गूंजते। श्याम बाबू और कुसुम जी अपनी बगिया के इन फूलों को देख खुश होते रहते..,और अपनी किस्मत को सराहते..।

                        ……. संगीता त्रिपाठी 

     #किस्मत          

 StoryP Fb S

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!