किराने की दुकान -नेकराम Moral Stories in Hindi

नेकराम मेरी बात सुन मैं सोच रही हूं एक किराने की दुकान खोल लूं
फिर हमें धनिया मिर्च मसाले बाजार से नहीं खरीदने पड़ेंगे चीनी और चाय की पत्ती भी आजकल बहुत महंगी हो गई है दाल बेसन आटा साबुन कोलगेट सभी सामानों पर हर साल एक या दो रूपया दुकानदार बढ़ा ही देते हैं
जब अपनी किराने की दुकान होगी तो अपनी ही दुकान से हमें हर सामान सस्ता मिलेगा,, मां ने एक ही सांस में सारी बात कह डाली,,
फिर मां चुप हो गई कुछ देर सोचती रही फिर अचानक बोली, किराने की दुकान खोलने के लिए अभी रूपयों का इंतजाम नहीं है जब तक तू कहीं नौकरी कर ले ,,
नौकरी की तलाश में मैं दिल्ली के एक प्राइवेट बीएल कपूर अस्पताल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए पहुंचा किसी रिश्तेदार ने अस्पताल का पता बता दिया था और मैनेजर का मोबाइल नंबर ,,,,
अपना आधार कार्ड लेकर अस्पताल पहुंचा तीसरी मंजिल पर एक कमरा था मैनेजर वही मिल गया उसने बताया गार्ड की भर्ती खत्म हो चुकी है हाउसकीपिंग की भर्ती चालू है,, मरता क्या ना करता,, शादीशुदा था घर में दो
बच्चे हो चुके थे नौकरी की सख्त जरूरत थी किराने की दुकान खुलने में अभी समय लगेगा इसलिए मैं हाउसकीपिंग की नौकरी के लिए तैयार हो गया,,,
वहां मुझे अभी एक महीना भी पूरा ना हुआ था की वहा एक सफाई वाले मित्र ने मुझे बताया नेकराम हर दो महीने बाद हमें नई वर्दी मिलती है आगे से यह वर्दी हमारे लिए मुफ्त आती है किंतु यहां का मैनेजर वर्दी के रुपए
हमारी सैलरी से काट लेता है,, जो वर्दी हमें मुफ्त देता है वह अधिकारी आज इसी अस्पताल में आया हुआ है चलो मैं तुम्हें दूर से उसका चेहरा दिखाता हूं उसने मुझे चेहरा दिखा दिया,,
मैं उन अधिकारी के पास पहुंचा,,सर नमस्ते,, मैं इस अस्पताल का सफाई कर्मचारी हूं क्या आप हमें वर्दी मुफ्त में बाटते हैं ,,हां हम मुफ्त देते हैं ,, यह तो समाज सेवा है,, हम हर अस्पतालों में गरीबों की मदद करते हैं तब
मैंने कहा सर आप लोगों की मदद करने का क्या फायदा इस अस्पताल का मैनेजर तो वर्दी के पैसे हमारी सैलरी से काट लेता है
तब अधिकारी बोला,,, यह कैसे हो सकता है ,,
,,, मिलवाओ कौन मैनेजर है ,,, मैं मैनेजर से बात करता हूं ,,,इस अस्पताल में कई सालों से हम हाउसकीपिंग वालों को मुफ्त वर्दी देते आ रहे हैं ,,
पुरानी वर्दी मैली हो जाती है और उनमें कीटाणु भी लग जाते हैं क्योंकि आप लोगों का काम साफ सफाई का है आप लोग पूरी मेहनत से अस्पताल को साफ सुथरा और चमका कर रखते हैं आप लोग बीमार ना पड़ो इसलिए हर दो महीने में हम नई यूनिफॉम देते हैं
ताकि आप लोग स्वस्थ रहो और यहां कैंटीन में कम रूपयों में आप लोग पेट भर के खाना खा सको तब मैंने कहा मैनेजर तो कहता है कि कैंटीन सिर्फ डॉक्टरों और नर्स के लिए है इसलिए हम अपना खाना घर से बांधकर
लाते हैं ,,, अधिकारी तुरंत मैनेजर के पास पहुंचा तो मैनेजर ने बताया,,
इस अस्पताल में और भी कर्मचारी है आपने एक ही वर्कर की बात क्यों मानी तब अधिकारी ने हर सफाई कर्मी से अलग-अलग बात की सबका एक ही उत्तर था ,, सर वर्दी मुफ्त मिलती है,, बयान लेने के बाद अधिकारी
गाड़ी में बैठकर अस्पताल से बाहर चला गया तब मैंने सब सफाई कर्मियों से पूछा तुमने झूठ क्यों बोला तो वह बताने लगे हम गरीब लोग किराए के मकान में रहते हैं बड़ी मुश्किल से यह नौकरी मिली है मैनेजर ने ही हमें नौकरी दी है फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर हम कोई विवाद खड़ा नहीं करना चाहते थे ,, मैंने शांतिपूर्वक कहा तुम लोगों ने पूरे अस्पताल में मुझे झूठा साबित कर दिया और मैंने उसी दिन वहां से नौकरी छोड़ दी
इस बात का ,, मां,, को पता नहीं था,,
और मैं पहुंच गया दिल्ली के राजन बाबू अस्पताल में वहां टीवी के मरीज ही भर्ती होते हैं पहले तो मैं डर गया कहीं मुझे टीवी ना हो जाए फिर सोचा मौत से क्या डरना ,, मौत तो एक दिन आनी ही है पहले दिन ही मेरी ड्यूटी मुर्दाघर में लगा दी गई यह मेरे लिए एक चुनौती थी ,, परिवार वालों को मैंने बताया मेरी ड्यूटी अस्पताल के मेन गेट पर लगी है ताकि मां को घबराहट ना हो,, बीवी बच्चे डर ना जाए ,, कि मैं मुर्दाघर का सिक्योरिटी गार्ड हूं ,,
दोपहर 2:00 बजे से रात 10:00 बजे तक मेरी ड्यूटी मुर्दाघर में रहती थी ,,
मुर्दाघर में अभी महीना भी पूरा ना हुआ था की एक रात मुझे नाइट ड्यूटी के लिए रात 10:00 बजे रोक लिया गया वहां के सुपरवाइजर ने बताया रात का एक गार्ड अचानक छुट्टी पर चला गया है इसलिए नेकराम तुमको
वार्ड नंबर 16 में रुकना पड़ेगा मैं राजी हो गया,,
डंडा और टॉर्च लेकर में वार्ड नंबर 16 की तरफ चल पड़ा वहां मरीजों से मिला तो मरीज मुझे घूर-घूर कर देखने लगे जैसे मैं कोई भूत हूं ,, फिर मैंने मरीजों को बताया मुझें इस वार्ड की रखवाली के लिए भेजा गया है तब
एक मरीज मुंह पर कपड़ा रखकर मुझसे बोला 3 महीने से यहां भर्ती हूं ,, रात को यहां के आवारा कुत्ते मेरा खाना खा जाते हैं मैंने कई बार ईश्वर से प्रार्थना की,, है प्रभु ,, किसी गार्ड को भेज दो ,, ईश्वर ने हमारी प्रार्थना कबूल कर ली ,, सामने ही डॉक्टरनी का केबिन था तो मैं रात 11:00 बजे केबिन में चला गया चेकिंग करने कहीं यहां कोई आवारा कुत्ता तो नहीं छिपा है वहां कुर्सी पर नर्स ऊंघ रही थी मुझें देखा तो बोली ,, तुम कौन हो ,,तब मैंने
कहा यह वर्दी नहीं दिखाई देती ,,मैं एक सुरक्षा गार्ड हूं,
इस वार्ड का गार्ड आज छुट्टी पर है इसलिए उसके बदले आज मेरी ड्यूटी यहां लगी है तब नर्स कहने लगी एक साल तो मुझे हो गया इस वार्ड में ड्यूटी करते हुए नाइट में मैंने तो कभी यहां कोई गार्ड नहीं देखा तब मैंने कहा
ऐसे कैसे हो सकता है ,, रजिस्टर में तो यहां पर नाइट ड्यूटी वाले गार्ड के रोज हस्ताक्षर होते हैं,,
सुबह यह खबर मैंने सबसे बड़े अस्पताल के सरकारी अधिकारी को बताई ,, तब पता चला,, ,(शंकर काल्पनिक नाम,,) रात 10:00 बजे अस्पताल में आकर गार्ड रूम के रजिस्टर में ऑन ड्यूटी के साइन करता और
अस्पताल के पार्क में रात भर चादर ओढ़ कर सोता रहता सुबह 6:00 बजे गार्ड रूम जाकर ऑफ ड्यूटी के हस्ताक्षर करके घर निकल जाता पिछले 1 साल से वह वार्ड नंबर 16 में कभी गया ही नहीं था–
खोजबीन करने पर पता चला नाइट के बहुत से गार्ड नाइट ड्यूटी में अपनी पोस्ट पर होते ही नहीं थे कुछ गार्ड तो हस्ताक्षर करके घर चले जाते थे सुबह वापस वर्दी पहनकर गार्ड रूम में आकर साइन करते थे अधिकारी ने
सबको नौकरी से बाहर निकाल दिया गार्ड के सुपरवाइजर को इस बात की जानकारी थी वह उन गार्डो से महीने के ₹2000 रूपए प्रतिमाह लिया करता था ,,
कुछ दिनों के बाद अस्पताल के उन अधिकारी ने सुपरवाइजर को भी अस्पताल में आने से मना कर दिया तब एक नया सुपरवाइजर रखा गया उसने मुझे सभी गार्डो की देखरेख और निगरानी का जिम्मा सौंप दिया,,
तीन दिन के भीतर मैंने सारी जानकारी इकट्ठी करके नए सुपरवाइजर को बताई ,, सर यहां जितने भी सिक्योरिटी गार्ड है घर से खाना नहीं लाते ,, इस अस्पताल के मरीजों का खाना खा जाते हैं ,कुछ कहो तो अकड़ते हैं डॉक्टर से हर दो दिन में महंगे महंगे टॉनिक की शीशियां घर ले जाते हैं ,, दूर-दूर से आए टीवी के मरीजों को एडमिट करवाने के नाम पर मुंह मांगा पैसा मांगते हैं अस्पताल के पार्कों में लगे पेड़ों से ढेर के ढेर आम तोड़कर
छुट्टी के वक्त अपने थैलों में भरकर घर ले जाते हैं ,,यहां तक की मरीजों का नाश्ता भी नहीं छोड़ते और मरीज बेचारे भूखे ही रह जाते हैं और कभी-कभी मरीजों को बचा खुचा ही नाश्ता मिल पाता है ,,
किसी सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे सुपरवाइजर से बातें करते हुए सुन लिया
कि मैंने उनकी पोल खोल दी है उस दिन के बाद से सब सिक्योरिटी गार्ड मेरे दुश्मन बन गए फिर मैंने उस अस्पताल से निकलने में ही अपनी भलाई समझी ,,
मां ने बहुत डांटा,, तुझे अस्पताल से नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी वहां फ्री में खाना भी मिलता था ,, तब मैंने कहा वह खाना मरीजों का होता था, मरीज का दूध और उनके फल खाकर में तगड़ा नहीं होना चाहता
तुम्हारी किराने की दुकान का पैसों का इंतजाम हुआ या नहीं हुआ
मां ने कहा ठीक है इसी महीने किराने की दुकान खोल देती हूं और दुकान खुल गई,,
किराने की दुकान और मकान से नेकराम को बेदखल करने के लिए किसने रची साजिश जानने के लिए पढ़ें
कहानी कलयुग की —
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना

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