खुद्दार – नम्रता सरन “सोना”

 

“दादाssss” मम्मी की चीख से सारा घर गूंज उठा।

सभी दौड़े आए, वहां का दृश्य देखकर हृदय फट गया, जोधपुरी सूट में दादा का निर्जीव शरीर पड़ा था।

 “ओह, दादा ने बात अपने दिल पर ले ली”मम्मी ने रुंधी आवाज़ में कहा।

सोना की आंखों के सामने बीते कल का दृश्य एक झटके में गुजर गया।

“सोना बाई, जे लो, गरम गरम जलेबियां लाया हूं, जल्दी से खा लो,सब ठंडी भाग जाएगी” सुबह-सुबह दादा की रौबदार आवाज़ कानों में गूंजी।

“दादा, क्यों ले आए, तनख्वाह मिली नहीं कि खर्चना चालू ” सोना ने कुछ डांटने के अंदाज़ में कहा।

“वो का है बाई, तनख्वाह पर बेटियन का पहला हक होता है, चलो-चलो, जल्दी से खा लो, कहीं बहनजी आ गई तो बे अलग डांटेगी” दादा ने जलेबियां प्लेट में निकालते हुए कहा।

सोना उनके प्यार भरे मनुहार को टाल नहीं पाई, पापा के जन्म के पहले से दादा यहां काम करते रहे हैं, रौबदार व्यक्तित्व, चाचा चौधरी सी कद-काठी और वैसा ही पहनावा,लट्ठ हमेशा साथ में रहता, मजाल है कि कोई घर पर तिरछी नजर डाले, दादा का दबंग अंदाज मोहल्ले में इनको सबसे खास बनाता था, अब तो दादा घर के सदस्य जैसे ही यहां रहते थे, एक बुजुर्ग की तरह सभी उनका सम्मान करते थे, उनकी यह आदत थी कि तनख्वाह मिलते ही वे कुछ न कुछ अवश्य लाते थे। उनसे मना करो तो कहते,आप लोग ही मेरा परिवार है, आपके लिए नहीं लाऊं तो किस पर खर्च करुं, सोना की मम्मी भी नाराज़ होती, तो कहते,बहनजी, आप हमारे और बिटिया के बीच में न आए, ये तो हमारा सूद है, सब इन्हीं का तो है। आज वे जलेबियां लाए थे,, और गर्म जोधपुरी कोट पहने थे।

“वाह, दादा,आज तो चमक रहे हो, सूट सिलवाया क्या?उनके नए सूट को देखते हुए सोना ने पूछा।



“हां बाई, सर्दी बहुत पड़ रही है, सोचा ई सौक भी पूरा कर लें”दादा ने कोट की जेब में हाथ डालते हुए शान से कहा।

तभी घर में कुछ हड़कंप सा मच गया, सुमन चाची का गले का हार नहीं मिल रहा, वे यहां एक विवाह में शामिल होने के लिए आईं थीं, खूब सारे ज़ेवर भी लाईं थीं, आज सुबह से ही घर सिर पर उठा रखा था, हार कहां गया।

“यहीं कहीं होगा सुमन, घर में से कहां जाएगा” मम्मी ने कहा।

“देखो, कहीं तकीए वकीए की नीचे रख कर तो नहीं भूल गई” पापा बोले।

“अरे जीज्जी, ये तुम्हारा दादा कैसा आदमी है, पूरे समय तो घर में ही मंडराता रहता है, तुम लोगों ने बहुत सिर चढ़ा रखा है,कही…”

“चुप करो सुमन, दादा कोई नौकर नहीं है,वह हमारे घर के सदस्य हैं, उनके बारे में भूलकर भी ऐसा मत सोचना”मम्मी ने सुमन चाची को चुप कराते हुए कहा।

“बाई, तुम तो जलेबी खाओ”दादा ने उनकी बातों से सोना का ध्यान हटाने की गरज से कहा। लेकिन उनकी बातों से दादा का चेहरा मुरझा गया था।वे भारी कदमों से चले गए। ऐसा लग रहा था कि उनके आत्मसम्मान पर काफी चोट लगी है।दोपहर तक चाची का हार मिल गया, उन्हीं की साड़ी में लिपटा हुआ रखा था।

“दादा.. दादा….”पापा की आवाज़ से सोना का ध्यान भंग हुआ।

पापा ,दादा के ठंडे शरीर को हिला रहे थे, लेकिन दादा नहीं उठे।

सोना की आंखों से आंसुओं की झड़ी चल पड़ी, आंसुओं की धुंधलाहट में सोना की नज़र एक डिब्बे पर पड़ी,

सोना ने उसे खोला, उसमें दादा की जमा पूंजी रखी हुई थी, जिसपर लिखा था “बिटिया की सादी काजे”

#आत्मसम्मान

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल म.प्र.

 

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