खून के रिश्ते – मंजू ओमर  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज खून के रिश्ते इतने पानी पानी क्यों हो गए हैं शायद वक्त का तकाजा है ।आज समय ही ऐसा आ गया है कि खून के रिश्ते अब रिश्ते नहीं रह गए हैं ।आज दस में से छह परिवार अपने बच्चों के बदलते रवैए से परेशान हैं । आइये आज एक सत्य घटना से आपको अवगत कराती हूं ।

                   सुधा की खुशी का आज ठिकाना नहीं था कारण बहू ने आज जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था। सपनों की दुनिया में बोल रही थी सुधा बच्चों को लेकर । खूब प्यार दूंगी बच्चों को खूब अच्छे संस्कार दूंगी बहू की सारी शिकायतें दूर कर दूंगी अब सारे गिले शिकवे दूर हो जायेंगे ।

           बेटे शिवम् की शादी को छै साल हो गए थे सुधा बराबर कहती रहती थी बेटा अब परिवार बढ़ाने की सोचो समय बहुत निकलता जा रहा है । ज्यादा समय निकल जाने पर फिर परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।और फिर प्रग्नेंसी में काफी दिक्कतें आती है लेकिन शिवम् के कानों पर जूं नहीं रेंगती थी ।शिवम् जब भी घर आता था सुधा और उसके पति शिवम् को यही बात समझाते रहते थे । सुधा ने भी मंदिरों में पूजा पाठ करते बस एक ही मन्नत मांगती रहती थी कि भगवान सद्बुदद्धि दो शिवम् को इनका परिवार भी भरा पूरा हो जाए ।

                    असल में शिवम और स्नेहा के शादी शुदा जिंदगी में खट-पट चलती रहती थी बहुत अच्छे संबंध नहीं थे दोनों के आजकल ये आम बात हो गई है ज्यादातर नये जोड़ों में ये समस्या बनी रहती है छोटी छोटी बातों को लेकर परेशानी होती रहती है । इसलिए दोनों परिवार बढ़ाने को एक मत नहीं होते थे । लेकिन सुधा का कहना था कि बच्चे हो जायेंगे तो तुम दोनों के बीच की दूरियां भी मिट जायेगी ।

फिर कुछ दिन बाद बेटा मां को तसल्ली देने लगा अच्छा देखता हूं कोशिश करता हूं। पता नहीं कोशिश भी कर रहे थे कि सुधा को झूठी तसल्ली दे रहे थे । छः महीने बाद बेटा कहने लगा कुछ प्राब्लम है डाक्टर से मिलना होगा । सुधा का माथा ठनक गया जो नहीं होना चाहिए था वो हो रहा है । सुधा ने मंदिरों में जाकर बहुत मन्नतें गिरहें की । ईश्वर ने सुना कि प्रार्थना सुनी तीन महीने बाद अच्छी खबर मिली कि बहू उम्मीद  से है । सुधा ने ईश्वर का धन्यवाद किया और फिर ढाई महीने बाद पता चला कि जुड़वां बच्चे हैं ।

सुधा ईश्वर का आभार करने से नहीं था रही थी कि कहां एक भी नहीं हो रहा था और कहां दो दो की सौगात दे दी । एक सपनों का संसार  बुनने लगी सुधा । बेटे बहू घर से बाहर रहते थे ।आज दिन बहू को सावधानी बरतने की सलाह देती रहती थी सुधा ।बहू का रवैया सुधा के प्रति अच्छा नहीं था फिर भी सब भूल कर बहू को बराबर फोन करती रहती थी सुधा । कभी बहू फोन उठा लेती थी तो कभी घंटी बजती रहती थी बात नहीं करती थी ।

फिलहाल,,,,,,,समय तेजी से निकलता रहा और आंठवा महीना आ गया फिर बेटे ने तय किया कि डिलीवरी घर पर करायेंगे यहां बड़े शहरो में सबकुछ बहुत दूर दूर होता है और मुझे आफिस से दस दिन से ज्यादा छुट्टी भी नहीं मिल पायेगी छोटे शहरों में सभी चीजें आसानी से मिल जाती है काम करने वाली भी आसानी से मिल जायेगी दूसरा बहू का मायका भी लोकल था तो सब तरफ से मदद मिल जायेगी ।

            आंठवा महीना लगते ही बेटा बहू घर आ गए । यहां सुधा का मकान ऊपर नीचे का था बहू को सीढियां चढ़ने को मना थी सुधा ने बहुत कहा बहू से कि नीचे रह लो तो अच्छे से देखभाल कर दूंगी और जो कुछ खाने का मन हो बता देना गर्म गरम बना कर खिलां दूंगी । सुधा की उम्र भी बासठ वर्ष हो रही थी इतना ऊपर नीचे नहीं हो सकता था लेकिन बहू न नहीं मानी और ऊपर जाकर टंग गई ।

फिर भी सुधा ने खूब अच्छे से देखभाल की समय समय पर सबकुछ करती रही तीन घंटे को एक नौकरानी भी लगा दी जो बहू का काम करें ।शिवम् कहने लगा डिलीवरी के बाद सालभर तक यही रहेंगे दो दो बच्चों के साथ बहुत मुश्किल होगी यहां आप लोगों की देख-रेख में थोड़े बड़े हो जायेंगे तो फिर वापस जायेंगे नौकरी भी आजकल घर से ही हो रही है । फिर डिलिवरी का समय नजदीक आया बहू ने एक बेटी और एक बेटे को जन्म दिया। सुधा को तो जैसे खुशियों का संसार मिल गया लाख लाख धन्यवाद करने लगीं ईश्वर का ।

               सुधा ने खुशी खुशी खूब तैयारी कर रखी थी खूब सारे छोटे छोटे कपड़े स्वेटर खूब मेवा मसाला मंगा कर रखा था ये बना कर खिलाऊंगी ऐसा करूंगी वैसा करुंगी वगैरह वगैरह।बहू घर आ गई अस्पताल से सुधा ने एक नौकरानी रख ली थी दिनभर को । सबकुछ बड़े ही सलीके से सुधा निपटाती रही घर का और बहू का काम ।

लेकिन बहू यहां रहना नहीं चाहती थी वह शिवम् से सुधा के खिलाफ शिकायत लगाने लगी कि मम्मी जी रात भर सोती रहती है बच्चों को नहीं देखती , खाना ठीक से बना कर नहीं देती ये नहीं करती वो नहीं करती शिवम् का भी ब्रेन वाश हो गया और शिवम् भी सुधा से शिकायत करने लगा जब आप कर नहीं सकती थी तो यहां बुलाया क्यों जबकि घर आने का फैसला शिवम् का ही था सुधा का नहीं ।

बच्चों और बहू को लेकर रोज ही शिवम् सुधा से उलझने लगा । रातभर सोती रहती है अब बताओ सारा घर का काम बहू और बच्चों की देखभाल करने के बाद कुछ आराम की जरूरत तो सुधा को भी थी न । सुधा का मन बहुत आहत हुआ शिवम् यही पर घर से आफिस का काम करता रहा और फिर एक दिन शिवम् ने स्नेहा और बच्चों को नानी के घर छोड़ आया ।

शनिवार और रविवार को शिवम् की छुट्टी रहती है वो भी वही चला जाता । सुधा बच्चों को देखने को तरसने लगी ।आज आठ महीने के बच्चे हो गए लेकिन सुधा ने एक बार भी नहीं देखा सबका जिम्मेदार बेटा सुधा को ही मानता है ।बहू का पक्ष लेकर लडने लगता है ।और अब शिवम् स्नेहा और बच्चों को लेकर अपने शहर चला गया वहां बच्चों के देखभाल के लिए बच्चों की नानी है ।अब शिवम् भी बात नहीं करता सुधा से ।

कहता है आप खुश नहीं हो मेरी खुशी से ।अब कोई बताए जिसका परिवार बसाने के लिए सुधा ने मंदिर मंदिर मन्नतें मांगी थी आज बेटे की खुशी से खुश नहीं हैं । कैसा जमाना आ गया है खून पानी हो गया है ऐसी कहावत तो सुनी थी आज देख भी लिया ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

11 अक्टूबर 23

 

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