खोल दिया साहब – प्रेम बजाज

राशिद खान को जैसे ही स्ट्रेचर से उतारकर रखा उसके जिस्म में दर्द की लहर उठी, उसे लगा जैसे किसी ने उसके जिस्म की एक-एक हड्डी तोड़ दी हो। 

हिलना-डुलना बहुत मुश्किल लग रहा था, फिर भी हिम्मत करके उसने उठने की कोशिश की तो किसी हाथ ने उसे पकड़ कर रोक दिया।

 

एक आवाज़ कानों में पड़ी,” आप तकलीफ़ ना करें उठने की, आपकी लगभग सभी हड्डियां टूट चुकी है, हड्डियों को जोड़कर बांध दिया है, कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएंगे”

 

राशिद खान की पलकें तक नहीं खुल पा रही थी।

उसने दिमाग पर ज़ोर दिया कि वो कहां था, क्या हुआ उसके साथ? अत्याधिक ज़ोर डालने के कारण उसका सर दर्द से फटने लगा और वो बेहोश हो गया।

 

कुछ घण्टों बाद जब फिर से होश आया तो दिमाग पर ज़ोर डालकर सोचा तो उसे अपनी बहन की याद आई, और वो चिल्ला उठा,” नूरी नूरी कहां हो?”  

 

इधर-उधर देखा आसपास कोई भी नहीं था, उस कमरे में वो अकेला ही था,” या अल्लाह ये  मैं कहां हूं और मेरी बहन नूरी कहां गई?”

 

याद करने की कोशिश करने पर उसे याद आया कि वो नूरी और अम्मी के साथ था, उसी के सामने ही तो उसकी अम्मी का सर कलम कर दिया गया था, जब वो नूरी और राशिद को बचाने की कोशिश कर रही थी, उसके मुंह से बार-बार यही निकल रहा था,” राशिद नूरी को लेकर भाग जाओ, वरना ये ज़िन्दा नहीं छोड़ेंगे तुम दोनों को, मेरी बच्ची की अस्मत बचालो राशिद”

 

राशिद नूरी को लेकर बेतहाशा भागता है, भागते-भागते ठोकर लगती है और वो गिर गया, ऐसा लगा जैसे उसके सर पर कुछ लगा, उसके बाद उसे कुछ पता नहीं, अब जब उसे होश आई, जैसे तैसे उठ खड़ा हुआ नूरी को ढूंढने। लेकिन उठते ही गिर पड़ा,क्योंकि टांग टूट चुकी थी।



 

 उसकी आवाज सुनकर कुछ लोग कमरे की तरफ दौड़े, राशिद को देखकर बोले,” अभी आप ठीक से चल नहीं पाओगे, अगर किसी को सन्देश भिजवाना हो तो पता बता दो हम सन्देश भिजवा देंगे”

 

“मेरा कोई नहीं, मां को मेरे सामने की कत्ल कर दिया, बहन थी साथ उसका पता नहीं उसे ढुंढना है” 

 

वहां उसके आसपास लगभग  5 – 6 नौजवान थें, जिसमें से 4 ने पुलिस जैसी वर्दी पहनी हुई थी, उसे देखकर तसल्ली हुई कि वो सही जगह पर है, उसने अपनी बहन का हुलिया बताया,” साहब नूरी नाम है मेरी बहन का, 17 साल की है, रंग दूध से भी साफ, लबों के पास एक मस्सा है, लम्बी गर्दन, बड़ी-बड़ी आंखें, भूरे बाल, मेरी इकलौती बहन है सर उसे ढुंढ कर लाइए सर खुदा आपका भला करे” 

 

” चिन्ता ना करें, हम जल्द ही उसे ढुंढ लाएंगे”

वो सब नौजवान दिन-रात बेसहारा को सहारा देने, लोगों को बचाने , उन्हें उनके ठिकाने तक पहुंचाने में लगे हुए थे, कि एक दिन जैसे ही वो गाड़ी लेकर जाते हैं, तो रास्ते में एक लड़की दिखाई दी जो गाड़ी की आवाज़ सुनते ही दुबक कर झाड़ियों की तरफ भाग जाती है।

 सभी नौजवान उसके पीछे भागते हैं और जैसे ही उसे पकड़ा, वही गोरा – चिट्टा रंग, लबों पे तिल, बड़ी- बड़ी आंखें, भूरे बाल, उसका नाम पूछने पर जब वो नहीं बताती तो उसे विश्वास दिलाते हैं कि वो महफूज़ है, तब वो बताती है कि वो ही राशिद की बहन नूरी है।

उसे अपने साथ गाड़ी में ले आते हैं, और खाना खिलाकर एक नौजवान अपना कोट उसे देता है, क्योंकि उसके कपड़े जगह-जगह से फटे हुए हैं,जिससे वो उलझन महसूस कर रही थी।

 

इधर राशिद रोज़ उनसे पूछता कि उसकी बहन की कोई ख़बर मिली? दो दिन बाद राशिद सोया हुआ था तो उसे गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज़ आई, एक पैर से लंगड़ाता हुआ बाहर की तरफ भागता है, ” सर मेरी बहन की कोई ख़बर मिली”?  

 

“नहीं , अभी कुछ खबर नहीं, मिल जाएगी तो बता देंगे “

 

कुछ दिन के बाद अचानक आधी रात के वक्त कुछ आवाज़ें आती है, और वो उठकर बाहर गया तो गाड़ी चली जाती है, वो गाड़ी का पीछा करता हुआ दरिया तक पहुंच गया।

 

 देखा कुछ नकाबपोश गाड़ी से कुछ निकालकर दरिया की तरफ फेंककर चले जाते हैं, और वो दौड़कर दरिया की तरफ गया तो देखा कि वो नूरी थी।

 

वो खुशी से रोने लगता है, “नूरी, नूरी आंखें खोलो नूरी, मैं हूं राशिद, आंखें खोलो” वो उसकी नब्ज़ टटोलने लगता है, और खुशी से चिल्ला उठता है, मेरी बहन ज़िन्दा है, मेरी नूरी ज़िन्दा है,  इतने में नूरी इज़ारबंद खोल देती है और सलवार नीचे करके कहती हैं, ” खोल दिया साहब” 

 

 

 

प्रेम बजाज©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

 

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