खिचड़ी-दलिया—कहानी-देवेन्द्र कुमार

यह आज पाँचवीं बार था जब पापा ने अजीत को मना किया था। कई दिन से अजीत देख रहा है कि जब भी वह घूमने जाने की बात कहता है, पापा मना कर देते हैं। कह देते हैं, “फिर चलेंगे। आज समय नहीं है।” अजीत माँ की ओर देखता है तो वह भी कह देती है- “ठीक है बेटे, फिर कभी चलेंगे। अभी पापा को कुछ जरूरी काम है।”

अजीत को लगता है, पापा को उसकी परवाह नहीं, इसीलिए हर बार उसकी बात टाल जाते हैं। पापा से कहने की हिम्मत नहीं हुई, पर माँ से तो उसने कह ही दिया, “पापा ऐसा क्या जरूरी काम करते हैं।” माँ लता ने गंभीर स्वर में कहा, “नहीं बेटा, पापा को गलत मत समझो। वे रात में भी देर से आते हैं।” इस पर अजीत और भी चिढ़ गया। मम्मी भी पापा की ही तरफदारी कर रही थीं। वह घर में छोटा है न इसलिए मम्मी-पापा उससे कुछ भी कह देते हैं। और जैसे मम्मी ने भी उसे चिढ़ाने की ठान ली है। अजीत खिचड़ी-दलिया पसंद नहीं करता, क्योंकि बुखार आने पर माँ खिचड़ी-दलिया ही खिलाती हैं। तब तो न चाहने पर भी उसे जबरदस्ती खाना पड़ता है। पर आजकल शाम के समय वह घर में रोज खिचड़ी-दलिया बनते देखता है।

वह कह देता है, “माँ, यह रोज खिचड़ी-दलिया क्यों बनाती हो? मैं नहीं खाऊँगा।”

“ठीक है, तुम मत खाना। मुझे पता है तुम्हें खिचड़ी-दलिया अच्छा नहीं लगता।” माँ कह देती हैं।

1

अजीत हैरान रह जाता है। खिचड़ी-दलिया वह खुद नहीं खाता, मम्मी-पापा भी पसंद नहीं करते। फिर माँ बनाती क्यों हैं, यह बात उसकी समझ में नहीं आती। अब तो जैसे यह बात पूरी तरह दिमाग में बैठ गई है कि मम्मी-पापा दोनों उसकी परवाह नहीं करते। छोटा है तो क्या हुआ, इतना छोटा भी नहीं कि अपना गुस्सा न दिखा सके।

शाम को अजीत को मौका मिल ही गया। माँ ने एक परचा देकर कहा, “जरा पंसारी की दुकान पर जाकर यह सामान का परचा दे आओ। वह आज या कल दिन में भिजवा देगा।”

“मैं नहीं जाता। आप या पापा जाइए, जब आप मेरी बात नहीं मानते तो मैं भी आपका कहना नहीं मानूँगा।”
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लता अजीत की ओर देखती रह गई। वह महसूस कर रही है इधर कुछ दिनों से अजीत कुछ ज्यादा ही उग्र हो उठा है। उसके पापा से शिकायत की तो उन्होंने कह दिया, “बच्चा है, मन में किसी बात पर गुस्सा होगा, इसीलिए ऐसा व्यवहार कर रहा है।”

अजीत ने माँ की बात नहीं सुनी और अपने मित्र अरुण के घर की तरफ चल दिया। मन में दुखी था, सोच रहा था, ‘जब भी मैं घूमने जाने के लिए कहता हूँ तो पापा मना क्यों कर देते हैं?’ अजीत को अच्छी तरह पता है, मम्मी-पापा दोनों ही उसे खूब प्यार करते हैं, पर इधर कुछ दिनों से उनका स्वभाव कुछ बदल गया है-पता नहीं क्यों?

दोस्त के घर जाते समय अजीत ने अपने पापा को देखा। वह डॉक्टर के दवाखाने से निकल रहे थे। अजीत चौंक गया-‘पापा डॉक्टर के पास क्यों आए हैं? क्या उनकी तबीयत ठीक नहीं? लेकिन मम्मी ने तो ऐसा नहीं कहा, और देखने में पापा बीमार लगते भी नहीं। तो क्या मम्मी की तबीयत खराब है?’

अजीत के मन में धुकधुकी होने लगी। पापा स्कूटर पर बैठकर जा चुके थे। वह भी जल्दी-जल्दी घर लौट आया। पापा अभी घर नहीं पहुँचे थे। वह हैरान रह गया। उन्हें तो अब तक आ जाना चाहिए था, क्योंकि वह तो स्कूटर पर थे। उसने माँ से पूछा, “मम्मी, तुमने बताया नहीं कि पापा की तबीयत खराब है।”

“यह तुमसे किसने कहा। तुम्हारे पापा तो एकदम ठीक है।” लता बोली।

2

“तब पापा डॉक्टर के पास क्यों गए थे, क्या तुम्हारी दवा लेने?”

“अरे पागल, मुझे क्या हुआ है। मैं भी एकदम ठीक हूँ।” कहते-कहते लता का स्वर गंभीर हो गया। उसने बताया, “तुम्हारे पापा के एक अध्यापक हैं। पापा बचपन में उन्हीं से पढ़े थे। आजकल मास्टरजी बीमार चल रहे हैं। अपने घर में एकदम अकेले हैं। मास्टरजी के बेटा-बहू विदेश में हैं। उन्हें समाचार दे दिया है। वे कुछ ही दिनों में आने वाले हैं। जब तक वे नहीं आ जाते, तुम्हारे पापा मास्टरजी की देखभाल कर रहे है।”

“तो क्या पापा शाम को दफ्तर से आते ही उन्हीं की दवाई लेने जाते हैं डॉक्टर के पास?” अजीत को जैसे अँधेरे में प्रकाश दिखाई दे रहा था।

“हाँ, शाम को डॉक्टर से दवा लेकर तुम्हारे पापा अपने मास्टरजी के पास जाते हैं। दिन में कुछ देर के लिए मैं भी उनके पास चली जाती हूँ खाना लेकर। शाम को उनके लिए खाना तुम्हारे पापा ले जाते हैं।”
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“तो क्या खिचड़ी-दलिया रोज पापा के मास्टरजी के लिए बनाती हैं आप?”

“और नहीं तो क्या!”

“तो यह बात आपने मुझे क्यों नहीं बताई!” अब अजीत को मम्मी पर गुस्सा आ रहा था।

“बेटा, तुम्हारे पापा ने मुझे बताने से मना कर दिया था। वह सोचते हैं कि तुम अपनी फरमाइश पूरी न होने के कारण आजकल नाराज रहते हो। और तुम्हारे पापा शाम के समय मास्टरजी को एकदम अकेला नहीं छोड़ सकते।” अजीत की आँखों के सामने पड़ा कोई परदा जैसे एकदम हट गया। पापा उसे इसलिए नहीं ले जा सकते, क्योंकि उन्हें मास्टरजी के साथ रहना होता है। और वह इसे अपने प्रति पापा की उपेक्षा समझ रहा था।

“मम्मी, मुझे बताइए, पापा के मास्टरजी कहाँ रहते हैं? मैं भी वहाँ जाऊँगा। शाम को डॉक्टर से उनकी दवा तो मैं भी ला सकता हूँ हर दिन।”

“लेकिन तुम तो अपने पापा से नाराज हो,” लता ने कहना चाहा तो अजीत ने माँ की बात पूरी नहीं होने दी। वह दौड़कर माँ से लिपट गया। उसकी आँखें गीली हुई जा रही थीं, “माँ, क्या मैं इतना बुरा लड़का हूँ जो यह बात भी नहीं समझूँगा।”

लता उसे बाँहों में भरकर हौले-हौले कमर थपथपाती रही। उसने कहा, “नहीं रे, मैं क्या जानती नहीं कि तू अपने पापा से कितना प्यार करता है। बस तेरे पापा अपने मास्टरजी की बीमारी की बात बताकर तुम्हें परेशान नहीं करना चाहते थे।”
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“माँ!” अजीत इतना ही कह सका। उसका गला रुँध गया था। शब्द बाहर नहीं आ रहे थे। आँखें डबडबा उठी थीं।

“मुझे अभी जाना है पापा के पास।” अजीत ने कहा।

लता ने कहा, “चल, मैं भी चलती हूँ तेरे साथ!”

“चलो माँ और वादा करो कि कोई भी बात मुझसे छिपाओगी नहीं।” अजीत ने कहा। “नहीं तो मैं आपसे खूब लड़ाई करूँगा।”

“हाँ, हाँ, वादा करती हूँ कि कोई भी बात सबसे पहले तुझे ही बताऊँगी। बस…” और लता हँस पड़ी। अजीत मुस्कराए बिना न रह सका। ( समाप्त)

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