वो एक माँ ही कर सकती है – ज्योति अप्रतिम

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“अरे कहाँ हो भाई ।एक पखवाड़ा बीत गया है ,कोई बात नहीं हो पाई।सब ठीक तो है न !”

मैंने किरण ,अपनी अभिन्न मित्र से फ़ोन पर पूछा।

“हाँ ,सब ठीक ही है।”

उदास सा स्वर सुन कर ही समझ आ गया कुछ तो दाल में काला है !

“स्पष्ट बताओ डिअर ! क्या हुआ ?”मैंने कहा।

“क्या बताऊँ डिअर ,इनकी तबियत ठीक नहीं है।कई तरह की व्याधियाँ परेशान कर रहीं हैं।मन और तन दोनों ही ठीक नहीं।”

जवाब में उसने अपनी पीड़ा बताई।

ओ माई गॉड ! हाऊ आर यू मैनेजिंग अलोन ? मेरे मुँह से अचानक ही निकल गया।

बस कर ही रही हूँ।दवाई ,घर, अस्पताल डॉक्टर, सब कुछ।

“ओह ! बबलू नहीं आ सकता क्या ?”मेरे मुँह से फिर बेसाख्ता निकल ही गया।

मुझे अभी हॉस्पिटल पहुँचना है ।एक घण्टे बाद मैं खुद ही कॉल करती हूँ।चिंता मत करना। कह कर उसने फ़ोन बन्द कर दिया और मेरी सोच फ्लेश बैक में चली गई।



किरण और मेरो दोस्ती साढ़े तीन दशक पुरानी है।जब हम दोनों ने जॉब जॉइन किया तब वो दो बच्चों की मम्मी थी और मेरी शादी भी नहीं हुई थी।

घर में सास की सख्ती ,पति की मनमानी ,एक बच्चा गोद में दूसरी प्ले स्कूल में ! हे भगवान !परेशानियों का कोई ओर छोर नहीं था।फिर भी स्कूल की नौकरी ,बच्चे ,पति ,सास ससुर सबको निभाती आगे बढ़ती चली जा रही थी। उसी तरह मुस्कुराती हुई ,सूरज की पहली मृदु किरण की तरह !

समय पंख लगा कर उड़ता रहा।सास ससुर स्वर्ग सिधार गए।बेटी ससुराल और बेटा विदेश में बस गया। किरण भी अब साठ पर

रिटायर हो गई थी और थोड़ी बेफ़िक्र जिंदगी जीने लगी थी और अब यह नई परेशानी।

तभी फ़ोन बजा।किरण ने अपने वादे के अनुसार फोन कर लिया।मेरी खास मित्र जो है।वादा फरामोशी का तो सवाल ही नहीं था।

मैंने ढीठता दिखाते हुए फिर पूछा,किरण बबलू अब भारत क्यों नहीं शिफ्ट हो जाता?

आखिरकार माता पिता का सवाल है।

नहीं डिअर!मैं अपना सौ प्रतिशत दे रही हूँ सब कुछ ठीक करने के लिए।मैं नहीं चाहती हमारे कारण हमारे बेटे का करियर खराब हो।मैं उसे बिल्कुल भी दबाव नहीं डालूँगी।

वो वहाँ एस्टेब्लिश है।खुश है।हमेशा ही खुश रहे।

मैं निःशब्द थी ।सोच रही थी।इतना ,जीवन भर का त्याग केवल माँ ही कर सकती है।

ज्योति अप्रतिम

 

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