काश कुछ वक्त मिल जाता – किरन विश्वकर्मा

नीरा बहुत खुश थी, उसके बेटे पार्थ की शादी होने वाली थी। वह यह सोच कर बहुत खुश थी कि अभी तक वह बहू थी अब उसकी भी बहू आ जायेगी। अपनी सहेली रमा के साथ नीरा आज कुछ सामान खरीदने पर मार्केट आई हुई थी। अभी शादी में एक महीने का समय था दोनों ने खरीदारी करने के बाद टिक्की और बताशे खाने के लिए एक रेस्टोरेंट में आ गई। दोनों को ही पानी के बताशे बहुत पसंद थे वह जब भी बाजार आती बिना पानी के बताशे खाए कभी घर ना जाती। नीरा ने जैसे ही दो बताशे खाए अचानक से उसे खाँसी आने लगी और खांसते- खांसते उसका बुरा हाल हो गया। रमा उसकी पीठ सहलाने लगी और झट से पानी ले आई कि शायद पानी पीने से उसका उसकी खांसी में आराम मिल जाए। कुछ समय बाद जब आराम मिला तब वह नीरा से बोली…..मैं इधर कुछ दिनों से देख रही हूं तू कुछ भी खाती है तो तेरे गले में अक्सर फस जाता है…..चलो अभी डॉक्टर को दिखाने चलते हैं बाकी काम बाद में होगा।

अभी हमारे पास सामान बहुत है….हम शाम को चलेंगे। शाम को रमा नीरा के घर आ गई और नीरा को लेकर डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने नीरा की सारी बात सुनने के बाद कुछ जाचे लिख दी। कुछ दिन बाद जब रिपोर्ट आई रिपोर्ट को देखकर सभी लोग शॉक्ड हो गए। नीरा के गले में थर्ड स्टेज का कैंसर था। नीरा को हल्की-हल्की तकलीफ तो कई दिनों से थी पर उसने अपनी इस तकलीफ को अनदेखा कर दिया था और उसकी लापरवाही का परिणाम आज सामने था अब अफसोस करने के अलावा कुछ नहीं बचा था। सभी लोगों का तो रोते-रोते बुरा हाल हो गया था। खैर शादी तो होनी थी नीरा के इलाज के साथ- साथ शादी की तैयारियां भी चल रही थी पर अब वह बात नहीं थी। एक महीने बाद जब उसकी बहू दुल्हन बन कर आई तब तक नीरा बिस्तर पर आ गई थी।




चूंकि वह कई दिनों से कुछ खा नहीं पा रही थी।  केवल लिक्विड ही गले से नीचे जा रहा था। जितना भोजन शरीर को मिलना चाहिए उतना भोजन शरीर को नहीं मिल रहा था जिसकी वजह से उसका वजन लगातार घटता जा रहा था। नीरा की बहू घर भी आ गई पर वह केवल बिस्तर पर पड़े- पड़े देखा करती। अब तो नीरा कुछ बोल भी नहीं पाती थी बीमारी ने अपना जाल फैला लिया था। अब वह लेटी ही रहती और अक्सर आंखों से आंसू बहते रहते, उन आंखों के बहते हुए आंसुओं में दर्द की कितनी कहानियां छुपी है कोई भी नहीं जान पा रहा था। एक दिन सभी लोग नीरा के आस- पास बैठे हुए थे तो नीरा ने बड़ी हिम्मत कर अपनी दुल्हन बनी फोटो की तरफ उंगली से इशारा किया और फिर बगल में नीरा की फोटो ससुराल वाले घर की थी फिर उधर इशारा किया। नीरा के पति सुधीर जी समझ गए कि नीरा क्या कहना चाहती हैं उन्होंने तुरंत एंबुलेंस की और अपने पैतृक गांव की ओर चल पड़े जहां नीरा दुल्हन बन कर आई थी सुधीर जी ने नीरा को अपनी गोद में उठाया हुआ था नीरा ने जैसे ही ससुराल का घर देखा तो उसकी आंखों में चमक आ गई। सुधीर जी ने आंगन में चरपाई पर लिटा दिया था। नीरा लेटे-लेटे पूरे घर की तरफ नजर दौड़ा रही थी। एक स्त्री उस जगह को कभी नहीं भूल सकती है जहां वह दुल्हन बन कर आती है उस समय की सुनहरी यादें उसे याद आ रही थी कि जब दुल्हन बन कर आई थी तो पूरा गांव उसे देखने के लिए इस बड़े आंगन में इक्कठा हो गया था। आज भी उसके बारे में सुनकर पास-पड़ोस के लोग आँगन में इकट्ठा हो गए थे और उसकी तरफ ही सभी लोग देख रहे थे अफसोस नीरा सबको देख रही थी पर किसी से ना कुछ पूछ पा रही थी और न कुछ बता पा रही थी। उसकी सासू मां उसे हमेशा दुल्हन ही कहकर बुलाती थी और उसे अच्छा भी लगता था…..वक्त भी कैसे बीत जाता है कभी वह इस घर में दुल्हन थी आज उसकी बहू दुल्हन के रूप में उसके बगल में खड़ी थी। ससुराल में कोई भी कार्यक्रम होता तो सासु मां उसे हमेशा हिदायत देती रहती कि दुल्हन तुम खूब अच्छे से तैयार रहा करो…. घर की बहुरिया सजी संवरी ही अच्छी लगती है और वह भी यही कोशिश करती कि वह हमेशा बन संवर कर रहे। कोई भी कार्यक्रम होता तो उसे चूड़ियां पहनाने के लिए तुरंत मनिहारिन को बुला लेती और कहती मेरी बहू को भर- भर हाथ चूड़ियां पहनाना… छम- छम करती हुई पायलों की आवाज और उसके हाथों में भरी हुई चूड़ियों की खनखनाहट और पैरों में महावर तो उसकी सासू मां उसके पैरों से छूटने ही नहीं देती हमेशा उससे कहती दुल्हन तुम हमेशा सज- संवर कर रहा करो…..तुम मुझे दुल्हन रूप में ही अच्छी लगती हो इस घर में उसने सासु मां के साथ एक लंबा वक्त गुजारा था। मैं बहुत खुशनसीब थी कि मुझे इतनी अच्छी सासू मां मिली थी जिन्होंने कभी भी उसका दिल नहीं दुखाया और उसने भी सासू मां को हमेशा अपनी मां ही माना मैंने तो अपनी सासू मां के साथ एक लंबा वक्त गुजारा पर अफसोस मैं अपनी बहू के साथ समय नहीं गुजार पाई मैं तो बहू के साथ बैठकर चार बातें भी तो नहीं कर पाई। काश कुछ वक्त और मिल जाता तो वह अपनी बहू के साथ कुछ वक्त गुजार लेती।




अभी वह यह सब बातें सोच ही रही थी कि अचानक से दिमाग में सोचने- समझने की शक्ति खत्म हो गई सब कुछ शांत सा हो गया उसके कानों ने सुनना भी बंद कर दिया। आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा पैरों में लग रहा था…..कोई भार ही नही रह गया है और यह हल्का पन धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ रहा था। गर्दन तक आते-आते उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसका पूरा शरीर हल्का होकर हवा में उड़ रहा है और कुछ क्षण के पश्चात सब कुछ शांत हो गया नीरा की आंखें बंद हो गई और गर्दन एक तरफ लुढ़क गयी। चारों तरफ से रोने की आवाज तेज हो गई।

नीरा आज फिर दुल्हन बनी थी………शादी की बनारसी लाल साड़ी पहने बड़ी सी बिंदी लगाएं लाल चूड़ियाँ पहने हुए थी सारा श्रृंगार किया गया था गया था उसकी बहू पैरों में आलता लगा रही थी बस सिंदूर की कमी रह गई थी तभी सुधीर जी आते हैं और सिंदूर की डिब्बी से सिंदूर निकालकर नीरा की मांग में भर देते हैं और नीरा दुल्हन के रूप में घर से और इस दुनिया से हमेशा- हमेशा के लिए विदा हो गई। वैसे तो सभी को एक न एक दिन जाना है पर नीरा का इस तरह से जाना सभी को दुःखी कर गया। एक औरत सबके दुःख दर्द को तो समझती है पर जब खुद पर कोई कष्ट आता है तो वह ध्यान नही देती है और यही नीरा ने किया काश नीरा ने समय रहते हुए अपनी परेशानी को समझा होता तो इतनी दुखद  परिस्थितियो का सामना नही करना पड़ता।

#वक्त 

किरन विश्वकर्मा

लखनऊ

वक्त

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