शुभा की जीवन यात्रा” – सीमा वर्मा

” हम तो यूं ही बैठे हैं , उम्र की दहलीज पर

देखूं कहां तक ले जाता है वक्त हमें घसीटे हुए “

साथियों यह कहानी एक स्त्री की सम्पूर्ण जीवन यात्रा है।

उसके बालपन से शुरू हुई उम्र की उन्यासवीं पायदान पर खड़ी आसन्न मृत्यु के इंतजार करती बेचैन ‘शुभा ‘  की आंखों में नींद कहां ?

दिसम्बर माह की रात के दो बजे पूरा घर और उसके रहवासी आराम से सो रहे है। 

जागी है तो अकेली शुभा !

यह अकेलापन उसके लिए  परिवार जनों के साथ काटे पलों से सौ गुणा ज्यादा सुकून दायक होता है।

शुभा की जिंदगी में उसकी यादों के सब रंग अब सफेद हो चलें हैं।

अब तो यादों को बहुत खरोंचने पर भी वो बचपन वाली शुभा कहीं नजर नहीं आती जो मां के आगे – पीछे डोला करती थी।

मां ने बचपने में ही साथ छोड़ दिया था।

उस दिन पूरे घर में रोना- पीटना मचा था जब पिता ने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा ,

” शुभा, बेटा मां के हाथ छोड़ो, उनको ले जाना है “

” पापा , मां अकेली कैसे जाएंगी  ? मैं भी चलती हूं उनके साथ  ” शुभा ने रो- रो कर कहा।




वह सिर्फ आठ बर्ष की थी।

मां को गये हुए लगभग दो महीने बीत चले थे।

छोटे भाई बिट्टू को ब्रेड सेंक कर देते हुए नन्हीं शुभा के हाथ कितनी दफा जले हैं इसका कोई हिसाब-किताब किसी ने नहीं रखा।

यूं ही सीखते – सिखाते साथ- साथ पलते बढ़ते शुभा कब बड़ी हो गई पता ही नहीं चला। वह इक्कीस बर्ष की हो चली थी।

 जब पापा ने अखबार में विज्ञापन देख उसके रिश्ते की बात चलाई ।

जल्दी ही शादी का दिन भी आ पहुंचा।

आस- पड़ोस की औरतें गाने – बजाने‌ में मशगूल थीं।

शादी के गाने शुभा के मन को सूना कर रहे थे।

पिछले कुछ सालों में कितने अच्छे से उसने सब कुछ संभाल लिया था। अपने पापा की भी मां बन गई थी।

सोमेश जैसे सरकारी कार्यरत वर को घोड़ी पर सजे देख सभी उसकी किस्मत की दुहाई देने लगे थे।

कहां कस्बे की छोड़ी शुभा और कहां शहरी बन्ना !!

विदाई के वक्त शुभा इतनी मुश्किल से विदा हुई थी कि सबने कहा ,

” ऐसी विदाई सालों से नहीं देखी “

इधर ससुराल में गहने कपड़ों से लदी, घूंघट काढ़े , फूलों से सजे पलंग पर बैठी शुभा जब सोमेश के पैरों को छूने नीचे झुकी थी। उसके घूंघट हटा कर उसके हाथों को थाम सोमेश ने कहा ,

”  यह घूंघटा किससे ?

 आज से सिर झुकाना छोड़ दो जब हम दोनों एक हैं तो फिर पर्दा कैसा ? “

 

शुभा गर्व से चौड़ी हो गई थी।




पहली ही रात में जो पत्नी को लाजवाब कर दे ऐसा पति सबको नहीं  मिलता।

दिन हफ्ते में बीता , हफ्ता महीनों में और महीने साल में बदल गये।  इस बीच शुभा एक दिन भी नहीं रुकी है।

शुभा दो बेटों की मां थी।

वह बहुत रूपवान नहीं है, पर सब कहते जो कुछ उसके पास है  ‘ पति सुख ‘ वह बहुतों के पास नहीं होता।

बहरहाल दिन कटने के लिए होते हैं कट रहे थे।

 कि अचानक सोमेश ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

मां के बाद अनाथ हुई शुभा को सोमेश ने सनाथ बनाया था।

उस दिन एक बार फिर से शुभा सदा के लिए अनाथ हो गई।

लेकिन शुभा आम औरत नहीं थी।

दर्द की परवाह किए बिना वह उम्र की पटरी पर जीवन की गाड़ी खींचती चली गई।

कालांतर में छोटे बेटे और बड़ी बहू को चार कंधों पर विदा करती

शुभा का दिल पत्थर का हो गया है।

अब वो अधिकतर मौन ही रहती है। जैसे किसी खास मिशन पर हो।

 पोते- पोतियों से भरे घर मे डरती है पता नहीं कब किधर से कोई विघ्न आ जाए।

दुख के झंझावातों को सहती हुई सोचती है,

” कोई किसी का साथ नहीं निभाता सब अपने राह चले जाते हैं “

वह भी बस अपनी राह ही चलती जा रही है।

वह ईश्वर से नाखुश हैं। कितनी ही बार उसे मंदिर  में श्रीनाथ जी के चरणों में सिर पटकते हुए देखा गया है ,

” यह किस बात की सजा मुझको दे रहे हो नाथ ,

पहले पति ,फिर बेटे और अब यह बहू सबों की विदाई देख मेरी आंखें  क्यों नहीं बंद हो जाती हैं ?




 

 गहरी सांस छोड़ , हर रात जीवन से विदाई की इच्छा लिए सोती है और अगली सुबह एक बुरे सपने को जीती हुई उठ खड़ी होती है।

इस बर्ष वह नब्बे साल में लग जाएगी।

अनगिणत झुर्रियों से भरा उसका चेहरा और झुर्रियों में तैरते अनगिणत  सवाल।

जितने समय उसने पति के साथ गुजारे हैं उससे दोगूने पति के बगैर काटे हैं।

अब तो सोमेश की छवि भी …  ?

उसकी आंखें अब और कुछ देखना नहीं चाहती ,कान सुनना नहीं चाहते , जुबां ने खुद ही चुप्पी साध  लिए हैं।

रात के अंधियारे में आसमान में  तलाशती शुभा की नजरों की ज़द में ,

सोमेश की बाहें , बहू की मिरमिरी आवाज, बेटे की पुकार  उसकी आत्मा को  विचित्र खालीपन  का एहसास दिलाती है।

शायद ही कोई वजह बची हो जो उसके यों जीते जाने का सबब हो यह सोचते हुए जब उसका हृदय हहर जाता है।

तब …  वक्त के  उन अनिश्चित क्षणों में निरुद्देश्य , निरुपाए सारी रात

शुभा के अंदर से अहं … अहं  की आवाज निकलती है।

और घर में सारे कहते हैं ,

” अम्मा पूरी रात कराहती रहती है , उन्हें चैन ही नहीं मिलता और हमारी नींद पूरी नहीं हो पाती है “

प्रिय पाठकों यह  वक्त – वक्त की बात ही तो है।

सीमा वर्मा / नोएडा

#वक्त 

 

1 thought on “शुभा की जीवन यात्रा” – सीमा वर्मा”

  1. बहुत ही हृदय स्पर्शी कहानी लिखा बहन.. ऐसा लगा जैसे किसी अपने की कहानी पढ़ रही हूँ.. धारा प्रवाह पढ़ गई।

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