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“सब दिन होत न एक समाना ” – डॉ. सुनील शर्मा 

राम चरण मास्टर जी जब तक विद्यालय के प्रधानाचार्य रहे, अपनी शर्तों पर नौकरी की. कभी विद्यालय के कार्यकलापों में न किसी तरह की ढील बर्दाश्त की, न एक भी पैसा खाया. उसूलों के पक्के मास्टर साहब ने न कभी टयूशन किए और सभी मातहत अध्यापकों पर भी कड़ी नज़र रखी. बल्कि कमज़ोर छात्रों के लिए स्कूल के बाद स्पेशल कक्षाओं का इंतजाम भी किया. स्वयं भी पूरे मनोयोग से पढ़ाते थे. हर वर्ष अच्छे से अच्छा रिज़ल्ट देने का प्रयास रहता. उनके पढ़ाए छात्र ऊंचे ओहदों पर आसीन थे.

मास्टर साहब अनुशासन के भी पक्के थे. सुबह देर से आना या बिना बताए अवकाश लेना उन्हें कतई पसन्द न था. इसी लिए सभी अध्यापक उनसे चिढ़ते थे. पीठ पीछे बुराई करने से भी नहीं चूकते थे. इसीलिए जब मास्टर साहब रिटायर हुए तो उनको फेयरवेल भी बेमन से ही दिया गया. मास्टर शीतलप्रसाद जो उनके मातहत थे, प्रधानाचार्य की कुर्सी पर आसीन हुए. 

मास्टर साहब के घर की हालत कुछ ठीक न थी. बेटा लड़ झगड़ कर अलग हो गया था. पत्नी को गर्भाशय का कैंसर था. सर्जरी करने के बाद रेडियोथेरेपी चल रही थी. काफी खर्चा हो रहा था. और उसपर नए प्रधानाचार्य उनके पैंशन के काग़ज़ात आगे शिक्षा विभाग को नहीं बढ़ा रहे थे. पैंशन शुरु न होने से मास्टर साहब अत्यंत परेशानी में थे.

एक दिन सुबह पार्क में मेरे पिताजी से सामना हुआ.  पिताजी भी विद्यालय से रिटायर्ड थे. परेशानी की वजह जानी तो उनको लेकर शिक्षा विभाग गए. उनसे शिकायत लिखवाई . उच्च अधिकारियों से भी मिले.  कई चक्कर लगाकर उनके विद्यालय से काग़ज़ात मंगवाए. किसी तरह उनकी पैंशन  शुरू करवाई. जब पहली पैंशन मिली तो मास्टर साहब की आंखों में ख़ुशी व धन्यवाद के आंसू थे.

#वक्त 

– डॉ. सुनील शर्मा 

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