काश – आरती झा आद्या  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज जाने सुबह से कैसा लग रहा है। मन भी बेलगाम घोड़ा सा अतीत की गलियारों में दौड़ रहा है। अतीत की सुप्त यादों में सुगबुगाहट हो रही है, मानो नींद से उठ फिर से जीना चाह रही हो। कहकहों के दौर थे, झूमता सी प्रकृति सी लगती थी वो, खिलंदर और अलमस्त थी वो, एक बार जो भी मिल ले उससे, भूल नहीं सकता था, शताक्षी थी वो ।

एक सुबह सोकर उठी और छत पर गई तो उसकी नजर सामने वाले घर पर गई। ट्रक खड़ा था और एक स्त्री समान उतरवा रही थी, साथ में शताक्षी के उम्र या यूँ कहे एक – दो साल बड़ा लड़का भी था। 

    वो दौड़ती हुई नीचे गई और हाँफती हुई बोली – माँ हमारे सामने वाले घर में कोई रहने आया है ,

   उसकी माँ मंजू जी ने कहा – हाँ मुझे पता है और उनके लिए ही चाय नाश्ता बना रही हूँ और सुनो चाय नाश्ता लेकर जाओगी तो रात के खाने का भी निमंत्रण दे आना, जिससे एक दूसरे से जान पहचान हो सके। चाय नाश्ता लेकर शताक्षी गई और देखकर दंग रह गई कि इतनी देर में उस दो कमरे के मकान को सुन्दर सा सजा कर घर बना दिया गया था। तभी उस स्त्री ने जिनका नाम रमा था, उसे देखकर कहा – अरे दरवाजे पर क्यूँ खड़ी हो बेटी अंदर आओ।

उसने भी नमस्ते आंटी कहकर टेबल पर ट्रे रखकर अपना परिचय दिया। फिर रमा जी ने बताया कि उसकी माँ से पहुँचते ही मुलाकात हो गई थी । शताक्षी ने पूछा इतनी देर में ही घर को आपने बहुत ही सुन्दर बना दिया। रमा जी ने बताया ये उनके बेटे रुद्र का कमाल है ,स्नातक की पढ़ाई कर रहा है और घर के साज सज्जा में उसका मन बहुत रमता है। सुनकर शताक्षी खुश हो गई क्यूँकि अब उसकी पढ़ाई में मदद हो जाएगी। अपने व्यावहार से उसने रमा जी का मन मोह लिया और रात के खाने के लिए निमंत्रण दिया, जोकि उसकी माँ ने कहा था। 

                     जब सब डिनर पर मिले तो शताक्षी को देखकर रुद्र के मुँह से निकला “झल्ली”। रमा जी के साथ साथ सभी आश्चर्य से रुद्र को देखने लगे। रुद्र सिर्फ शताक्षी को देख रहा था। मंजू जी ने अपने पति से रमा जी और रुद्र का परिचय कराया। इधर उधर की बातों के साथ सब खाना खा रहे थे। बातों बातों में रमा जी ने बताया कि उनके पति और बेटी कार एक्सीडेंट में नहीं रहे, सबने अफसोस जताया, ये भी बताया कि रुद्र अपनी बहन को झल्ली कहता था। धीरे – धीरे रुद्र और शताक्षी एक दूसरे को जानने लगे और दोनों में सगे भाई बहन सा एक दूसरे को मानते थे,

दोनों परिवार एक परिवार से हो गए थे। समय भी अपनी गति से चलता रहा शताक्षी एक अच्छे स्कूल में पढ़ाने लगी और रुद्र भी एक कंपनी में कैशियर की नौकरी करने लगा। रुद्र की शादी उसकी पसंद की राधिका से हो गई।उसने शताक्षी को रुद्र की बहन के रूप में स्वीकर कर लिया। शादी के कुछ दिनों के बाद राधिका अपने मायके गई हुई थी और रुद्र के माता पिता भी गाँव गए हुए थे ।इधर रुद्र की तबियत खराब हो गई। शताक्षी ने दिन रात कुछ नहीं देखा और रुद्र की सेवा में लग गई। रुद्र तो ठीक हो गया ,पर दुनिया वालों को क्या कह सकते हैं , जिन्होंने दोनों को भाई बहन की तरह देखा था , अब गलत धारणाएँ बना ली, दोनों को हवस से भरा बता दिया। । 

               राधिका के आने पर नमक मिर्च लगा कर उसके कान भरे जाने लगे। कहा जाने लगा आज के जमाने में जब खून के रिश्ते अपने नहीं होते, वहाॅं बिना किसी स्वार्थ के कोई किसी के लिए इतना कैसे कर सकता है।  राधिका भी कान की कच्ची निकली और राधिका रुद्र के रिश्ते पर लांछन लगाते हुए शताक्षी को घर आने से मना कर दिया। इतने पवित्र रिश्ते पर लगाए गए लांछन से और रुद्र को मायूस देख शताक्षी ने वो शहर छोड़ दिया। आज अचानक राधिका का पत्र देख वो सोच में पर गई और सारी बातें चलचित्र की भांति मानस पटल पर चलने लगी ।

पत्र खोल कर जब उसने पढ़ना शुरू किया तो उसके आँसू गिरने लगे क्यूँकि उस पत्र में लिखा था झल्ली माफ़ कर देना , अलविदा .. तुम्हारा भाई।उसने तुरंत अपने घर फोन मिलाया तो पता चला थोड़ी देर पहले ही रुद्र ने उसका नाम लेते हुए दम तोड़ दिया। मन की वेदना ने उसे बीमार बना दिया था और जीने की इच्छा भी खत्म हो गई थी ।शताक्षी परेशान ना हो जाए इसीलिए बताने से मना कर दिया था। शताक्षी के आँसू नहीं रुक रहे थे और सोच रही थी काश समाज स्त्री पुरुष के संबंध को एक ही चश्मे से नहीं देखता… काश राधिका जैसे लोग कान के कच्चे ना होते…  काश खून की रिश्ते के ऊपर भी पवित्र रिश्ता हो सकता है, समाज इसे समझ सकता, मान सकता। काश … 

 

आरती झा आद्या 

दिल्ली

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