कालचक्र (भाग 1)- डॉ उर्मिला सिन्हा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : समय का पहिया घुमता रहता है ..कभी उपर कभी नीचे.

कालचक्र के झंझावातों से इस नश्वर संसार में कोई अछूता नहीं है.

  इति जब घर लौटी.शाम ढल चुकी थी.. बरामदे में ताऊ दोनों हाथ पीठ पर बांधे चहलकदमी कर रहे थे…सांझ के धुंधलके में उनके चेहरे का भाव इति को स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था परन्तु इतना तय था कि वे किसी उधेड़बुन में थे .

“कौन इति .. कहां थी अबतक…”ताऊ की कड़कदार आवाज पर इति की सांस उपर की उपर और नीचे के नीचे .

“जी , कालेज से आ रही हूं.”

“कालेज कौन-सा कालेज शाम के छः बजे बन्द होता है मैं भी तो सुनूं.”

“जी… कालेज की मेरी सहेली को दहेजलोभी ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला …उसी के विरोध में जुलूस निकला था जिसका नेतृत्व मैं कर रही थी.

उसी में विलम्ब हो गया.”उसने डरते-डरते कहा.

     ठीक उसी समय एक काली कार दरवाजे पर रूकी ताऊ का ध्यान उधर गया और इति ने चैन की सांस ली .उसने प्रथम बाधा पर कर ली.

   बैठक में पांव पड़ते ही वह चौंक उठी.दीवान पर न‌ई चादर,मेंज पर ताजे फूलों का गुलदस्ता …मोहक ढंग से सजा हुआ बैठकखाना.. शायद कोई विशिष्ट अतिथि आने वाले हैं. किसी का ध्यान उसकी ओर नहीं था.. ताई लाल जड़ीदार रेशमी साड़ी पहने अपने ऐनक का शीशा साफ करने के लिए इधर-उधर कोई सूती कपड़ा ढूंढ रहीं थीं.उनकी दोनों बदमिजाज बेटियां श्रृंगार मेज के सामने डंटी हुई थी..ताई की बहू अपने बेटे को तैयार कर रही थी…वह फटाफट कपड़े बदल हाथ-मुंह धोकर रसोई में पहुंची तब उसे जोरों की भूख लग आई थी. 

“वाह खुशबू बड़ी अच्छी आ रही है.”

  उसके नथुने सुस्वादु व्यंजनों के सुगंध से फड़फड़ाने लगे… जठराग्नि तेज हो गई..

मां की ओर से कोई प्रोत्साहन नहीं पा कर… इति उतावली हो उठी .. उसने अपनी दोनों बाहें मां के गले में डाल दी.

“मां , मेरी प्यारी मां कुछ भी खाने को दे दो .”

……”यह समय है घर लौटने का …तू मुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी … इससे अच्छा था कि तू जन्मते ही मर गई होती .”

   इति समझ गई मां की नाराज़गी ..जो उसके देर से घर लौटने पर है.. आज देरी भी बहुत हो गई..वह अपनी दायरा जानती है .. मां की मजबूरियों से भी अनभिज्ञ नहीं है  किन्तु वह अपने जज्बातों का क्या करें जिसपर वह काबू नहीं रख पाती .. अपनी ही सहपाठिन की दहेज हत्या की भर्त्सना में उसकी मौजूदगी न हो यह  भला संभव है.

   “मां तुम्हारी नाराजगी मुझसे है न … मेरे भूख से तो नहीं ..सब बताऊंगी .. पहले पेट में तो कुछ डालने दो.”

  मां सब-कुछ बर्दाश्त कर सकती है किन्तु संतान की भूख-प्यास नहीं..हाथ का काम छोड़ मां ने उसके हाथ में सुबह का ठंढा दाल-चावल और थोड़ी सी सब्जी पकड़ा दी.

   सुबह भी इति रात की बची हुई बासी रोटी-सब्जी ही खाकर कालेज गई थी.

  दिनभर की भूखी-प्यासी इति रसोईघर में ही एक‌ ओर खड़ी होकर दाल-चावल निगलने लगी.

 मां ने मुड़कर बेटी को तृप्त भाव से ठंढा दाल-चावल खाते देखा..मातृहृदय कुहूक गया … इन्हीं हाथों से आज उसने क‌ई प्रकार के पकवान बनाए हैं . वह इतना खटती है किसके लिए   इसी के लिए तोअपना क्या है एक पेट तो कहीं भी भर जाता.. बैठक में शोरगुल बढ़ गया था ..शायद मेहमान आ गये हैं.

 “मां कुछ और है..”इति की भूख शांत नहीं हुई थी.

“..ना …ना.अब कुछ नहीं है…”मां के मुंह से निकला परन्तु व्यंजनों पर नजर पड़ते ही मातृ हृदय अपने आप को रोक न सका … एक कटोरी खीर बेटी के हाथों में रख ही दी.

    इति खीर के मिठास में खो गई .. मलाईदार मेवों की खीर  वाह मजा आ गया..

    आमतौर पर बची-खुची खीर मां बेटी को मिल जाया करती है दो-तीन शाम बीतने पर बासी खीर में वह स्वाद कहां…

    “मां कौन लोग आये हैं … जिनकी आवभगत में मेरी कंजूस ताई ने नानाप्रकारेण के पकवान बनवाये हैं…”

  “..धीरे बोल बेटी.. किसी ने सुन लिया तो हमारी खैर नहीं  ताई की बेटियों के लिए लड़केवाले आने वाले हैं..आ जा तू भी मेरी मदद कर  सुबह से लगी हुई हूं ,कमर टूट रही है.”इति ने गौर किया  मां के सुन्दर चेहरे पर असमय ही झुर्रियां पड़ने लगी है.

      उसे अपनी मां पर तरस आया और  अपने आप पर क्रोध भी  मेरी प्यारी मां कमर के दर्द के बावजूद भी सुबह से काम में जुटी हुई है और मैं संसार की समस्यायों में हकलान हुई जा रही हूं.

   “बस, तुरन्त.”

   गरम खीर इति से जल्दी-जल्दी खाया नहीं जा रहा था.. वह फूंक-फूंक कर मुंह में डालने लगी … इसी बीच ताई ने रसोई में प्रवेश किया .. इति के हाथ में खीर की कटोरी देख वे आग-बबूला हो गई. 

“दिनभर आवारागर्दी करती रहती है और यहां लाड़ लगाया जा रहा है … किसी दिन हमारी नाक कटवायेगी यह छोकरी अभी मेहमानों ने खीर चखी नहीं और .. महारानी ने जूठा कर दिया, मैं पूछती हूं कुछ शर्म हया है कि नहीं मां बेटी में..ऐसी कुलच्छनी बेटी को घर से निकाल देना चाहिए.”

ताई टेपरिकॉर्डर के समान चालू हो गई..मां की आंखें भय से सिकुड़ गई और इति ..भ‌ई गति सांप-छूछून्दर की  उससे न खीर खाई जा रही थी और न छोड़ी.

   ताई की बहू मेहमानों के आवभगत में लगी हुई थी.ताई की बेटियों का कहना ही क्या ..पूरे घर में उत्सव सा माहौल था .

ताई ताऊ, बेटा-बहू, दोनों बेटियां अतिथियों के समक्ष अपने-आप को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के होड़ में  लगे थे.

  मेहमानों को लड़की पसंद आ गई , थोड़ी बहुत बाधा लेन-देन की मोटी रकम ने पाट दिया.सुखी-सम्पन्न ताई ताऊ ने लड़के वालों को आशा से अधिक का आश्वासन देकर मोहित कर दिया.बहू के साथ ट्रक भर सामान और नोटों की गड्डियां  और क्या चाहिए.

           वर बधू दोनों पक्ष एक-दूसरे से पूर्ण संतुष्ट. मेहमान बिदा हो गये., घरवाले खा-पी अपने अपने कमरे में सोने चले गए.बच गई मां-बेटी..रसोई निपटाने में .

    “मां तुम सोने जाओ , मैं चौका समेट आती हूं..”

“ना बेटी तू जा मैं कर लूंगी”मातृहृदय बेटी को अकेले कैसे खटने दे.

   बातें होने लगीं.

“जानती हो मां मेहमान तुम्हारे पकाये भोजन की बहुत तारीफ कर रहे थे .”

“तुम्हें कैसे मालूम..”मां खुश हो जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगी. थोड़ी सी प्रशंसा मृतप्राय शरीर में जान डालने का कार्य करती है.

“मैंने पर्दे के पीछे से सुना , सब्जी का डोंगा भाभी को पकड़ाने गई थी .” 

“क्या बोल रहे थे..”

  “बोल रहे थे  आपका रसोईया बहुत प्रशिक्षित जान पड़ता है.इतना लजीज भोजन वर्षों बाद खाया है.”

“फिर..”

  “फिर क्या  झट ताई बोल पड़ी   नहीं जनाब हम रसोईया नहीं रखते  भोजन स्वयं पकाते हैं  आज का भोजन भी बेटियों ने ही तैयार किया है.. मैंने अपनी सम्पूर्ण पाक-कला से अपनी बेटियों को प्रशिक्षित कर दिया है.”

“ऐसा..यहां भी तेरी ताई बाजी मार ले ग‌ई.” मां उदास हो गई.

    “मां, मुझे इस सफेद झूठ पर हंसी आ गई किन्तु मैंने अपने आप को संभाल लिया.वे लोग वैसे ही मुझसे नाराज़ हैं “इति ने मां को दिलासा दिया.

   “… हां नाराज क्यों न होंगे  पैसे वाले हैं  विधाता का न्याय भी अजीब है  अपनी बेटियां सारे गलत सही काम करेंगी , उन्हें नाराजगी नहीं होती  खुद मां-बेटी एक तिनका नहीं तोड़ेंगी और आंखें दिखायेंगी मुझे और मेरी फूल सी बच्ची को.वे अपने फटे आंचल से आंखें पोंछने लगी.मां 

की आंखों में आंसू देख इति का दिल भर आया.

   “मां हर रात का सवेरा होता है …वे पैसे वाले हैं हमें रोटी खिलाते हैं  आंखें दिखायेंगे ही   उनकी बेटियों का सम्पूर्ण अवगुण चांदी के सिक्कों  तले ढंक  जायेगा  रुपए के खनक में बहुत ताकत होती है मां.”

“हमारे-तुम्हारे दुःख के दिन भी  बीत जायेंगे मां ..बस मुझे अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाने दो  फिर देखती हूं कौन मेरी मां को जलील करता है.’इति का आत्मविश्वास दृढ़ था.

  “ना बाबा ना मुझे नहीं करवानी अपनी बेटी से नौकरी .ताई की बेटियां तुमसे उम्र में छोटी हैं उनका विवाह हो रहा है तुम्हारी चिंता किसे है अगर आज़ तुम्हारे पिता होते !”

“मां मुझे विवाह नहीं करना ; अपनी अम्मा के पास रहना है तुम्हीं मेरी मां और तुम्हीं मेरे बाप “भावुक इति मां से लिपट पड़ी.

   इस तरह दोनों मां बेटी अपनी मनोव्यथा बांटती बिस्तर पर जा गिरी .. सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से आंखें खुली.

   घर में विवाह की तैयारियां जोर-शोर से हो रही थी.ताई का ज्यादा समय अपनी बहु-बेटियों के साथ शापिंग में ही गुजरता. कीमती जेवर, बेशकीमती साड़ियां, जड़ीदार सूट, श्रृंगार सामग्री , छोटी-बड़ी लेन-देन दान-दहेज  की चीजें देखी – परखी जाती . कभी सुनार के पास कभी दर्जी के यहां इति और मां पर काम का अत्याधिक बोझ आ पड़ा  ताई की सख्ती बढ़ गई थी  दौड़-भाग की झुंझलाहट  मां-बेटी पर ही उतारा जाता.

      समय ने करवट बदली.ताई की दोनों बेटियों का विवाह हो गया.इति ने इस बीच अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और प्रतियोगी परीक्षा पास कर  सरकारी नौकरी में आ गई .

   वह अपनी मां को अपने साथ ले आई. जो हो ताई ताऊ ने दुर्दिन में उन्हें सहारा दिया था अतः मां-बेटी हाथ जोड़ ‌नम आंखों, रूंधे गले से बिदाई ली.

    “आप सभी मेरी पोस्टिंग पर आईयेगा .”इति ने हाथ जोड़े.

  “मेरे टूकडों पर पलने वाले”ताई बुदबुदाईं.

    क‌ई वर्षों से मां-बेटी यहां थी उन्होंने गृहस्थी का पूरा भार अपने ऊपर ले रखा था घर गृहस्थी का रोजमर्रा का कार्य क्या होता है इससे ताई और उनकी बहू बेटियों को कोई मतलब नहीं रहता था… अब आटे दाल का भाव मालूम होने लगा था.

कितने नौकर-नौकरानी आये और गये क्योंकि उनमें वह विश्वसनीयता निष्चिंतता नहीं थी जो निराश्रित इति और उसकी मां अपने सिर पर छत और पेट के लिए सेवा देती थी.

     ताई की दोनों बेटियां कामकाज में अनाड़ी, फैशनपरस्त, मुंहफट थी परिणाम आये दिन ससुराल में कलह होने लगा.

  बेटा-बहू बाहर चले गए।ताऊ ताई वृद्ध हो चले..कमाई बन्द..शरीर से क्षीण.

   आज की तिथि में न ताई ताऊ हैं न मां… इति बिटिया अपने पति बच्चे के संग सुखी संतुष्ट जीवन व्यतीत कर रही है।

  यदाकदा ताई की बेटियों को मदद भी करतीं है उनके हक़ में सलाह भी,”यह उचित यह अनुचित…”

   पहचान वाले दाद देते हैं ,”बिटिया हो तो इति जैसी.” उसकी मां को परिश्रम और सब्र का फल मिला… उन्हें समाज में एक नई पहचान मिली। 

    सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डॉ उर्मिला सिन्हा ©®

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