कहीं बहू बेटे हमसे दूर न हो जाए••••• – अमिता कुचया

आज फिर रोज की तरह डिनर के बाद डाइनिंग टेबल पर सुरेश जी ,सुधा जी, अपने बेटे बहू साहिल और श्रृद्धा के साथ तो थे।पर मन से साथ नहीं थे। साथ बैठकर खाना खाने की औपचारिकता पूरी कर रहे था। सन्नाटा पसरा हुआ था ।तनावपूर्ण माहौल में श्रृद्धा ने चुप्पी तोड़ते हुए  पूछा, मम्मी जी रिनोवेशन के बारे में क्या सोचा है?

सोचना क्या श्रृद्धा मैंने कितने मन से ये घर बनवाया है ‌। कितनी मुसीबत के बाद एक- एक चीजें जोड़ी है ,रिनोवेशन के नाम पर सब बिखर जाएगा।टूट फूट होने से सब किया कराया मिट जाएगा!

फिर तो फर्नीचर भी औने पौने दामों में बिक जाएगा।तब साहिल ने कहा-‘ मम्मी सब सोच समझकर ही करेंगे।अब तो आनलाईन साइट्स भी है। आजकल एक्सचेंज आफर भी चल रहा है।’साहिल ने तर्क देकर कहा ।

तब सुधा जी बोली – “रहने दो आजकल एक्सचेंज के नाम पर केवल लूटते  ही है। पुराना सामान कम कीमत  में लेते हैं, नया सामान ज्यादा कीमत पर देते हैं।”

सुधा जी के ये विचार सुनकर सब निराश हो रहे  थे।सब देख रहे थे, सुधा जी किसी की नहीं सुनने वाली•••

अब  साहिल ने तर्क दिया मम्मी अपना घर पुराने पैटर्न का बना हुआ है ,आजकल आर्किटेक्ट इतने अच्छे से डिजाइन करते हैं कि कम जगह  में भी सब सुविधा देते हैं और घर सुंदर दिखाई देता है। सामान रखने की व्यवस्था भी अच्छी हो जाती है।

तब सुधा जी ने कहा-” बेटा ये सब चोंचले है मैं तो इस पक्ष में बिल्कुल नहीं हूं।कि घर में टूट फूट हो।”

फिर भी उनकी बहू श्रृद्धा ने कहा-” मम्मी जी एक बार डिजाइन तो देख लीजिए। फिर भी पसंद न आए तो मत कराना।



लेकिन सुधा जी अपनी बात से टस मस न हुई। और अपने कमरे में चली गई। उनकी उस घर में इतने सालों में यादें जुड़ी हुई थी जिससे वो दूर नहीं होना चाहती थी।

सुरेश जी सब के मनोभावों को समझ चुके थे। सबके मन में है कि रिनोवेशन हो जाए, पर सुधा जी के कारण किसी की एक न चली रही थी। फिर भी उस समय वे चुप रहे।

पर कमरे में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए अपनी पत्नी को समझाते हुए बोले – देखिए सुधा जी हमारे बच्चे इतने कहे में है कि हमारी सब बातें मानते हैं। हमारे बेटा बहू दोनों कमाते हैं, उनके पास पर्याप्त कमाई भी है। हमारी उस समय इतनी हैसियत नहीं थी।कि नये जमाने के अनुसार आलीशान  बंगला बनवा पाते ,पर आज परिस्थिति बदल चुकी है, तुम्हें भी सोचना चाहिए ऐसा न हो कहीं बहू बेटे के हृदय में परिवर्तन होने लगे कल के दिन वो हमसे अलग हो जाए और हमारे रिश्तों में खटास आने लगे।वो चाहे तो वो अलग अपना आलीशान बंगला बनवा सकते हैं।  यह भी सोचों कहीं ऐसा न हो कि उन्हें अपनेपन की कमी  वे महसूस करें।वह खुद को पराया समझना लगे।

सुरेश  जी की बात सुनकर सुधा जी ने कहा- ”  हमारे बेटे बहू ऐसे नहीं हैं। कि कभी हमारे बात को काटे। हमसे दूर होने की सोचें।”

तो रिश्तों की डोर को इतनी मत खींचो न ••••सुधा जी कि ये प्यार भरी मजबूत डोर टूट जाए। हमें भी उनकी सुनना चाहिए। घर बहू बेटे का भी है। उन्हें भी सुविधा देना चाहिए।बहू को कितनी भागदौड़ करनी पड़ती है , उसका ऊपर है ,कितने बार नीचे ऊपर होती रहती है।अगर घर उनकी सुविधानुसार हो जाए तो क्या बुराई हैं! सुरेश जी एक सांस में बोल गए।

अब तो सुधा जी की नींद उड़ चुकी थी।वो बार- -बार करवटें बदल रही थी। जैसे सुरेश जी की बातों का असर हो रहा था।



फिर थोड़ी देर बाद बहुत सोचने के बाद सुधा जी बोली ठीक है करवा लें रिनोवेशन ••••

क्या कह रही है सुधा जी! मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है। आप सही कह रही है न•••

सुधा जी ने कहा- हां हां मुझे भी अपनी जिद छोड़ देना चाहिए। नहीं तो बेटा बहू को लगेगा मैं इस घर में अपनी -अपनी चला रही हूं।

जैसे  ही सुबह हुई  तब नाश्ता के समय सुरेश जी ने बहू  श्रृद्धा  को  खुशी के साथ आवाज लगाते हुए कहा – श्रृद्धा बेटा जरा मीठा बना लेना ,आज तुम्हारी सासुमा घर के रिनोवेशन के लिए मान गई है।

अरे ,पापा ये जादू कैसे हो गया!तब वहीं सुधा जी ने कहा -बहू जादू नहीं है बल्कि तुम्हारे ससुर जी ने मेरी आंखों खोल दी, उन्होंने मुझे समझाया कि तुम लोग मेरे अपने हो, सब एक दूसरे की बात मानें तो अपनत्व  और खुशियां ही बढ़ेगी। एक दूसरे का विरोध होने पर दूरी बढ़ने के अलावा कुछ नहीं होगा।इस तरह सुधा जी की बात से सबके चेहरे खुशी से खिल गये।

आज बेटा बहू दोनों मम्मी के गले लगकर बोले-” मम्मी आपने पापा की बात सुन कर बहुत अच्छा किया।घर के रिनोवेशन के लिए आप मान गई।” लीजिए मुंह मीठा कीजिए।और श्रृद्धा ने मम्मी को अपने हाथों से हलवा खिलाया ।

तब उन्होंने कहा -“श्रृद्धा बहू घर का ही रिनोवेशन नहीं हो रहा है बल्कि मन और विचारों का भी हुआ है ,जिससे तुम लोगों के चेहरे खिल गए हैं। हम मन से भी एक हो गए।आज जाना कि तुम लोग  मेरी कितनी बात मानते हो और तुम लोगों ने कभी कोई जिद भी नहीं की।  न ही मनमानी की। क्या मेरा यह फर्ज नहीं है कि तुम लोगों की भावनाओं को समझ कर सहयोग और घर की एकता बना कर रखूं।माना कि मेरी इस घर से यादें जुड़ी हैं पर समय के अनुसार मुझे अपनी सोच को बदलना होगा। फिर रिनोवेशन होने से घर दमक गया। और आपसी रिश्तों में भी मिठास बढ़ गई।

दोस्तों -हमारे घर की तोड़ फोड़ से नुकसान तो होता ही है। पर समय के अनुसार जरुरत बदलती है, समय- समय पर बदलाव भी जरूरी होता है उसी तरह सोच का भी रिनोवेशन हो जाए तो परिवार में भी खुशियां बढ़ जाती है।

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आपकी अपनी दोस्त ✍️

अमिता कुचया

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