कब तक – मधु शुक्ला

“भैया क्या आपके पास पाँच दस लाख रुपये नहीं हैं। छोटे भैया कितनी बार फोन लगा चुके हैं। उन्हें अपना कर्जा चुकाना है। आप कुछ जबाव ही नहीं देते। ” 

गायत्री की बात सुनकर विकास चिढ़ कर बोला “तुम्हारे छोटे भैया को पैसा माँगने के सिवाय कुछ आता है क्या। कोई न कोई बहाना बना कर हमें कंगाल कर रहा है वह। और तुम्हें उसी से हमदर्दी है। तुम्हीं  भेज दो उसे रुपए। “

” भैय्या आप कैसी बातें कर रहे हैं। हमारे पास इतने रुपए कहाँ से आयेंगे। हम शहर में रहते हैं। हर चीज खरीदनी पड़ती है। मकान का किराया भी देना पड़ता है। आप को तो न राशन लेना है। न मकान का किराया देना है। दूध भी घर मे हो जाता है। पापा ने गोबर गैस की व्यवस्था कर रखी है। आपको गैस सिलेंडर भी नहीं लेना पड़ता। हर प्रकार से आपकी बचत होती है। ” 

गायत्री की बात सुनकर विकास ने कहा। इतना फायदा है यदि घर में रहने में तो तुमने और तुम्हारे छोटे भाई ने क्यों अपना हिस्सा लेकर गाँव त्याग दिया है। खाद, बीज, मजदूरी, माँ बाप  का इलाज, गाँव भर का व्यवहार निभाना, और भाग दौड़ करना, ये सब तुम्हें नहीं दिखाई देता। तुम्हारे छोटे भाई ने कितने रुपये लगाये हैं तुम्हारी शादी में, मैं ही आज तक कर्जा चुका रहा हूँ। तुम्हारी शादी का। माँ हमेशा छोटे का पक्ष लेंतीं रहीं और मैं समझौता करता रहा हर जगह। उसी का नतीजा है। तुम भी उपदेश देने लगीं। अब मैं यहाँ नहीं रहूँगा। सरकारी क्वार्टर में चला जाऊँगा। बच्चों की पढ़ाई ठीक से होगी वहाँ रहने पर। और तुम्हारी भाभी को और मुझे भी कुछ राहत मिलेगी बिना मतलब की भागदौड़ से। ” 

विकास के पिता ने जब यह सब सुना तो वे बेटी को डांटने लगे। और विकास से बोले ” इस पागल की बातों पर ध्यान मत दे बेटा। तेरे ही कारण गाँव में हमारा नाम जिंदा है। हमारे कितने साथी अकेले रह कर बेटों को कोस रहे हैं।”  

“पर पापा मैं कितने समझौते करुँगा। परिवार में सब लोग अपनी मनमर्जी से जीते हैं। और उसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ता है। अब मुझसे यह सब नहीं होगा। अब में कोई समझौता नही कर सकता। मुझे मानसिक शांति की जरूरत है। जो यहाँ से दूर जाकर ही मिलेगी। “

विकास की बात सुनकर उसके पिता चिंतित दिखे। फिर कुछ सोचते हुए बोले ” ठीक है जैसी तेरी मर्जी। पर पहले अपनी इस विरासत का इंतजाम कर ले। उसके बाद जहाँ चाहो रहो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यदि चाहो तो मुझे अपने पास रख लेना नहीं तो किसी वृद्धाश्रम में चला जाऊँगा “

पिता की बातें सुनकर विकास ने फिर से एक नया समझौता कर लिया “उनके जीते जी गाँव न छोड़ने का “।

 

स्वरचित  — मधु शुक्ला .

सतना , मध्यप्रदेश .

 

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