जिसके थे उसके काम आ गए…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

एक तुम्हीं पर तो मुझे भरोसा था… तुमने भी मेरा भरोसा तोड़ दिया… ऐसा कैसे किया तुमने… धिक्कार है तुम्हें जीवा… धिक्कार है… धिक्कार है……!

  जीवन उठ बैठा… स्वप्न में मां को इस तरह रोते हुए खुद को धिक्कारता देख उसकी आंखें भर आई… सच ही तो कह रही है अम्मा… मैंने काम ही ऐसा किया है… अम्मा की आत्मा को भला मरने के बाद चैन कैसे आया होगा…कितने भरोसे से मेरा हाथ पकड़ा था उसने…!

 भले अम्मा के दो बेटे थे.… पर भरोसा उसे जीवन पर ही था… इसलिए तो दुनिया से विदा होते हुए उसने अपने गहनों की पोटली उसके हाथ में दे दी… और कहा था कि अपनी छोटी बहन का ब्याह अच्छे से करना… उसे पैसों के अभाव में किसी गलत जगह ना ब्याह देना…!

 पर कहां पूरी कर पाया वह अम्मा की आखिरी ख्वाहिश… दो बेटों और एक बेटी की मां उमा जी… दोनों बेटों का ब्याह करके घर बसा दिया… पर बेटी की जिम्मेदारी से मुक्त ना हो पाईं… पति के जाने के बाद… सब की पढ़ाई लिखाई… घर द्वार सब संभाला… पर बिट्टी के घर बसाने का बोझ सर पर लिए ही चल बसीं…!

 बड़े बेटे और बहू पर तो उन्हें रत्ती भर भरोसा नहीं था…उनके चाल चलन से वह अच्छे से वाकिफ थी… जानती थी उनसे कोई उम्मीद रखना बेवकूफी है… पर छोटे बेटे का ब्याह अभी-अभी हुआ था… नई बहू के रंग ढंग अभी तक उनके पल्ले नहीं पड़े थे… छोटे बेटे जीवन को जानती थी… उस पर उन्हें विश्वास था… इसलिए अंत समय में एक दिन उसे चुपके से अपने पास बुलाकर कहा…” जीवा बेटा जीते जी बिट्टी का ब्याह नहीं कर पाई… उसका घर नहीं बसा पाई… उसके ब्याह के लिए ही मैंने कभी भी अपने दुख के दिनों में भी अपने इन गहनों को हाथ नहीं लगाया… सोचा था अगर सुख के दिन हुए बेटे बन गए तो इन्हें बिट्टी को दे दूंगी… अगर बेटे नहीं बन पाए तो इन्हें बेचकर बिट्टी का ब्याह धूमधाम से करूंगी… मुझे तेरे अलावा किसी पर भी भरोसा नहीं है… इसलिए यह मेरे गहने मेरे मायके ससुराल की इकलौती दौलत… मेरे जीवन की एकमात्र जमापूंजी मैं तुम्हारे हाथ में दे रही हूं… बेटा मेरा मान रखना… बहन के साथ बेईमानी ना होने देना…!”इतना कह कर अपनी जिम्मेदारी जीवन को दे हफ्ते भर में उमा जी परलोक सिधार गईं…!

 उन्हें क्या पता था की नई बहू तो बड़े बेटे बहु से भी काफी चतुर थी… जीवन ने गहने ले जाकर अपनी अलमारी के सेफ में रख दिए… रखकर उसके ध्यान से निकल गया.… एक दिन निम्मी ने पूछा क्यों जी सेफ में इतने सारे गहने पड़े हैं… किसके हैं… तो जीवन को याद आया.… उसने सारी बात निम्मी को बात कर कहा…” देख निम्मी ये बिट्टी के हैं… उन्हें दोबारा खोलने की जरूरत नहीं है… वहीं पड़ा रहने दे… जब बिट्टी के ब्याह का समय आएगा तभी वह गहने बाहर आएंगे…!”

” मैं क्यों खोलने लगी… वह तो उसमें बहुत दिनों से देख रही थी इसलिए पूछ लिया…!”

 दो-तीन साल होते बिट्टी ब्याह लायक हो गई… भाभियों ने मिलकर एक रिश्ता ढूंढा.… घर तो ठीक ही था.… तीन भाइयों में छोटा… दोनों बड़े भाई घर परिवार वाले कमाते खाते थे और यह छोटा था… घर में सास ससुर सब थे… भरा पूरा घर भाइयों को भी रिश्ता जंच गया…!

 निम्मी ही रिश्ता लाई थी…” अरे छोटी बहू बनकर जाएगी राज करेगी वहां जाकर…!”

 जीवन बोला …”पर निम्मी लड़का कमाता कहां है…!

“कमाने का क्या है जी… पढ़ा लिखा है आज नहीं कमाता है… कल को कमाएगा ही…!

” पर निम्मी कल किसने देखा है… अगर बिट्टी को दुख हुआ तो…?”

” दुख कैसा… बड़े घर परिवार में पली बढ़ी है… इससे भी बड़े घर परिवार में जा रही है… तीन भाई हैं छोटे को तो सर माथे रखते हैं… कोई चिंता की बात नहीं…!”

बड़े भाई और भाभी को तो बस किसी तरह बिट्टी की जिम्मेदारी से मुक्ति चाहिए थी… जीवा ने भी सोचा कि “चलो मां के गहने हैं ही.… बिट्टी को दिए दूंगा… राज करेगी…!”

 पर यह क्या अलमारी में से तो गहने ही गायब थे… जीवन ने पूरी अलमारी पूरा कमरा छान मारा गहने कहीं नहीं मिले… कहां गए गहने… निम्मी ने तो सीधे पल्ला झाड़ लिया.…” जब से तुमने कहा था कि उन्हें मत खोलना… मैंने छुआ भी नहीं… मैं क्या जानू… मैं कुछ नहीं जानती…!”

 बंद अलमारी से गहने कहां चले गए… भैया भाभी को तो पहले ही कुछ नहीं पता था… अब क्या पूछता… बेचारा सर पीट कर रह गया… कई दिनों तक यहां वहां ढूंढता रहा… आखिरकार हार गया तो निम्मी बोली…” क्या करोगे जान थोड़े ही दोगे… हो गया किसी की नजर पड़ गई होगी… लगता है चोरी चली गई… वैसे भी बिना किसी दान दहेज के तो ब्याह हो रहा है… फिर कैसी चिंता…!”

 जीवन झक मार कर रह गया… नियत समय पर बिट्टी का ब्याह हो गया… ऊपर से देखने में सब ठीक ही था… पर बाद में पता चला बिट्टी के ससुराल वालों को बहु कम नौकरानी अधिक चाहिए थी… बेरोजगार छोटे भाई की बहू… सबको मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी…!

 ब्याह के बाद जब पहली बार जीवा बहन से मिलने ससुराल गया तो उसकी गत देखकर उसे बहुत बुरा लगा… सभी उस पर हुक्म चला रहे थे… सास ससुर बड़ी जेठानियां सबके हुकुम पर नाच रही थी बिट्टी… जीवा ने कहा भी…” तू क्यों सबके हुकुम बजा रही है…!”

 बिट्टी ने बड़ी मासूमियत से कहा…” मेरे पति कोई काम नहीं करते ना भैया… हम दोनों को यहां दो वक्त की रोटी तो इन्हीं की वजह से मिल रही है… इसलिए हम दोनों को ही यहां सबको खुश रखना पड़ता है…!” सुनकर जीवा अवाक रह गया…” क्या यही अच्छा सोचा था निम्मी ने… खुद तो रानियां की तरह ठाठ से है और यहां बिट्टी की गत नौकरानी जैसी हो गई है…!” बेचारा कुछ ना बोला पर उसे अपनी बीवी पर बहुत गुस्सा आया और साथ ही साथ शक भी हो गया…!

 कुछ दिनों तक बीवी के फोन कॉल पर नजर रखने पर उसे यह भी पता चल गया की… मां के गहने इसने ले जाकर अपने मायके में रख दिए हैं.… उसके बाद से ही उसका मन अशांत था… उसी में कल रात उसने सपने में देखा की मां आकर उसे धिक्कार रही है…!

वह निरीक्षण करने लगा कि कब यह वापस गहने घर लाती है… ज्यादा दिन नहीं लगे… उसके मायके में भाई की शादी थी… सो भाभी के आने से पहले वह अपने गहने वापस घर ले आई… लाकर अपने कपड़ों की तह में बड़ी जतन से छुपा कर… शादी के कामों में लग गई…!

 जीवा ने आराम से वे गहने वहां से निकाल लिए… उन्हें ले जाकर बहनोई के लिए एक बढ़िया हार्डवेयर शॉप खोल… सामान सजा… चाबी बहन को दे दिया… बहनोई दुकान चलाने लगे तो कमाई आने से बहन की इज्जत घर में अपने आप बढ़ गई… सब कुछ मां का आशीर्वाद था… कमाई अच्छी होने लगी बिट्टी के दिन सुदिन हो गए…!

 इधर निम्मी शादी से निपट कर घर आई तो कई दिनों बाद सोचा…” गहनों को कहीं लॉकर में डलवा देती हूं… पर पूरा घर छान मारा गहनों का तो कहीं पता ही नहीं था… क्या पूछती… किससे पूछती… गहने तो बिट्टी के ब्याह से पहले ही चोरी हो गए थे… बेचारी सर पटक कर रह गई…!

 जीवा अपना कर्तव्य निभा चुका था… अब उसकी अंतरात्मा उसे कोई धिक्कार नहीं दे रही थी… पर निम्मी का अंतरमन उसे जमकर कोस रहा था… कि यह क्या हो गया… ना बिट्टी को ही मिले… ना मुझे ही… बेचारी जब कई दिनों तक परेशान हुई तब एक दिन रोते हुए उसने पति को सारी बातें बता डाली… साथ ही माफी भी मांगी… तब जीवा ने भी उसे साफ-साफ कह दिया की…” गहने जिसके थे उसके काम आ गए… तुम अब उसके बारे में सोचना बंद कर दो…!” निम्मी की आंखें खुली रह गई… अपनी करनी का फल उसने पा लिया था…!

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

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