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जीने की चाहत  – अनीता चेची

गौरी जल्दी करो 5:00 बज गए, मंदिर पर फिर भीड़ लग जाएगी और हमें स्कूल जाने में दूर हो जाएगी।’

‘ आती हूॅं बाबा मंजू तुम भी शोर मचा देती हो,

 एक घंटे में हम घर वापस आकर स्कूल पहुॅंच जाएंगे

 भोलेनाथ पर सबसे पहले जल मैं ही चढ़ाऊॅंगी   ,जरा धीरे बोल पिताजी ने सुन लिया तो डांट पड़ेगी और फिर कहेंगे,अरे बिटिया! तुम भी किन कर्मकांडो में उलछी रहती हो ,पढ़ाई पर ध्यान दिया करो, विद्यार्थी का असली कर्म पढ़ाई करना है ,पूजा पाठ तो बड़े बुजुर्गों के लिए है।’

 चलो जल्दी चलते हैं ।’

मंदिर में पहुंचते ही जैसे गौरी मीरा बन गई ,

बैठते ही  अराधना में लीन हो गई।

 ‘ गौरी पता नहीं तुम इतनी देर तक बैठकर भगवान से क्या बातें करती हो?

 मुझसे तो नहीं ठहरा जाता, तरह-तरह के विचार आते हैं और फिर घर जाने की चिंता होने लगती है।’

 क्या माॅंगती हूॅं?भगवान से कुछ भी तो नहीं , देर तक आंख बंद करके आनंद आता है।’

 

‘चल तू बता तू क्या माॅंगती है ?




मैं तो परीक्षा में पास होने की प्रार्थना करती हूॅं ,अगर अबकी बार पास हो गई तो भगवान भोलेनाथ को ₹11 का प्रसाद चढ़ाऊॅंगी।

 हे भोले नाथ! मुझे पास कर देना।

 मंजू मेरे मन में तो माॅंगने का कभी कोई ख्याल ही नहीं आता।

 ‘बस रहने दे मुझे तो तेरी बातें समझ नहीं आती।’

गोरी को देखते ही  पिताजी की भौंहें चढ़ गई।

अरे बिटिया ! तुम मंदिरों में घूम रही हो ,

पता नहीं हमारा देश मानसिक गुलामी से  कब आजाद होगा ?

बिटिया विज्ञान और कर्म में विश्वास रखो ,

परमात्मा हम सब के भीतर है और तुम बाहर ढूॅंढती फिरती हो।’

‘गौरी की माॅं तुमने इस लड़की को बिगाड़ कर रख दिया है

 जब देखो मंदिर के चक्कर काटती रहती है, इसका ध्यान बिल्कुल भी पढ़ाई में नहीं है।

 पढ़ती तो रहती है और क्लास में  अच्छे नंबर भी लाती है आप पर क्या जोर पड़ता है ?जिसकी जैसी श्रद्धा वह वैसे ही करेगा’।

इसके  संस्कार देखकर तो मुझे लगता है यह कोई योगिनी बन कर गलियों में घूमेगी।

कुछ दिन की बाद इसका ब्याह रचाऊॅंगा , गृहस्थी में सब कुछ भूल जाएगी।’

 कुछ दिन बाद ही पिताजी ने गौरी की शादी शंकर से कर दी ।शंकर भी पिता जी के विचारों वाले जैसा ही था। मूर्ति पूजा के खिलाफ ।गौरी और शंकर के विचार बिल्कुल नहीं मिलते थे। गौरी को इस तरह से पूजा पाठ में लीन देखकर शंकर को बुरा लगता।

 वह कहता ‘

गौरी अपनी गृहस्थी पर ध्यान दो, परमात्मा के लिए तो बुढ़ापे का समय भी है।

 गौरी सोचती पिताजी और इनकी बातें कितना मेल खाती है ।

यह क्या जाने  मुझे भगवान की भक्ति जीने की चाहत प्रदान करती है।’

एक दिन सोमवार को सुबह 4:00 बजे शंकर को बस से दूसरे शहर जाना था। बस यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी। थोड़ी दूर जाकर ही बस डिवाइडर से टकराकर पलट गई। बहुत सारे यात्री मारे गए परंतु शंकर को मामूली सी खरोच आई। उस दिन उसने मौत का तांडव अपनी आंखों से देखा।

 घर आकर देखा  गौरी भोले नाथ पर जल चढ़ाते हुए भजन गा रही थी।

गौरी की ऐसी श्रद्धा  देखकर और खुद को मौत के मुंह से निकलता देख

शंकर गौरी की आस्था के सामने नतमस्तक हो गया ।अब वह समझ गया था, इस संसार में कोई दिव्य शक्ति है। जो हम सब पर अपनी कृपा कर जीने की चाह प्रदान करती है।

अनीता चेची, मौलिक रचना

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