जेठानी की अकड़ और देवरानी का स्वाभिमान – स्वाति जैन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : मालकिन मैं जा रही हूं , रमा की आवाज कान में पड़ी तो रुचिका बोली खाना खा लिया !!

हाँ मालकिन खा लिया रमा बोली !!

रूचिका बोली , मैंने तेरे बच्चों के लिए खीर डिब्बे में भरकर रखी हैं जरा लेते हुए जाना !!

रमा बोली मालकिन रोज – रोज आप कभी मुझे तो कभी मेरे बच्चों के लिए कुछ ना कुछ देती रहती हैं , जब घर यह सब लेकर जाती हुं तो बच्चे बहुत खुश हो जाते हैं , भगवान आपका भला करे मालकिन !!

रूचिका बोली रमा मुझे अच्छा लगता हैं यह सब करना !!

काश मैं पहले ही इस बात को समझ जाती मगर मेरी बुद्धि तो तब घास चरने गई थी इसलिए तो अनजाने में वह सब कर बैठी जो मुझे नहीं करना चाहिए था !!

रमा बोली क्या हुआ मालकिन ?? क्या कर बैठी आप ??

रूचिका चुप हो गई और बोली कुछ नहीं रमा , तु कल समय पर आ जाना , तु होती हैं तो घर में मन लगा रहता हैं !!

रूचिका इस बड़े बंगले की मालकिन , बच्चे दोनों अमेरिका में सेटल थे और पति केशव सीधे रात को दस बजे घर आते थे !!

केशव की फैक्टरी दूरी पर थी इसलिए सुबह का टिफिन रुचिका साथ ही दे देती थी !!

केशव की ड्यूटी सुबह दस से रात दस बजे तक की थी !!

रुचिका का इतने बडे बंगले में अकेले दम घुटता था !!

आज रात को रुचिका केशव से बोली केशव मुझे नहीं रहना यहाँ अकेले , बच्चे भी बाहर चले गए और तुम भी घर पर नहीं रहते !!

मैं अकेले बहुत बोर होती हूं !!

तुम रमेश भैया और रेशमा से बात करो ना शायद वे यहाँ वापस आ जाएं , फिर से हम सब एक साथ रहेगें !!

रमेश , केशव का छोटा भाई और रेशमा, रूचिका की देवरानी थी! यह संयुक्त परिवार बरसों साथ में रहा मगर केशव के माता – पिता के मरने के बाद दोनों भाई अलग हो गए थे !!

रमेश और रेशमा दोनों अलग होने के बाद किराए के मकान में रहते थे !!

केशव बोला रूचिका तुम ही तो अलग होना चाहती थी !!

मेरे पैसों, मेरे बंगले और मेरी हर चीज पर तुम्हें हक चाहिए था !!

अब वह सब मिल तो गया तुम्हें !!

तुम्हें क्या लगता हैं वे लोग वापस आएँगे ??

तुम्हें तुम्हारी देवरानी ने ऐसा छोड़ा कि पलटकर वापस ना देखा !!

रुचिका को अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हुई और वह अतीत के गलियारे में चली गई !!

रुचिका और रेशमा दोनों जेठानी – देवरानी कम बहनें ज्यादा लगती थीं !! दोनों की शादी में भी बस दो साल का ही फर्क था इसलिए दोनों की खूब पटती थी !!

सास विमला जी भी दोनों की जोड़ी की बलाईयाँ लेतीं क्यूंकि उन दोनों की वजह से उनका संयुक्त परिवार आबाद था !!

केशव बड़ा भाई होने के साथ – साथ घर का कर्ता – धर्ता भी था , उसकी फैक्टरी जोरों में चलती थी और विपरीत रमेश एक साधारण सी कंपनी में नौकरी करता था !!

केशव रमेश को अपने साथ फैक्टरी में लेना चाहता था मगर रमेश अपनी साधारण नौकरी में खुश था !! उसे कमाने की बहुत लालसा ना थी !!

रेशमा भी रमेश से परेशान थी वह भी चाहती थी कि रमेश यह छोटी नौकरी छोड़कर कुछ बड़ा करे मगर रमेश नहीं माना !!

रेशमा और रमेश में अक्सर इस मसले को लेकर लड़ाई हो जाती , रेशमा चाहती थी कि रमेश केशव भैया की फैक्टरी जॉइन कर ले मगर रमेश कभी कुछ बड़ा करना ही नहीं चाहता था , वह अपनी साधारण नौकरी से बहुत खुश था !!

रेशमा , रमेश से कहती भी थी कि कहीं ऐसा ना हो कि आपकी छोटी सी नौकरी के कारण कल के दिन हमारे बच्चे बड़े होकर आप पर सवाल दागे कि संयुक्त परिवार होने पर भी पापा एक साधारण नौकरी क्यूं करते थे जबकि ताऊजी फैक्ट्री संभालते थे !! पापा भी तो ताऊजी के साथ उनकी फैक्ट्री में उनका साथ दे सकते थे , यह सब सुनने के बाद भी रमेश के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और वह उसी कंपनी में नौकरी करता रहा जहां वह पहले से करता आया हैं !!

प्राइवेट कंपनी होने के कारण एक दिन रमेश की नौकरी चली गई , जिस वजह से रेशमा बहुत परेशान हो गई तब रूचिका बोली फिक्र मत कर पगली जिंदगी का हर एक दिन अच्छा हो यह कोई जरूरी नहीं , शायद भगवान भी रमेश भैया के लिए कुछ अच्छा चाहते हैं !!

केशव ने फिर से रमेश को अपने साथ लेना चाहा मगर रमेश का वापस वही जवाब था और रमेश दूसरी नौकरी की तलाश में निकल गया !!

रमेश को नौकरी नही मिली तब तक केशव पूरा घर अकेले चलाता रहा !!

एक दिन रमेश को फिर से वही साधारण नौकरी मिल गई और रमेश फिर से काम पर जाने लगा !!

धीरे – धीरे दिन , साल गुजरने लगे और बीच में केशव के माता – पिता का भी देहांत हो गया !!

अब धीरे – धीरे परिस्थितियां भी बदलने लगी , केशव की फैक्ट्री जोरों में चलने लगी थी जिस वजह से घर में पैसों की बरसात हो चली थी !!

रूचिका को अपने पति की कमाई पर घमंड होने लगा था और वह देवर रमेश और देवरानी रेशमा को हीन दृष्टि से देखने लगी थी वैसे भी जिस सास – ससुर की वजह से यह संयुक्त परिवार आबाद था , वे तो अब रहे नही थे !!

एक दिन रुचिका के मन में ख्याल आया कि अगर मेरा पति घर का एक्स्ट्रा  खर्चा ना निकाले तो रमेश भैया अपने दम पर इतने खर्चे नहीं निकाल सकते !! यह फैक्टरी , यह बंगला इन सभी पर सिर्फ मेरा अकेली का हक है क्यूंकि मेरे पति की बदौलत ही तो यह घर , गाड़ी , शानो – शौकत हैं मगर रेशमा भी तो यहीं रहती है कल के दिन वे लोग हमसे हमारी सारी चीजों में हिस्सा भी माँग सकते हैं इसलिए अब रूचिका ने ठान लिया था कि वह कैसे भी रमेश और रेशमा को इस घर से निकाल कर ही दम लेगी !!

बस उसी दिन से रुचिका ने घर में कलह का वातावरण पैदा कर दिया !!

रूचिका के बच्चे बड़ी कक्षा में पढ़ते थे और रेशमा के बच्चे छोटी कक्षा में पढ़ते थे !!

एक दिन रूचिका बोली रेशमा तुम्हारे बच्चे बहुत डिस्टर्ब करते हैं मेरे बच्चों को , हो सके तो इन्हें अपने कमरे से ज्यादा निकलने मत दिया करो !!

रेशमा ने भी हामी भर दी और अपने बच्चों को रुचिका भाभी के बच्चों के कमरे में ज्यादा जाने नहीं देती थी !!

घर के काम हो , रसोई के काम हो या बाहर के काम सभी काम रुचिका ने अपने हाथ ले लिए और हर बात पर अपना शासन चलाना शुरू कर दिया !!

अब वह हर बात में रेशमा को सुनाने लगी थी , चाहे वह बिजली का बिल हो या खाने – पीने की चीजें हो !!

रूचिका हर बात में रेशमा के जताने लगी थी कि उसके पति के पैसों के दम पर ही रमेश भैया और रेशमा जी रहे हैं वर्ना उनकी खुद की कुछ औकात नही हैं !!

हद तो तब हो गई जब रुचिका आस – पड़ोस के लोगों को कहने लगी कि यदि उसका पति घर के खर्चे पुरे ना करें तो उसके देवर और देवरानी के तो खाने के भी लाले पड़ जाए !!

रेशमा के कानों तक भी इन बातों की भनक लगी तो उसे बहुत बुरा लगा , वह सोचने लगी क्या सचमुच यह वही जेठानी हैं जिसने कभी मुझे अपनी बहन माना था !!

इंसान पैसे के घमंड में इतना चकनाचूर हो जाता हैं कि रिश्तों का महत्व भी भूल जाता हैं मगर वह कर भी क्या सकती थी उसने तो कई बार रमेश को यह साधारण नौकरी छोड़ने की सलाह दी थी मगर रमेश नहीं माना था जिसकी वजह से आज उसे यह सब सुनना पड़ रहा था !!

रेशमा को भी धीरे – धीरे सब कुछ समझ आ गया , उसने रमेश से बात की और दोनों ने घर से अलग होने का फैसला कर लिया !!

केशव रमेश के इस फैसले से खुश नहीं था , वह यह परिवार बिखरने नहीं देना चाहता था !!

जब उसने भाई को रोकने की कोशिश की रूचिका बोली जिसकी जितनी चादर हैं उसे उतने ही पाँव पसारने चाहिए !!

रमेश भैया की साधारण सी नौकरी में भी उन्हें और रेशमा को बंगले का सुख नसीब हो रहा है शायद यह बात इन दोनों को समझ आ गई है !!

 

रमेश और रेशमा का यह बात सुनकर दिल खट्टा हो गया और उन्होने कभी पलटकर इस घर की ओर नहीं देखा !!

रुचिका जो चाहती थी उसे सब मिल गया और वह खुश हो गई !! वह यह सोचकर खुश थी कि अब यह सारी जायदाद , बंगले और पैसों की मालकिन वह अकेली ही हैं !! धीरे – धीरे वक्त गुजरता गया और रूचिका के बच्चें विदेश जा बसे और केशव अपनी फेक्ट्री में ओर व्यस्त हो गया , अब घर में पुरे दिन कोई नहीं रहता था उसके अलावा !!

वही बंगला जो हमेशा सब के शोरगुल से आबाद था , आज यही बंगला रूचिका को अकेले में काटने दौड़ता है !!

देवरानी रेशमा और रूचिका के रिश्ते खट्टे हो चुके थे इसलिए इतने सालों से बात – चीत भी बंद थी !!

रमेश और रेशमा जब यह घर छोड़कर गए थे तो वह एक किराए के छोटे से मकान में रहने लगे थे , केशव ने भाई की मदद करनी चाही थी मगर स्वाभिमानी रमेश और रेशमा ने बिल्कुल मना कर दिया था कि उन्हें एक रुपया भी नहीं चाहिए , वे लोग अपने दम पर जी लेंगे !!

रेशमा घर पर पापड़ बेल कर बेचने का काम करने लगी थी और रमेश भी अच्छी कंपनी में जॉब पर लग गया था , इस तरह दोनों मेहनत – मजदूरी कर अपना और अपने बच्चों का खर्चा निकाल लेते थे !!

रुचिका के आस – पड़ोस के लोग जो रेशमा से भी बात – चीत करते थे , वे लोग रूचिका को रमेश और रेशमा की खबर दे दिया करते थे !!

रूचिका और रेशमा जब से अलग हुए थे तब से उनके बीच बात – चीत एकदम से बंद थी मगर आज रूचिका ने इतने सालों बाद सोचा कि क्यूं ना वह रमेश और रेशमा से फोन करके बात करें और उन्हें वापस यहां रहने बुलाए !!

वह फोन करने वाली ही थी कि विदेश से उसके बेटे अमित का फोन आया और वह बोला मम्मी , मुझे यहां विदेश में एक लड़की पसंद आ गई हैं , उसका नाम ऐना हैं और मैं उससे शादी करना चाहता हुं !!

रूचिका बोली बेटा , तु जब भारत आएगा तब हम आराम से बात करेंगे , इतने बड़े फैसले फोन पर नहीं लिए जाते !!

अमित बोला मम्मी , मैं भारत आना नहीं चाहता इसलिए तो आपको यह बात फोन पर ही बता रहा हुं !!

एक महिने बाद मैं और ऐना शादी करने वाले हैं , आप पापा को बता दिजिएगा बस यहीं बताने फोन किया था और अमित ने फोन काट दिया !!

रूचिका तो यह खबर सुनकर बैचैन हो उठी थी , उसने तुरंत केशव को फोन करके सब बताया !!

केशव बोला रूचिका , बच्चों को विदेश भेजने का फैसला भी तो तुम्हारा ही था , मैंने तो तब भी मना किया था कि हमारा भारत भी एजुकेशन के मामले में कुछ कम नहीं हैं मगर तुम मानी कहां थी !!

तुमने कहा था हमारे पास इतना पैसा हैं , हमें हमारे बच्चों को विदेश भेजना चाहिए !! तुम दुनिया वालों को दिखाना चाहती थी कि तुम्हारा पति इतना कमाता हैं , तुम्हारे पास इतना पैसा हैं कि तुम्हारे बच्चे विदेश में पढ़ते हैं , इन सब बातो की सजा भुगतने का समय आ गया हैं शायद रूचिका !!

रूचिका फोन रख खुब रोने लगी और सोचने लगी कि क्यूं पैसो के नशे ने उसे अंधा बना दिया था !! क्यूं वह रिश्तों को समझ नहीं पाई ??

आज शायद इसलिए ही अकेली पड़ गई थी , कोई भी तो साथ नहीं दे रहा था उसका !!

रूचिका ने विदेश में रह रही बेटी मान्या को फोन किया और कहने लगी मान्या तुम यहां कब आ रही हो ??

मान्या अपने फ्रेंडस के साथ पब में पार्टी में बिजी थी , वह बोली मम्मी अभी डिस्टर्ब मत करो प्लीज और रही बात वहां आने की तो मम्मी एक बार जो विदेश में बस जाते हैं वे लोग वापस भारत में नहीं बस पाते हैं !!

रूचिका बोली मान्या मुझे तुम सबकी बहुत याद आ रही हैं !!

मान्या बोली मम्मी इमोशनल फूल मत बनो प्लीज !! चलो बॉय मुझे पार्टी एंजाय करने दो !!

रूचिका ने कैसे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी , उसे आज यह बात समझ आ रही थी !!

वह उदास होकर बैठी थी कि पड़ोस वाली सोम्या जी घर आई और बोली अरे रूचिका सुना कुछ तुमने !!

रूचिका अपनी उदासी छुपाते हुए बोली क्या हुआ सौम्या ??

तुम्हारे देवर रमेश का बेटा आई . आई . टॉपर तो था ही , उसका जॉब भी गूगल कंपनी में लगा हुआ था , अब तो उसने तुम्हारे जैसा या यूं कहो तुमसे भी अच्छा बंगला खरीद लिया हैं !!

मैं आज सुबह उन्हीं के घर गई थी , चारों बहुत खुश थे भई परिवार हो तो ऐसा !!

रेशमा के दोनों बच्चे बहुत होशियार निकले , इतने होशियार की मां – बाप की गरीबी ही दूर कर दी !!

रेशमा के बच्चों में संस्कार भी कूट – कूटकर भरे हैं !!

धन्य हैं ऐसे मां – बाप जो बच्चों को इतनी अच्छी परवरिश देते हैं !!

रूचिका एक अक्षर ना बोल पाई और सोचने लगी हां सच ही तो कह रही हैं सौम्या !!

जिन बच्चों ने अपने माता – पिता को इतनी मेहनत करते देखा और जिन बच्चों के खेलने – कूदने की उम्र में उन्हें चीजों को तरसना पड़ा होगा वह बच्चे होशियार निकलें और जिन बच्चों ने यहां सिर्फ ऐशो आराम और पैसा देखा , वे लोग अब विदेश से वापस भी नहीं आना चाहते !!

रुचिका आज अपने आप को बहुत तन्हा महसूस कर रही थी और उसे अपने किए की कीमत इस तरह चुकानी पड़ेगी , उसने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा था !!

रुचिका को अपने किए पर पश्चाताप था।

कभी – कभी रूचिका कामवाली बाई रमा से बतिया लेती थी और कहती थी रमा कभी भी जमीन – जायदाद के चक्कर में अपनों को मत छोड़ना क्यूंकि अपनों से ही घर आबाद है !!

दोस्तों , जेठानी – देवरानी में अक्सर यह बात देखने मिल जाती हैं कि अगर एक के पास पैसा ज्यादा हो तो वह अपनी अकड़बाजी दिखाने में चूकती नहीं मगर लक्ष्मी तो चंचल हैं आज अगर उसके पास हैं तो कल के दिन किसी ओर के पास भी हो सकती हैं वह यह भूल जाती हैं !!

कभी – कभी लोग जमीन – जायदाद और पैसों के लालच में आकर अपनों से ही रिश्ता तोड़ देते हैं मगर कभी ना कभी उन्हें इन बातों का खामियाजा भुगतना पड़ता हैं !!

दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें तथा मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करें !!

आपकी सखी

स्वाति जैन !!

#घर-आँगन 

3 thoughts on “जेठानी की अकड़ और देवरानी का स्वाभिमान – स्वाति जैन : Moral stories in hindi”

    • Paise se mohabbat me
      Aakhir Rishta todd Devrani Ko alag ker Kya Paya??
      Yaha Pita Apane Sapane??
      Apani Patni ke liye time Nahi deker!!!!!
      Khud Ki khushi?? Maarker Bete, Betiya ke liye Sapane dekhe,aaj Pita ke gujar gaye tabb??? Koi Nahi Thha Dosto bhi!!! Samaz ke darr Se ushki patani Ko kya madad kare !!!!!!

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