जलन – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जलन ,ईर्ष्याभाव केवल कहानियों में ही नहीं,अपितु वास्तविक जीवन  में भी है।प्रस्तुत कहानी दो बहनों में आपसी जलन  भावना की है।रामप्रसाद  और शान्ति देवी को दो बेटे और दो बेटियाँ थीं।उनकी दोनों बेटियों में  उम्र का फासला मात्र  दो साल का था ।बड़ी बेटी रिया देखने में जितनी सुन्दर थी,व्यवहार में उतनी ही शांत और आज्ञाकारिणी भी।छोटी बहन निशा रुप-रंग में साँवली-सलोनी और नटखट।रामप्रसाद  किसान थे,परन्तु बेटियों के पालन-पोषण में कभी कोई कमी नहीं रखते थे।दोनों बहनें बचपन में एक-दूसरे से जितना प्यार करतीं,उतना ही झगड़ा भी।परन्तु  दोनों बहनें हमेशा साथ ही रहतीं,कहीं अकेली नहीं जातीं।गाँव के स्वछंद वातावरण में दोनों हिरणी-सा उछला करतीं।

समय के साथ दोनों बहनें बड़ी हो रहीं थीं। रिया जैसे-जैसे बड़ी हो रही थी,वैसे-वैसे उसका रुप-रंग  खिलता जा रहा था।हिरणी-सी आँखें,गोरा रंग,लम्बा कद उसकी सुन्दरता में चार चाँद  लगा रहे थे।उसकी खिलखिलाहट  जल-तरंग जैसी मधुर  थी। रिया पढ़ने में भी बहुत तेज थी,परन्तु उसे किसी बात का घमंड  नहीं था।

इसके विपरीत  निया को पढ़ने में मन नहीं लगता था।इस कारण निया स्कूल और घर दोनों जगह डाँट खाती,जबकि रिया की सभी प्रशंसा करते। प्रत्येक जगह रिया  की प्रशंसा सुनकर निया में बहन के प्रति जलन की भावना उत्पन्न होने लगी।दोनों बहनों को साथ देखकर लोग निया की भावना की परवाह किए वगैर कह उठते -“तुम दोनों सगी बहनें नहीं लगती हो।दोनों के रुप-रंग और स्वभाव में जमीन-आसमान का अंतर है!”

बचपन में तो बड़ी बहन रिया की प्रशंसा से निया को कोई फर्क नहीं पड़ता था,परन्तु जैसे-जैसे बड़ी होने लगी,वैसे-वैसे उसके मन में बड़ी बहन के प्रति जलन-भावना तीव्रतर होती गई। उसमें हीनभावना  भी पनपने लगी,जिसके कारण पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता था।

निया के माता-पिता उसे प्यार से समझाते हुए कहते -“बेटा!इंसान के रुप-रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता है।बस इंसान में आपसी प्यार और सद्भाव होनी चाहिए। “

निया समझने की बजाय माता-पिता पर नाराज होते हुए कहती -” मैं सब समझती हूँ।मैं सुन्दर नहीं हूँ,इसी कारण  सभी दीदी को ही प्यार करते हैं और प्रशंसा भी उसी की करते हैं।”

निया माता-पिता की बातें समझना ही नहीं चाहती थी,ऊपर से उसके दोनों बड़े भाई उसे ही चिढ़ा देते थे।

दोनों बहनें माता-पिता के साथ  शहर से कपड़े खरीदकर लातीं।उल्लास के साथ  अपने भाईयों को दिखातीं।छोटा भाई मजाक में कह उठता -“रिया तो कोई भी रंग पहन लेगी,तो उसपर फबेगा।निया!तू क्यों गाढ़े रंग के कपड़े ले आई है?”

मजाक में कही गई बातें निया के  हृदय में शूल की भाँति चुभ जातीं।बड़ी बहन के प्रति जलन भावना और उग्र हो उठती।

रिया हमेशा बड़ी बहन की भाँति निया की देखरेख और प्यार  करती,परन्तु निया को बड़ी बहन का प्यार दिखावा लगता।

ग्रेजुएशन करने के बाद दोनों बहनों की शादी हो गई। रिया की शादी अमीर  घराने के राकेश से हो गई। रिया की ससुराल में सास-ससुर, ननद-देवर सभी थे।पति राकेश का प्यार पाकर  रिया काफी खुश थी।कुछ समय बाद रिया ने जुड़वा बच्चे एक बेटा और बेटी को जन्म दिया।ससुराल में उसका जीवन खुशी-खुशी बीत रहा था।

निया की भी शादी उसी शहर में संपन्न व्यापारी परिवार में हुई। निया भी ससुराल मेंखुश थी।शादी के कुछ दिनों बाद  निया ने अपनी सास से कहा -” माँजी!कुछ दिनों से मेरे पेट में काफी दर्द हो रहा है!”

सास -” अरे बहू!आजवाइन का पानी पी लो।गैस का दर्द है,ठीक हो जाएगा।”

रात में अचानक से निया की तबीयत काफी खराब हो गई। आनन-फानन में पति अमित उसे अस्पताल ले गया।अस्पताल के डाक्टरों ने सभी तरह की जाँच के बाद  कहा -” अमित जी! आपकी पत्नी की फैलोपियन ट्यूब में ही बच्चा ठहर गया था।आपलोगों ने आने में देरी कर दी।एक फैलोपियन ट्यूब बर्स्ट  हो चुका है,दूसरा भी सिकुड़ चुका है।ऑपरेशन से पेशेंट तो ठीक हो जाएगी,परन्तु कभी माँ नहीं बन पाएगी।”

अस्पताल से आने के बाद  निया गुमसुम रहने लगी।उसकी आँखों की नमी सूख गई। रह-रहकर डाॅक्टर की बातें  कि पेशेंट कभी माँ नहीं बन सकती,उसके कानों में गरम पिघले शीशे के समान लगतीं।सास-ननद के तानें

 भी उसके दिल को छलनी कर देते।

रिया अपने दोनों बच्चों को यह सोचकर  निया के पास लाती कि शायद बच्चों को देखकर निया का दिल बहल जाएँ!परन्तु बच्चों को देखकर भी निया की आँखों में जलन का सैलाब नजर आता।वह ऊपर से तो शांत रहती,मगर अन्दर-ही-अन्दर जलन उसे झुलसा रही होती।बहन के जुड़वा बच्चों को देखकर उसे बहन के भाग्य पर ईर्ष्या होती।वह भगवान से शिकायत करते हुए कहती -” हे ईश्वर!आपने बड़ी बहन की अपेक्षा मुझे रुप-रंग देने में तो कंजूसी की ही,भाग्य लिखने में भी मेरी बहन का ही साथ दिया।मैं सबके लिए उपेक्षित ही बनकर रह गई! मैं बेऔलाद हूँ और मेरी बहन के चाँद से दो प्यारे बच्चे हैं!”

कुछ समय बाद रिया ने दुबारा जुड़वा बच्चे को जन्म दिया।इस बार भी एक बेटा और एक बेटी थी।रिया काफी खुश थी।उसने अपने पति राकेश से कहा -“निया और अमित को  अस्पताल में बुलवा दो।”

राकेश निया के दुखी मन को समझता था,इस कारण उसने कहा-” रिया! घर चलकर उन्हें बुलाते हैं।”

परन्तु रिया ने जिद्द करते हुए कहा -“नहीं राकेश !अभी अस्पताल में ही दोनों को बुलाओ।”

निया और अमित राकेश के बुलावे पर अस्पताल पहुँच जाते हैं।रिया ने एक बच्चे को निया की गोद में और दूसरे को अमित की गोद में देते हुए कहा -” निया!मेरी प्यारी बहन,मैं तो दूसरी बार माँ बनना ही नहीं चाहती थी,परन्तु तुम्हारा दर्द मुझसे देखा नहीं जाता था।तुम्हारी गोद हरी करने के लिए ही दुबारा मैंने माँ बनने का फैसला किया।ईश्वर का इंसाफ देखो,तुम्हें भी एक साथ दो बच्चे मिल गए। सँभालो इन्हें।”

निया ईर्ष्या-जलन की भावना त्यागकर बहन के गले लग जाती है।बच्चे को गोद में लेकर निया सोचती है-“जीवन का सफर भी कितना अजीब है!पलभर में कितना कुछ घटित हो जाता है!अचानक  कभी खुशी गम में बदल जाती है,कभी गम के बीच खुशियों का सोता फूट पड़ता है!”

बड़ी बहन के त्याग  से मानो उसके दिल में वर्षों से जमी हुई जलन की काई झटके में ही मिट गई। स्नेह और रिश्ते का शीशा जिसपर जलन की धूल जम गई थी,साफ हो गया।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)

#जलन

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