इज्ज़त – कल्पना मिश्रा

“रमा,जल्दी से कुछ खाने को दे दो,,,देर हो रही है,,एक मरीज़ को दस बजे का समय दिया था,पर देखो दस यहीं बज गए,,,”  डॉक्टर नीरज ने कहा तो रमा भड़क गई।

“जब देखो तब देर हो जायेगी, देर हो जायेगी। ऐसा करो,वहीं कमरा ले लो,,मरीजों को आराम हो जायेगा। दुनिया के तमाम डाक्टर पैसे कमा रहे हैं,घूम रहे हैं,उनकी बीबियाँ ऐश कर रही हैं और एक ये,,,,घर के लिए समय नही है,दानवीर कर्ण बने हैं चाहे घर में भांगी भूंजी न हो लेकिन गरीबों की सेवा करनी है,,” रमा बड़बड़ाने लगी।

“मैं डॉक्टर हूँ। अपने मरीजों का ध्यान तो रखना ही होगा न? मेरा ही नही,ये हर डॉक्टर का फ़र्ज़ है। कई कई बेचारे मरीज़ तो इतने गरीब होते हैं कि वो अपना घर,गहने, जमीन जायदाद बेचकर इलाज कराने आते हैं। ऐसे लोगों से रुपया कमाने वाले डॉक्टर नही, व्यापारी होते हैं।  

पता है? जब एक मरीज़ जब ठीक होकर जाता है तो उसकी आँखों में प्रेम और इज्ज़त के साथ साथ मन से निकला हुआ आशीर्वाद कितना सुकून देता है,,ये मैं बता नही सकता। अफ़सोस कि ये तुम समझ नही सकी।” वह धीरे से बुदबुदाये।

“समझना भी नही चाहती,, क्योंकि उससे किसी की ज़रूरतें पूरी नही होती..और वैसे भी हमेशा पैसे वालों की इज्ज़त होती है तुम्हारे जैसे फ़कीरों की नही।अगर फीस लेना व्यापार है तो तुम भी व्यापारी बन जाओ” वह भुनभुनाई,,, “न कोई स्टैंडर्ड, न बंगला..न बड़ी गाड़ी,,, मीनाक्षी को देखो उसके  पति भी डॉक्टर हैं। उन्होंने कितना शानदार बंगला बनवाया और इस बर्थडे पर उसे हीरे का हार भी दिया है और एक तुम,,,”

“इज्ज़त पैसे से नही होती रमा। अच्छे आचरण, कर्मों से होती है” नीरव ने रमा का हाथ थाम लिया,,”लोग सामने भले ही इज्ज़त करें पर वही लोग पीठ पीछे न जाने क्या-क्या बोलते हैं,पता है तुम्हें?ऐसे लोगों को कोई इज्ज़त नही देता।”

“उफ्फ!! तुमसे कौन बहस करे” हाथ छुड़ाकर वह कमरे में चली गई।




“तुम समझना ही नही चाहती तो मैं कुछ नही कर सकता!  खैर,,, मैं चलता हूँ, वहीं कुछ खा लूंगा”,,,कहकर नीरव चले गए तो नीरा के आँसू बह निकले।

थोड़ी देर बाद ही वह संयत हुई तो उसे अपने ऊपर ग्लानि होने लगी,,”हाय,क्यों बहस करती हूँ,,,बेचारे बगैर खाये चले गए” लेकिन अगले ही पल उसके विचार फिर से बदल गये,,, “एक तरह से अच्छा ही हुआ जो ऐसे ही चले गये। बड़ी बड़ी बातें करते हैं,,आज अपनी आँखों से देखेगी कि मरीज़ कितनी इज्ज़त करते हैं!

उसने टिफिन पैक किया और क्लीनिक पहुंच गई। अंदर मरीज थे तो वह वहीं बाहर मरीज़ों के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।

“तुमको क्या हुआ है बिटिया?” तभी पास बैठी बुजुर्ग महिला ने उससे पूछा तो वह कुछ न बोली बल्कि पलटकर उसी से प्रश्न किया,,,” ये डॉक्टर कैसे हैं?”

“अरे बड़े अच्छे और सीधे हैं डॉक्टर साहब,,,हमारे बेटे की बचने की कोई उम्मीद नही थी लेकिन इन्होंने दिन-रात एक करके हमारे बेटे को दुबारा जिंदगी दी। वो इंसान नही देवता हैं देवता। भगवान करें डॉक्टर साहब की उम्र खूब लंबी हो” कहते हुए उन्होंने धोती के पल्लू से अपनी आँखें पोंछ ली।

“सही कह रही हैं अम्मा। बहुत अच्छा स्वभाव है डॉक्टर साहब का। हमारे बाबू को भी जिया लिया इनने।  जैसे तैसे करके हमने रकम इकट्ठा की, फिर भी पैसे कम पड़ गये तो उन्होंने हमारी मदद करी। अपनी फीस नही ली और रुपये पैसे से भी मदद की”  तभी पास बैठा युवक बोला “भगवान इन्हें और इनके परिवार को खूब खुश रखें।हम गरीब लोग कुछ और तो दे नही सकते, बस दुआ ही दे सकते हैं।” उसके हाथ जुड़ गए।

फिर लोग आते गये,तारीफ़ के पुल बांधते रहे, दुआयें देते रहें। इतनी इज्ज़त, इतना प्यार देखकर रमा का दिल भर आया। सुबह क्या-क्या नही कहा था पति को लेकिन वो बेचारे,,,,” आत्मग्लानि से वह भर उठी। सच में असली इज्ज़त पैसे से नही बल्कि अच्छे स्वभाव और परोपकार से मिलती है।

#इज्ज़त

कल्पना मिश्रा

कानपुर

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