इज़्ज़त पर बट्टा – पूजा मनोज अग्रवाल

” गोपाल दास जी घर के मेन गेट पर मुझे सिर्फ सफेद लिली की ही डेकोरेशन चाहिए ,,,, साथ ही साथ वहां से बंगले की एंट्रेंस तक सफेद गुलाबों का गलीचा बिछा दो ,,,”  

“और रामदीन काका आप इस बात का खास ख्याल रखिएगा ,,,आज डिनर के मेनू में वंश और मेहर के फेवरेट डिशेज ही हों  ” ।

और सुनीता तुम ,,,? 

तुम क्यों मेरे पीछे पीछे घूम रही हो। ?,,,,, जाओ जाकर वंश और मेहर के लिए पूजा का थाल तैयार करो,,।

रेशमा जी आवाज में खुशी की खनक थी ।  पूरा घर सुंदर फूलों की महक से सराबोर हो रहा था ,,,और रसोईघर से आने वाले व्यंजनों की भीनी भीनी खुशूबू मन को लालायित कर रही थी ।  

रेशमा जी घर के सभी नौकरों को काम की फेहरिस्त पकड़ाए ,,,,नवविवाहित जोड़े  के स्वागत की तैयारियों पर नजरें गड़ाए हुए थी,,।

उनके बेटे वंश ने  मेहर को कॉलेज में ही पसंद कर लिया था । दोनों ने ही अपने-अपने परिवारों को इस प्रेम विवाह के लिए रजामंद कर लिया । दोनों परिवार समाज में नामी गिरामी धनाढ्य परिवारों की गिनती में आते थे , तो किसी के पास इस विवाह प्रस्ताव को न मानने की कोई वजह नहीं थी ।  मेहर भी आधुनिक विचारों की पढ़ी-लिखी और सुंदर लड़की थी , जात – बिरादरी भी एक ही थी ,, इसलिए दोनों का विवाह हंसी खुशी संपन्न हो गया ।

हिमाचल के मंडी शहर में किशन चंद जी का ड्राई फ्रूट्स का बड़ा कारोबार था  ,, । शहर के बड़े उद्योगपतियों में उनका नाम अग्रणी था । परिवार में रेशमा जी जैसी सुघड़ व सुशील पत्नी , दो नेक दिल व होनहार बेटे एक प्यारी बेटी  , समाज में मैं अच्छा खासा मान- सम्मान और इज्ज़त । कुल मिलाकर किशन चंद जी अपने परिवार के साथ एक बेहतरीन आरामदायक जिंदगी जी रहे थे ।  

कुछ ही देर में वंश और मेहर की गाड़ी घर के सामने आकर रुकी,,, दोनों का भव्य स्वागत किया गया   ,,,। मेहर भी अपनी खुशी किस्मत पर इतरा रही थी कि उसे इतना प्रेम करने वाला ससुराल पक्ष मिला  । 

   विवाह के कुछ दिन तक सब अच्छे से चलता रहा परंतु कहते हैं ना समय कभी एक सा नहीं रहता,,। रेशमा जी परिवार और संस्कारों की बातों पर जोर देती और मेहर ,, वह तो अपनी जिंदगी आजादी से जीना चाहती थी ।




आए दिन मेहर के छोटे-छोटे कपड़े पहन कर बाहर निकलने पर किशन चंद जी ने एतराज उठाया तो रेशमा जी ने कहा ,,,” सुनो जी,,! क्यों पुराने दकियानूसी विचारों में पढ़ते हो कपड़ों में क्या रखा है । अगर आजकल के बच्चे इस तरीके से खुश हैं तो हम क्यूं पुरानी परंपराओं के चलते उनकी खुशियां खराब करें । “

” और फिर वैसे भी हमारी बेटी भी तो ऐसे कपड़े पहनती है ,,,तो बेटी और बहू में क्या फर्क करना,,। ” 

रेशमा जी की बात सुनकर किशन चंद जी ने कुछ समय के लिए चुप्पी साध ली । जैसे-जैसे समय बीतता गया मेहर का स्वभाव दिन प्रतिदिन परिवर्तित होता गया । वह ससुराल में किसी की बात नही सुनती ,,अब वह अपने दोस्तों के साथ पार्टी , बार  , डिस्को इत्यादि में अधिक समय व्यतीत करने लगीं ,,। 

बात धीरे- धीरे बढ़ती गई , मेहर अब जुआ खेलने के साथ ही साथ सट्टे में भी पैसा लगाने लगी थी ,,,,उधर वंश मेहर की इन नित नई आदतों से तंग आ चुका था । इन सभी बातों से  तंग आकर उसने इस बारे में अपने ससुराल वालों से बात की,,, परन्तु उन्होंने तो उल्टा वंश को ही बुरा भला कह कर फ़ोन पटक दिया ।

 अब तो पानी सिर से ऊपर गुजर गया था ,,, एक दिन मेहर ने सट्टे में बीस लाख की बड़ी रकम लगाई और वह सट्टे में हार गई । 

 अब मेहर को पैसा चुकाने की चिंता सताने लगी थी,,, कि वह इतनी बड़ी रकम का बंदोबस्त कहां से कर पाएगी,,,। उस शाम वह शराब के नशे में धुत्त होकर घर आई,,,, । शराब का नशा उतरा तो बीस लाख रुपए चुकाने का खतरा फिर से सिर पर मंडराने लगा  । वह वंश के पास आकर रोने लगी और बोली,,, ” वंश मुझे परसो तक हर हाल में बीस लाख रुपया चाहिए,,,।”

क्या ,,,? 

बीस लाख,,,? 

मेहर पागल हो गई हो क्या तुम,,,?

बीस लाख रुपए ,,,, मैं कहां से लाऊंगा इतनी बड़ी रकम,,, और पिता जी से बीस लाख रुपए मांगने का मतलब है उन्हें इसके पीछे की वजह बताना ,,, जो की असंभव है । 

 और तुमने तो मुझे मां बाप की नजरों में इतना गिरा दिया है ,,,लाख तो बहुत दूर की बात है वह मुझे बीस हज़ार भी नहीं देंगे । 

पैसा ना मिलने की बात सुनकर मेहर बौखला गई और वंश पर चीखने – चिल्लाने लगी,,,” तुम मुझे नहीं जानते वंश कि मैं क्या कर सकती हूं,,, और रही बात पैसे की तो वो तो तुम्हारा बाप भी देगा  ,,।




क्या कर लोगी तुम ,,,? वंश चीख पड़ा,,।

“अगर तुमने मुझे यह पैसे नहीं दिए तो मैं पुलिस में कंप्लेंट कराऊंगी कि तुम लोग मुझे दहेज के लिए प्रताड़ित कर रहे हो । और मेरे माता-पिता से दो करोड़ रुपए की डिमांड कर रहे हो , जो वे देने में असमर्थ हैं,,, जब तुम्हारा सारा परिवार जेल की चक्की काटेगा ना तो तुम लोगों का सारा नशा ढीला हो जाएगा । ” 

यह कह कर वह पैर पटकती हुई अपने कमरे की ओर चली गई ,, ।

छोटी मोटी रकम की भरपाई तो वंश कर दिया करता था, परंतु इतनी बड़ी रकम पिता जी से लेना असंभव था और मेहर के कहे अनुसार  घर के बिजनेस में हेराफेरी करके पैसे निकालना भी उसे मंजूर नहीं था ,,, । 

उसने मेहर को समझाने की कोशिश की और कहा ” देखो मेहर आजतक मैंने तुम्हारी गलतियों में भी तुम्हारा साथ दिया है परंतु अब बात हद से ज्यादा बढ़ती जा रही है ,,,जो तुम कर रही हो वह हम दोनो के परिवारों की साख पर बट्टा लगा सकता है ,,, ।

मेहर गुस्से में आग बबूला हो रही थी उसने वंश और उसके परिवार वालों को देख लेने की धमकी दी और अपना कमरा लॉक कर लिया ।

मेहर अब क्या कदम उठाने वाली है इसका वंश को बिल्कुल भी भान ना था ,,उसने मेहर की धमकी को हल्के में ले लिया था । कुछ देर में वह किसी काम के सिलसिले में मंडी शहर से बाहर चला गया । 

शाम तक मेहर अपना मुंह फुलाए बैठी रही ,,,।

रेशमा जी के बार-बार बुलाने के बाद भी मेहर ने  दरवाजा नही खोला । 

रेशमा जी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी । उन्होंने मेहर के लिए खाने की प्लेट लगवाई और उसके कमरे का दरवाजा खटखटाने लगी ,,,। बहुत देर तक आवाज लगाने के बाद भी मेहर ने दरवाजा नहीं खोला यह देखकर रेशमा जी दिल घबराने लगा था,,,।

अंदर किसी प्रकार की आहट या आवाज ना होने पर रेशमा जी ने दरवाजा बाहर से तुड़वा दिया गया । 

परंतु,,,यह क्या ,,,?

मेहर तो गले में फंदा डाले पंखे पर झूल रही थी,,।

अंदर का यह वीभत्स दृश्य देख कर रेशमा जी बेहोश होकर गिर पड़ीं। 

आनन-फानन में उसकी बॉडी को घर के नौकरों ने नीचे उतार लिया ,,,मेहर अब दुनिया छोड़कर जा चुकी थी । घर के रसोइये रामदीन काका ने पुलिस को और मेहर के मायके वालों को भी कॉल कर दिया । पुलिस घर आकर मेहर की डेड बॉडी पोस्टमार्टम के लिए ले गई । 

मेहर के मायके वालों ने  किशन चंद जी पर दहेज में दो करोड़ रुपए मांगे जाने का इल्जाम लगाया ,,, और रेशमा जी पर यह इल्जाम लगाया गया कि उन्होंने जानबूझकर मेहर को मरवा कर फंदे पर लटकाने के बाद वंश को घर से बाहर भेज दिया था। 

किशन चंद जी को केस की सुनवाई तक जेल में बंद कर दिया गया,,, वे बेचारे जेल में अपनी बदकिस्मती को कोसते रहते,,, इज़्ज़त पर लगा बट्टा वे सहन न कर सके । केस की अगली सुनवाई से एक रात पहले जेल में उन्हें हृदय आघात हुआ और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया । 

किशन चंद जी की मृत देह को घर लाया गया रेशमा जी अपनी पति को मृत्यु शैया पर देखकर गश खा खाकर गिर रही थी । बड़े दुखी मन से परिवार ने किशन चंद जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया । 

बाद ने मेहर के परिवार वालों ने  केस को रफा-दफा करने के लिए रेशमा जी से तीन करोड़ की मांग कर दी  , ,,।  रेशमा जी तो पहले ही पति के रूप में अपना सर्वस्व लुटा चुकी थी ,,, धन दौलत से उन्हें कुछ फर्क न पड़ने वाला था ,,,,उन्होंने मेहर के परिवार वालों को तीन करोड रुपए देकर केस बंद करा दिया ।

 परंतु पति का अनायास यूं छोड़ जाने से वो बेचारी असहाय हो गई थी । वे समाज की घृणित नजरों को भी सहन नहीं कर पा रही थी,,। दिन प्रतिदिन लोगों के तीखे तंज दिल के साथ – साथ दिमाग पर भी प्रहार कर रहे थे । मान – मर्यादा को देखते हुए बेटी के ससुराल पक्ष ने भी रिश्ता तोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी ।

समाज में बदनामी , बेटी की सगाई का टूटना और पति की असामयिक दुखद मृत्यु,,,सभी घटनाओं ने रेशमा जी का हृदय तोड़ कर रख दिया था ,,,। ऐसी घुटन भरी जिंदगी को रेशमा जी भी ज्यादा दिन सहन ना कर पाई और वे भी कोरोना काल के दौरान इस दुनिया को अलविदा कह गई ।

मेहर की नादानियां एक प्यारे से परिवार की इज्जत को लील गई थी ,,। रेशमा जी और किशन चंद की बसी बसाई दुनिया उजड़ गई थी   वंश और उसके भाई बहन के सिर से उनके माता – पिता का साया भी छिन गया ,..।

#इज़्ज़त 

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

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