Moral Stories in Hindi : निधि-जागृति बेटा आप रीतिका के पीछे रहेंगी, सारिका तुम रीतिका के साथ गेस्ट को मंच पर लेकर आओगी। सबको अपनी ऐक्टिविटीज़ याद ही है किसको क्या करना है। एवरीवन गॉट माय पॉइंट।
बच्चे-यस मैम।
निधि-हाउज़ थे स्पिरिट ?
बच्चे-हाई मैम।
छुट्टी की घंटी के साथ सब अपना समान पैक करने लगते है, पर जागृति का घर जाने का मन नहीं है, क्योंकि मम्मी ने कहा था अबकी बार राज्यपाल जी आ रहे है तू ही उनका स्वागत करना। एनसीसी की अच्छी स्टूडेंट होने पर भी पीछे रहती हो तुम।
जागृति बुझे मन से घर की ओर जा रही होती है तो पीछे से रीतिका इसे आवाज़ देती है।
रीतिका-जागृति अबकी बार सच में मेरा मन था कि हम दोनों अतिथियों को मंच पर लेकर आए।
जागृति-तुम मुझे चिढ़ा रही हो ना कि अभी बार मुझे फिर पीछे कर दिया गया है।
रीतिका-यार मैं तुझे इतना मानती हूँ तू मुझसे हमेशा नाराज़ क्यों रहती है।
जागृति बिना कुछ कहे अपने घर की तरफ़ मुड जाती है।
राधिका (जागृति की मम्मी)-मेरा बच्चा स्कूल से आ गया। कैसा गया मेरे बच्चे का दिन।
जागृति-मम्मी आपको एक बात बताऊ पर आप नाराज़ मत होना।
राधिका-समझ गई मैं, होस्टिंग की परेड में फिर तुझे पीछे कर दिया गया ना।
जागृति-हाँ मम्मी, पर सच में मैंने हर पोजीशन अच्छे से प्रेजेंट की थी।
राधिका-कोई बात नहीं ख़ाना खाओ फिर आराम करो जाकर।
जागृति एक तरफ़ मम्मी के इस व्यवहार से अचंभित थी दूसरी तरफ़ खुश भी थी कि उन्होंने कुछ नहीं कहा।
दूसरी तरफ़ राधिका जी रुपेश (जागृति के पापा) का इंतज़ार कर रही है। रुपेश जी के आते ही पानी देकर राधिका उनके पास बैठ गई।
रुपेश-क्या बात आज मेरे पास बैठने की फ़ुरसत कैसे। बताओ क्या बात करनी है।
राधिका-सुनिए कल स्कूल जाकर एनसीसी की टीचर से मिलिए और उनसे कहिए 15 अगस्त को गेस्ट का स्वागत जागृति को करने दे वरना जागृति का एनसीसी से नाम कटवा दीजिए।
रुपेश-पागल हो क्या तुम। अपनी जागृति प्रतिभाग तो कर रही है ना, आगे रहना इतना ज़रूरी नहीं।
राधिका-आपको क्या। सुनना तो मुझे पड़ता है जब पीटीएम में जाती हूँ रीतिका की मम्मी अपनी बच्ची के बखान करती रहती है और मेरे पास कुछ नहीं होता कहने को।
रुपेश-हमारी जागृति भी कई चीज़ों में बहुत अच्छी है, उसकी आर्ट कितनी अच्छी है उसकी राइटिंग कितनी बढ़िया है। तुम अपनी ईर्ष्या में अपनी बच्ची का भविष्य बर्बाद कर दोगी।
राधिका-आपसे तो कुछ कहना ही बेकार है। अब मैं ही कुछ करूँगी।
जागृति मम्मी पापा की सब बात सुन लेती है और सोचती है बात तो सही है मेरी क्लास में भी थर्ड रैंक है, ऐक्टिविटीज़ में भी ज़्यादा पार्टिसिपेट नहीं करती और एनसीसी में इतना अच्छा करने पर भी पीछे कर दिया जाता है। यही भाव लेकर जागृति आँखें बंद कर लेती है और अनगिनत विचारों के साथ ना जाने कब उसे नींद आ जाती है।
अगले दिन टीचर सब बच्चों को कल होने वाले कार्यक्रम के बारे में बताती है कि कल सब समय पर आ जाइएगा और अपनी एनसीसी की ड्रेस यही अलमारी में रख कर जाइएगा। सबको अपनी पोजीशन और स्टेप्स याद ही होंगे तो फिर कल मिलते है।
सब बच्चे अपनी ड्रेस और शूज़ अपनी अलमारी में रखने लगे, जागृति का ध्यान रीतिका की अलमारी की तरफ़ था। रीतिका ने अलमारी बंद कर चाभी अपने बैग में रख ली और लंच करने दोस्तों के साथ चली गई।
जागृति ने जल्दी से रीतिका के बैग से चाभी निकली और रीतिका की ड्रेस अपने बैग में रख ली और लॉक कर चाभी रीतिका के बैग में डालकर बाहर निकल गई।
जागृति को ये करते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर मम्मी की बातें मन मस्तिष्क में इस तरह बैठ गई थी कि उसे और कुछ समझ नहीं आ रहा था।
जागृति ने घर आते ही रीतिका की ड्रेस को अपने बेड के अंदर डाल दिया और ख़ाना खाने चली गई।
अगले दिन सब बच्चे समय पर स्कूल पहुँच गए।
टीचर-सभी एनसीसी कैडेट 15 मिनट के अंदर अपनी अपनी ड्रेस पहनकर बाहर आए, राज्यपाल आने ही वाले है उनके स्वागत के लिए तैयार हो जाइए। सब बच्चे यस मैम बोल चेजिंग रूम की तरफ़ गए। सब अलमारी से अपनी ड्रेस निकालकर पहनने लगे, तभी रीतिका चिल्लायी-मेरी ड्रेस नहीं है अलमारी में। तभी शोर सुन टीचर अंदर आयी और रीतिका की ड्रेस ढूँढवाने लगी, पर ड्रेस हो तब तो मिले। बिगुल की आवाज़ के साथ कार्यक्रम शुरू होने की घोषणा हुई, टीचर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। रीतिका का भी रो-रोकर बुरा हाल था।
टीचर-जागृति ऐसा करो तुम सारिका के साथ गेस्ट का स्वागत करो, और आप सभी अपनी अपनी पोजीशन पर रहेंगे।
रीतिका-मैम मैं।
टीचर-रीतिका बेटा अब आप कैसे आ पाओगे जब आपकी ड्रेस ही नहीं है।
जागृति ये सुनकर प्रसन्न हो जाती है कि अब तो मम्मी मुझे देखकर ख़ुश हो जाएँगी। जागृति और सारिका गेस्ट को मंच पर लेकर आती है। राधिका और रुपेश ये देख हैरान हो जाते है पर रुपेश रीतिका को ना देखकर थोड़ा आश्चर्य में पड़ जाता है पर अपनी बेटी को देखकर वो भी इस बात की अनदेखी कर देता है। आज राधिका की ख़ुशी का ठिकाना नहीं है वो घर जाकर जागृति को खूब प्यार करती है उसका फेवरेट ख़ाना बनाती है।
आज जागृति भी खुश है पर उसके दिमाग़ में चल रहा है कि वो उस ड्रेस का क्या करे, इसी सोच के साथ वो ड्रेस को बाहर जाकर फ़ेकने का सोचती है तभी रुपेश कमरे में आ जाता है और जागृति के हाथ में ड्रेस देखकर पूछता है कि तुम तो एनसीसी की ड्रेस स्कूल में ही रखकर आयी थी फिर ये यहाँ कैसे।
रुपेश ड्रेस पर रीतिका का मोनोग्राम देखकर सब समझ जाता है और चिल्लाकर राधिका को बुलाता है।
रुपेश-देखो तुम्हारी ईर्ष्या का परिणाम। हमारी बच्ची ने तुम्हें खुश करने के चक्कर में क्या कर दिया। रीतिका की ड्रेस चुरा लायी है ताकि इसे गेस्ट का स्वागत करने का मौक़ा मिल जाए। सही कहा गया है माँ बाप बच्चे के भविष्य के निर्णायक होते है वो चाहे तो उसे संवार दे या बिगाड़ दें। तुम अपनी बेटी के लिए अभिशाप हो जो उसे छल कपट ईर्ष्या जैसी विसंगतियाँ सीखा रही हूँ। आज इसने ड्रेस चुरायी है कल को इससे कुछ बड़ा करेगी तब तुम्हारी शान में चार चाँद लग जायेंगे।
राधिका निशब्द है। उसने भी कभी नहीं सोचा था कि उसकी बातों का जागृति पर इतना प्रभाव पड़ रहा था कि वो आगे रहने के लिए कुछ भी कर जाएगी। उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था।
रुपेश-जागृति बेटा तुम बहुत होशियार बच्ची हो, तुम हमारे लिए हमेशा अवल हो, उसके लिए तुम्हें अपने आपको इन ग़लत तरीक़ों को अपनाकर दिखाने की ज़रूरत नहीं।
जागृति रोती हुई अपने पापा के गले लग जाती है और कहती है मैं कल ही रीतिका से माफ़ी माँग लूँगी।
राधिका-जागृति मेरा बच्चा, बहुत बड़ी भूल हो गई मम्मा से, हम दोनों रीतिका के घर जाकर उससे माफ़ी माँगेंगे।
आदरणीय पाठकों,
ये रचना हमारे आस पास के वाक़यों पर आधारित है। माना कि हर माता-पिता अपने बच्चे को आगे देखना चाहते है उसे सफल देखना चाहते है, पर उसके लिये बच्चे को प्रोत्साहित करना है ना कि हतोत्साहित। उसकी खूबियों पर फोकस करे और उसकी कमियों में सुधार करने का प्रयत्न करें। उसे प्रतियोगिता में प्रतिभाग लेने को कहे पर ये मत कहे कि जीतना तो सिर्फ़ तुम्हें ही है। उसके अंदर सकारात्मक प्रतियोगिता के बीज बोइये ना कि किसी का नुक़सान कर आगे बढ़ने के। हर बच्चा अपने आप में अनमोल है उसे उसके गुणों से परिचित कराए। बच्चे पर पढ़ाई का, किसी प्रतियोगिता को जीतने का दबाव ना बनाए, उसे स्वच्छंद रूप से सीखने दे, फिर देखिए ये बच्चे क्या कमाल करते है।
आशा करती हूँ कि सभी पाठकों को मेरी रचना द्वारा दिया गया संदेश समझ आया होगा, तो रचना को लाइक, शेयर और कमेंट कर अपना समर्थन दें।
धन्यवाद।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
नवाबों की नगरी (लखनऊ)
बेहद खूबसूरत प्रेरणादायक रचना
सच ही है आजकल अपने माता पिता की हसरतों की बलि बच्चे ही चढ़ते हैं