हमे इंसान हीं रहने दें! -अन्जु सिंगड़ोदिया

हमे इंसान हीं रहने दें! -अन्जु सिंगड़ोदिया
अस्पताल से घर आते -आते रात के डेढ़ बज चुके थे। पहले घर का लॉक खोलकर निकिता बाथरूम चली गई ,उसके नहाने के बाद ,वन्दिता नहाकर आई ,तब तक निकिता दो प्यालों में गर्म दूध डालकर डाइनिंग टेबल पर रख रही थी -उसे देखकर बोली -‘-वंदु खाने को तो कुछ भी नहीं है। फ्रिज में दूध पड़ा था सो गर्म कर लिया ,जरा कॉर्नफ्लेक्स का डिब्बा दे दें आज हम दूध -कॉर्नफ्लेक्स का ही डिनर करते हैं ‘हाँ दीदी रात भी तो कितनी हो गई हैं !कुछ बनाने का मन नहीं कर रहा है हम दोनों ही तो नींद और थकान से पागल हो रखी हैं।’
‘अच्छा चलो जल्दी से खालो फिर सोना भी हैं और फिर कल सुबह 10 बजे अस्पताल जाना भी हैं ‘कहकर दोनों जोर -जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी।
दोनों ने खाकर बर्तन सिंक में रखा ,बस अब वे सोने ही जा रही थी कि डोरबेल की आवाज से दोनों सहम उठी !
इस फ्लैट में पिछले 3 साल से निकिता अपनी छोटी बहन वंदिता के साथ रह रही थी। उनकी लेंड लार्ड सुषमा आंटी बहुत ही अच्छी और मिलनसार महिला थी उनके घर में उनके पति रघुवीरजी जो एक सरकारी मुलाजिम थे अब रिटायर है उनके केवल एक बेटा आशीष है जो कि एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर है और उसकी पत्नी सीमा तथा उनके दो छोटे-छोटे प्यारे से बच्चे हैं अपने बेटे -बहू और नाती -पोतो के साथ बड़े मजे से उनकी जिंदगी गुजर रही हैं । उनकी पोती अनन्या 3 वर्ष की है और पोता आरव 6 साल का है



निकिता और वन्दिता दोनों ही डॉक्टर थी और एक ही अस्पताल में कार्यरत थी। वे रोज सुबह अस्पताल जाकर ड्यूटी करती थी। निकिता हार्ट स्पेशलिस्ट हैं तो वन्दिता चाइल्ड स्पेशलिस्ट हैं। उनके माता -पिता सिलीगुड़ी में रहते हैं चूँकि उनका खुद का वहां मकान है इसलिए वे उनके पास नहीं रह सकते थे , इसलिए दोनों बहने इस फ्लैट में रहती थी। एक दम घरेलू माहौल में, वे भी बहुत घुल -मिल गई थी। डेढ़ साल पहले मासूम अनन्या को डेंगू बुखार आया था, तो वन्दिता अस्पताल में भर्ती करवा कर रात -दिन एक करके उसका ट्रीटमेंट किया था ,तब से वे दोनों बहनें सुषमा आंटी के परिवार की सदस्या बन गई थी और चहेती बेटियां भी ! ,अब कोई भी समस्या होती वे दोनों बहनों से ही सलाह मशवरा करती थी। एक ही अस्पताल में काम करते हुए भी दोनों बहनों की ड्यूटी बदलती रहती थी। दिन भर मरीजों को संभालते हुए भी वे कभी रात तो कभी दिन की डूयटी भी करती थी। जब ऐसी डुयटी होती थी तो जो बहन रात को घर में जल्दी आ जाती तो उसे सुषमा आंटी जबरदस्ती घर में बुलाकर खाना खिला देती। बच्चे भी ‘बुआ -बुआ ‘करके बहुत लाड लड़ाते थे। वे बहने भी कही बाहर या घर जाती तो बच्चों के लिए चॉकलेट ,खिलौने या ड्रेस तो कभी सीमा भाभी के लिए मनपसंद लिपस्टिक या पर्स ला देती थी। बहुत ही अच्छे से सबकुछ चल रहा था।
तभी ये निगोड़ा कोरोना वायरस न जाने कहां से आ गया ?… उनका जीवन बहुत अस्त -व्यस्त हो गया था। अब अस्पताल में ड्यूटी का कोई टाइमटेबल नहीं था ,कभी -कभी तो दो -दो दिन तक घर भी नहीं आ पाती थी। कभी एक बहन रहती तो कभी दूसरी बहन रहती तो कभी दोनों ही नहीं रहती। न उनके खाने का ठिकाना न उनके सोने का ठिकाना -बस ड्यूटी किये जाओं — नींद और थकान की वजह से वे बहुत चिड़चिड़ी रहने लगी
इस दरम्यान सुषमाजी के साथ उनके पूरे परिवार का रवैया भी बदलने लगा था । उनके साथ आस -पड़ोस और गली -मुहल्ले के लोग उनसे कन्नी काटने लगे थें नहीं तो इससे पहले जानने -पहचानने वाले आगे बढ़कर बड़े आदर से उन्हें नमस्ते करते थे और उससे हंस -हँसके बातें भी करते थे और डॉक्टरी सलाह लिया करते थे । वे बहने उन सभी की मदद करती थी। जितना होता था उतना मदद करने की कोशिश करती थी। परसों की ही बात है नीचे रहने वाली सुभदा काकी ने उनके साथ कितनी बदसलूकी करते हुए कहा-कि -‘-तुम दोनों बहनें कोरोना का वायरस लेकर घर आती हों !



निकिताऔर वन्दिता एक दम सकते में आ गई थी –इस महामारी के समय में जहां वे (चिकित्सक )हर मनुष्य को बचानें के लिए न दिन देख रही हैं न रात !अपने जीवन को दांव पर लगा रही हैं ,45 %तापमान में भी पीपीई किट पहनकर कोविड वार्ड में डूयटी कर रही हैं ! कितनी शारीरिक और मानसिक दिक़्क़तों को फेस कर रही थी ऐसे में वहीं उन्हें ऐसी परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा हैं? बेइज्जत होना पड़ रहा है?.. लानत है ऐसी डाक्टरों की जिंदगी पर !
अब तो आये दिन दोनों बहनों के अस्पताल आने -जाने के दौरान कभी सुषमा आंटी तो कभी किसी और की जली -कटी बातें सुननी पड़ती थी । उन्ही को लक्ष्य करके फब्तियां कसी जाती ,अगर विरोध करते तो उन्हें फ्लैट से निकल जाने की धमकी दी जाती । अब बेचारी ऐसी परिस्थिति में अपनी नौकरी बचाने के लिए कहां जाएं ?चुपचाप अपमान का घूंट पीकर जैसे -तैसे यह मुसीबत भरा वक्त बीता रही थी। अपनी परेशानियां बताकर अपने मम्मी-पापा को परेशान नहीं करना चाहती थीं। वे दोनों ही प्रायः बीमार ही चलते हैं। मम्मी को प्रेशर और घुटनो के दर्द की शिकायत हैं तो पापा को ब्लड शुगर की। कितना कहा कि–‘ पापा !मकान बेच दीजिये और कलकत्ता में आकर आप लोग एक छोटा -सा फ्लैट खरीदकर या इस भाड़े के फ्लैट में हमारे साथ रहें। ‘
‘नहीं बेटा !ये पुरखों का घर है जो उनकी आखिरी निशानी है। नहीं बेचेगें। तुमलोग ही छुट्टी लेकर आ जाया करो। वैसे तुमलोग भी शादी के बाद ,यहां पर रहने आ सकती हो। ‘कहकर पापा उनको चिढ़ाने लगते।
तब वन्दिता कहती –‘पापा !मैं तो तुम्हारे जंवाई को लेकर यहीं ही रहने लगूंगी। ‘
निकिता कहती –‘अरे बेशर्म !थोड़ी तो शर्म कर !;’तब चारों मिलकर जो हंसी -ठहाका लगाते की पूछो मत !..
कल तो हद ही हो गई जब दोनों बहने लिफ्ट से उतरने लगी तब बाहर खड़ी सुषमा आंटी ने बुरा -सा मुंह बनाया और बड़-बड़ करती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी -‘-न जाने इन कोरोना वायरस से कैसे पिंड छूटेगा ?कहीं जाकर मरती भी तो नहीं हैं ? यह सुनकर जब वन्दिता कुछ कहने गई तो ,सीढ़ियों पर सदाबहार का गमला रखा हुआ था सुषमा आंटी ने उसे ही उठाया और फेककर मार दिया ,यह तो संजोग था कि उन दोनों को नहीं लगा। तब से दोनों बहने बहुत आंतकित है और’ सहमी हुई भी है कि — न जाने कब ये लोग क्या कर बैठे ?
ऐसे में जब डोरबेल बजी तो दोनों बहनें डरके चिहुँक उठीं ! –‘



;;दीदी !इतनी रात में भला कौन हो सकता है ?’.. भय मिश्रित स्वर मे वन्दिता ने पूछा।
‘खोलने पर देखते है कि कौन है ,? जैसे होगा वैसे निपटा जायेगा। हमलोग नहीं डरते हैं और ना ही डरेंगे !छोटी !हिम्मत रख। ‘कहकर निकिता धीरे -धीरे कदमों को उठाते हुए दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ रही थी। आश्वासन देने के लिए ,कहने को तो वह वन्दिता से कह गई ,पर स्वयं भी एक अनिष्ट आंशका से घबराई हुई थी। दरवाजा खोलते ही सुषमा आंटी बदहवास अवस्था में तीर की तरह अंदर आई उनकी ,आवाज गले में अटक रही थी वे जोर -जोर से रोये ही जा रही थी ,दोनों पूछने लगी –‘आंटी -आंटी क्या हुआ ?आप ऐसे क्योँ रो रहे हैं ?*छोटी जल्दी से पानी ला।.
पानी पीकर थोड़ा संयत होने पर बोली –जल्दी चलो तुम दोनों तुम्हारे अंकल कैसे छाती के दर्द से छटपटा रहे हैं ?’
एक पल की भी देर किये बिना दोनों बहनें जरूरी सामान का डिब्बा उठाये दौड़ पड़ी। देखा अंकल सीने में हाथ रखे हुए बेचैनी से तड़फ रहे हैं दोनों ने आंखों से बात की और माजरा समझते ही एक इंजेक्शन तुरंत उनको दिया और अस्पताल फोन करके तुरंत एम्बुलेंस बुलाई और अन्य कई हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को अस्पताल आने के लिए कहा ,इस बीच अंकल का बीपी और शुगर दोनों ही चेक कर लिया दोनों ही हाई थीं और ऑक्सीमीटर से चेक किया तो देखा कि उनका ऑक्सीजन लेवल भी 84 आया। साफ -साफ दिल के लक्षण थे। एम्बुलेंस आते ही वे दोनों बहनें अंकल के साथ आंटी को लेकर घर से निकल पड़ी। वन्दिता ने अपना एटीएम कार्ड भी ले लिया
अस्पताल में पहुंचे तो सब डाक्टर -नर्स स्टाफ तैयार थे। तुरंत उनके कुछ टेस्ट लिए गए। पहले ‘इकोकडियोग्राफी की गई जिसमें पता चला कि दिल की पंपिंग क्षमता यानी इ ,एफ ,सिर्फ 30 % हैं और ई,सी ,जी ,में, नॉन -एस -टी एलिवेशन मायोकार्डिया इंफेक्शन था तथा उनको ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी की बीमारी है।
आनन -फानन में अंकल को आईसीयू में शिफ्ट किया गया। सारी जिम्मेदारी निकिता ने अपने ऊपर लेते हुए डॉक्टरों से बात की और उनसे परामर्श लेते हुए बाईपास की तैयारी स्पेशलिस्ट हार्ट सर्जन के समूह द्वारा तीसरे दिन किया जाना तय हुआ ।
सुषमा आंटी को चाय पिलाकर उनको थोड़ा नॉर्मल किया फिर बोली –‘आंटी !जब तक आपकी दोनों बेटियां हैं अंकल जी को कुछ नहीं हो सकता !एकदम घबराने की कोई बात नहीं है अब अंकल के कुछ और टेस्टिंग होंगे फिर परसों उनका छोटा -सा आपरेशन होगा फिर सब ठीक हो जायेगा। ‘
सुषमा हाथ जोड़कर बोली –‘बेटा !मैं किस मुंह से तुमलोगों से अपने किये की माफ़ी मांगू ?मुझे माफ़ कर दो !यह तुमलोगों को सताने का नतीजा हे कि आज मेरा सुहाग खतरे में पड़ा है। ‘
‘नहीं आंटी आप ऐसा मत बोलिये। आप हमसे माफ़ी मानकर हमें शर्मिंदा मत करें। हम तो आपकी बच्चियां हैं अगर माँ अपने बच्चों को डांट दे तो इसमें नाराजगी की कोई बात नहीं हैं।



‘अच्छा आंटी आशीष भैया ,भाभी और बच्चे तो घर में ही हैं ना ?’
‘नहीं बेटा !आज रविवार को आशीष की छुट्टी थी न ,इसलिए नेहा , बच्चों को लेकर उसके साथ मायके गई हैं। आशीष तो उसको बस मायके छोड़कर आने वाला था कि शाम को उसकी सास का फोन आ गया .बोली — –‘समधिन !जवाईबाबू को आज की रात रखेंगे ,कभी तो आते नहीं हैं ?’
‘हाँ हाँ रख लीजिये। ‘
आशीष के बाबूजी और मैंने सोचा कि बैंक की नौकरी है ,छुट्टी तो मिलती नहीं है। चलो रविवार के चलते ससुराल में एक रोज खातिरदारी ही करवा ले !फिर कल तो बैंक की ड्यूटी पर जाना ही है। बहू दो -चार दिन रहकर आने का बोली थी। . ‘
‘ठीक है आंटी ! मैं आशीष भैया को अभी फोन करके उनकी नींद नहीं खराब करूंगी ,सुबह फोन करके बता देंगे अभी क्यों परेशान करें ? ऐसे भी सुबह के 4 बज गए है। ‘
आशीष ,नेहा ,दोनों सूचना मिलते ही दौड़े आएं ,निकिता और वन्दिता से नजरें मिलाने में उनको बड़ा संकोच हो रहा था। निकिता उनसे मिली और सब बातें समझा दी। आशीष एक बार आंटी के साथ अंकलजी को देख आया था। वे अभी इंजेक्शन की वजह से नींद में थे। उसने रिसेप्शन में जाकर सारी फॉर्मलिटीज( औपचारिकता )पूरी की. पैसे जमा करवाए। जबकि वंदिता ने कुछ जमा करवा दिए थे। कोविड के आंशिक लॉकडाउन मे सब कुछ आसानी से होता देखकर आशीष और नेहा निकिता के हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने के रुतबे को बखूबी समझ गए थे ;वन्दिता की भी चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर के रुप में अस्पताल में बहुत इज्जत थी! ओर इस बात का दोनों बहनों को रत्ती भर घमण्ड नहीँ था.देखकर उनकी नजरें शर्म से झुक गई .
नियत समय पर अंकल जी का आपरेशन हुआ। कई बीमारियों और हार्ट की स्थिति बहुत नाजुक होने के कारण यह आपरेशन बेहद क्रिटिकल था। लगभग 6 घंटे की लम्बी सर्जरी के बाद आपरेशन सफल हुआ। ओटी से बाहर आकर डॉक्टर्स और निकिता ने जब आशीष और सुषमा को बताया कि–‘ सब ओके है ‘.
तब सुषमा निकिता के गले लगकर रोने लगी। बोली –बेटा ! ऐसी विकट स्थिति में तुम भगवान बनकर आई हो। तुम्हारे अंकल की हालत देखकर तो मेरे हाथ -पांव ही फूल गए थे। मेरा तो दिमाग ही संज्ञाशून्य हो गया था। उस क्षण मुझे बेटे -बहू को फोन करने की भी याद नहीं आई, सीधे दौड़कर तुमलोगों के पास चली आई। मैंने तुमलोगों का कितना अपमान किया और तुम एक क्षण भी रुकी नहीं ,मेरे बोलते ही तुरंत आ गई !सचमुच तुम लोग भगवान हो !
नहीं आंटी हमलोगों को इंसान ही रहने दीजिये। .

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