हम भी है इंसान,, – गोविन्द गुप्ता 

सुनयना अपने मम्मी पापा की इंकलौती संतान थी,पढ़ने में बहुत तेज थी,बचपन से विश्वविद्यालय तक प्रथम डिवीजन आती थी ,

ढेरो प्रमाणपत्र ब सम्मान अलमारी में सजे थे,

पिता आशीष बहुत खुश थे और माता श्रीदेवी की लाडो तो थी ही,

उच्च शिक्षा हेतु जब बात चली तो डॉक्टर बनने का मन था सुनयना का,

उसके मन की बात को टाल नही सके उसके माता पिता तो मेडिकल की पढ़ाई हेतु विदेश भेज दिया,

कुछ वर्षों बाद एक डॉक्टर के रूप में बतन बापसी हुई,सुनयना की,

पिता ने अपने प्लाट पर एक भव्य नर्सिंग होम,

सुनयना मैटरनिटी होम बनाकर सुनयना को सौंप दिया,

उसके व्यवहार से हॉस्पिटल चल निकला बहुत भीड़ होने लगी,

तभी रिश्ते की बात चली तो डॉक्टर पति ही हो यह उसका मन था,

तो राजीव भी अभी डॉक्टरी की पढ़ाई करके आया था और बच्चो का डॉक्टर था,

सुनयना ने सहमति व्यक्त कर दी तो दोनो की शादी हो गई और एक ही हास्पिटल में मरीजों को देखने लगे,


चूंकि समय नही मिलता था फिर भी दोनो ने घूमने हेतु शिमला जाने का मन बनाया सारी पैकिंग हो गई थी,

की अचानक परिचित मरीज की पत्नी बहुत गम्भीर अवस्था मे हास्पिटल में भर्ती हुई,

मरीज डॉक्टर को बुलाने की जिद करने लगा ,

स्टाफ ने पहले मना किया लेकिन फिर सुनयना से सारी बात बताई तो वह भागी भागी आई औऱ दो घण्टे तक ऑपरेशन करने के बाद बेटी का जन्म हुआ तो दोनो माता पिता खुश हो गये यह उनकी पहली संतान थी,

पूरी रात इसी तरह बीत गई सुवह पांच बजे ट्रेन थी तो यात्रा हेतु निकल गये,

शिमला पहुंचने पर बढ़िया सा रूम लिया और जीवन के सुंदर पलो के सपनो में खो गये,

दूसरे दिन की रात्रि के दो बजे अचानक फोन की घण्टी बजी जो सुनयना के पिता का था,

जी पापा कहिये इस समय फोन क्यो किया ,

बेटा फोन नही करता पर क्या करूँ जिसकी डिलीवरी हुई थी बेटी हुई थी,

उस महिला और बेटी दोनो की तबियत बहुत खराब है,

मुझसे न रहा गया तो कॉल की आगे तुम्हारा जो निर्णय हो,


सुनयना को नींद नही आ रही थी अब पल पल अपने मरीज की चिंता खाये जा रही थी,

सुवह हुई तो पति से बापस चलने को कहा ,

तो पति ने कहा कल ही तो आये है और हमारी भी तो जिंदगी है कुछ,आखिर हमारी नई नई शादी हुई है,

पहला टूर है,

पर सुनयना कुछ सुनने को तैयार नही थी,

उसने कहा किसी की जिंदगी से बढ़कर मेरी कोई खुशी नही,

पूरा जीवन पडा है ,

आखिर दोनो बापस आ गये देखा तो वास्तव में बहुत खराब स्थिति थी,

दोनो ने एक बच्चे व उसकी माता का इलाज प्रारम्भ किया और दो दिन में दोनो की हालत सामान्य होने लगी,

ठीक होकर जब दोनो बच्चे के साथ हास्पिटल से गये,

तो सुनयना को ढेर सी दुआएं दी,


इस तरह महीने दो महीने में कोई न कोई घटना घट जाती थी,

एक दिन सुनयना ओर उनके पति रात्रि में आपस मे बातें कर रहे थे ,

शायद यही है हमारी जिंदगी पर सबको लगता है हम सामान्य लोगो की तरह पूरी रात निश्चित सोते है,

क्या हंमे हक नही है कि हम औरों की तरह जिंदगी जीये ,

आखिर हम भी है इंसान,,

लेखक 

गोविन्द

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