हौसलों की उड़ान ( भाग 2) – अर्चना सक्सेना : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : जब क्रोध शांत नहीं हुआ तो बड़ी बेटी जया को फोन लगा दिया सावित्री ने और घर में हुयी सारी बात मिर्च मसाला लगाकर सुना दी। छोटी बेटी उर्मि तो भाई भाभी की ही सगी है, वे कुछ कहती भी हैं तो उल्टा उन्हें ही समझाने लगती है पर ये जया माँ का दर्द भलीभाँति समझ पाती है और रहती भी शहर में ही है तो माँ के दुखदर्द में दौड़ी चली आती है। 

   उनकी आशा के अनुरूप ही शाम को जया अपने दोनों बच्चों को साथ लिये मायके चली आयी।

नीता ने उनका स्वागत किया और ननदोई के न आने की वजह पूछी तो उसने ताना मारते हुए कहा-

“रमेश बाहर गये हैं, वैसे मैं भी कहाँ आने वाली थी लेकिन मेरी माँ परेशान होगी तो आना ही पड़ेगा न मुुझे, अब बच्चों को अकेले कहाँ छोड़ती इसलिये लाना पड़ा नहीं तो यहाँ लाने के लिये तो सौ दफा सोचना पड़ता है क्योंकि रिया और राहुल भी उलटी सीधी हरकतें ही सीखते हैं यहाँ पर।”

नीता का चेहरा अपमान से सफेद पड़ गया था। वह चुपचाप चाय बनाने चल दी तो रिया ही बोली-

“अरे मामी आप बुरा मत मानना, मम्मी तो नानी की तरह कुछ भी बोलती हैं। दरअसल कल संडे है तो हमने ही कहा कि आज वहीं रुक जायेंगे, हमारा भी छवि और रावी के साथ अच्छा टाइमपास हो जायेगा और मम्मी भी नानी के पास रह लेंगी वरना इन्हें भी रात को ही लौटना पड़ता। मैं तो जब आती हूँ छवि से कितना कुछ सीखकर जाती हूँ। वैसे तो चार साल छोटी है ये मुझसे पर समझदारी में बिल्कुल आप पर गयी है न, मैं तो फैन हूँ इसकी।”

“हाँ हाँ समझदारी में तेरी मामी पर गयी है तभी तो पता नहीं क्या समझती है खुद को। रिया तू जैसी है वैसी ही अच्छी है, छवि से ज्यादा कुछ सीखने की कोशिश मत कर। अब खुद ही देख ले इसका असर, बोल रही है न तू भी अपनी माँ के खिलाफ जैसे ये अपनी दादी से बहस करती है।”

सावित्री ने कहा तो छवि और रिया एकदूसरे को देखकर हँस दीं और सारे बच्चे छत पर खेलने चले गये। काफी देर अंत्याक्षरी खेलने के बाद जब राहुल और रावी नीचे चले गये तो छवि ने रिया से पूछा-

“दीदी क्या मैं सचमुच झगड़ालू हूँ? मैं तो सही का साथ देती हूँ हमेशा, फिर दादी को मुझसे इतनी शिकायतें क्यों हैं? माँ चाहती हैं कि हमें अपनी रक्षा खुद करनी आनी चाहिए तो इसमें गलत क्या है? इसीलिए उन्होंने पिछले महीने कराटे की क्लास ज्वाइन करवा दी मुझे और रावी को, लेकिन तब से दादी पीछे ही पड़ गयी हैं। अभी परसों रावी की किसी से लड़ाई हो गयी, वह लड़की अपने बड़े भाई को बुला लायी और उसने रावी को मारा तो मैं कैसे चुप रह जाती?

जब मैंने उस लड़के को मारा तो उसकी माँ दादी और माँ तक शिकायत लेकर आ गयी कि लड़की को कराटे सिखा रहे हो तो क्या वह मोहल्ले भर में लड़कों को पीटेगी? बस तब से दादी बहुत नाराज हैं। पड़ोसी का बेटा अपने से छोटी लड़की को पीट दे तो ठीक, मैं किसी बराबर के लड़के को पीट दूँँ तो मैं गलत कैसे हो गयी? ऊपर से हर बात में खानदान को बीच में ले आती हैं। मैं खानदान का नाम रोशन करूँ या न करूँ, जानते बूझते खराब तो नहीं ही करूँगी कम से कम।”

“जाने दे न न छवि, जब समझना होगा समझेंगी वरना नानी को कौन समझा सकता है? और तो और मेरी मम्मी को भी कराटे सीखने वाली बात समझ में नहीं आती। मैंने कहा था उनसे कि ये तो अच्छी बात है, मुझे भी सीखना है तो कहती हैं इतनी बड़ी हो गयी, यों उठा पटक करती अच्छी लगेगी क्या?

खुद भी तो हमारी उम्र से गुजरी होंगी, उन्होंने भी लोगों की गलत निगाहें महसूस की होंगी लेकिन जैसे तब खुद ऐसे लफंगों को इग्नोर किया होगा वैसे ही मुझसे इग्नोर करने की उम्मीद रखती हैं। अब तो मैंने उन्हें कुछ बताना ही छोड़ दिया। तू किसी से कहना मत पर आजकल एक लड़का मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ा है। जहाँ भी जाती हूँ वहीं पहुँच जाता है, पता नहीं उसे कैसे पता चल जाता है। जब तब फोन भी करता रहता है। कभी कभी तो बहुत डर लगता है छवि।”

“अरे! ये भी बुआ को नहीं बताया आपने?”

“कैसे बताऊँ, वो तो मेरा ही घर से निकलना बंद कर देंगी। अभी पापा भी बाहर गये हुए हैं, मम्मी आज यहाँ आ ही रही थीं इसीलिए मैं भी यहाँ आ गयी कि तुझसे ही पूछूँ कि हम क्या कर सकते हैं।”

                 अर्चना सक्सेना

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1 thought on “हौसलों की उड़ान ( भाग 2) – अर्चना सक्सेना : Moral stories in hindi”

  1. छवि बिटिया द्वारा बहुत अच्छा और साहसी कार्य, हर लड़की को अपनी आत्मरक्षा के लिए शरारती लड़कों को सबक सिखाने के लिए जूडो कराटे सीखना चाहिए।

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