हमारी नयका : एक अव्यक्त प्रेम कहानी(भाग-7) – साधना मिश्रा समिश्रा : hindi stories with moral

hindi stories with moral : चंदा…

तड़प रही थी चंदा अपने नाम की नई परिभाषा से जो उसके लिये कमलकिशोर ने गढ़ा था। आज तक चंदा अपनी चांदनी की स्निग्धता, अपने धवल प्रकाश की सुंदरता के लिये ही जाना जाता था। पहली बार किसी ने दिन में उसके अस्त को अपने कल्याण से जोड़ दिया था।

कहा था नयका ने चंदा से कि जानते-बूझते तुमने एक शादीशुदा आदमी से शादी का ढ़ोंग रचाया है तो इसी शादी के नाम पर तुम तिल-तिल जलोगी सारी जिंदगी। तुम्हारे सारे सपने धरे के धरे रह जायेंगे। सारी जिंदगी तुम इस शादी के अभिशाप से तिल-तिल झुलसोगी।

वह वचन नयका का सच में सत्य हो गया। दस साल बीत गये है तिल-तिल जलते और शेष जिंदगी भी ऐसे ही झुलसते जायेगी, यह चंदा को अच्छे से समझ आ गया था।

उस सिंदूर की कीमत भी चंदा के समझ में आ गई थी जो कोई पुरूष चुपके से किसी की मांग में सजाता है। उसे समाज की स्वीकृति कभी नहीं मिलती।

इस बात की गहराई आज चंदा से ज्यादा कौन समझ सकता है।

दस साल हो गये उन्हें कमलकिशोर के घर आंगन में रहते हुये पर समाज ने उन्हें कमलकिशोर की पत्नि होने की मान्यता नहीं दी है।

दो बेटियों की मां बन गई है चंदा इसी घर आंगन में लेकिन आज भी गांव वालों के लिए वह मिसराईन ही है। दुबाईन बनने का उनका सपना, सपना ही धरा रह गया।

कहाँ वह चली थी अपने दुर्भाग्य से लड़ने, कहाँ उनके दुर्भाग्य की छाया कमलकिशोर पर भी पड़ गई। जाने दुर्भाग्य की वह कौन सी रेखा है कि उसने जिस भी मर्द का साथ पकड़ा वह अंततः नामर्द ही निकला।

बहुत गरीब पिता की बेटी थी चंदा, चार बहनों के साथ दरिद्रता का श्राप जन्म से लेकर आई थी। पिता मंदिर के पुजारी थे। न खेत न बाड़ी। मंदिर के नाममात्र के चढ़ावे और मिले हुये सीधा के दान पर उनका घर चलता था।

जहाँ पेट भरने की समस्या ही भारी हो वहाँ

किसी को सपने देखने की छूट कहाँ मिलती है।

लेकिन उसी गांव के एक नौजवान ने चंदा के आंखों में सपने भर दिये। उन सपनों को पूरा करने का आश्वासन दे उन्हें ले उड़ा। पूरे छः महीने वह चंदा को लेकर इधर उधर भटका और अंततः अंत में चंदा को उन्हीं के गांव में छोड़ जो गया तो फिर उसकी कोई खबर भी नहीं मिली। बदनामी के बोझ से दबे पिता के घर में ही उन्हें शरण मिली।

बेटी थी, उससे उनका दर्द का रिश्ता था। कहाँ छोड़ते उसे।

लेकिन चंदा के ब्याह की आशा धूमिल थी।

यह भी वे जानते थे।

चंदा ने अपनी जिदंगी में बदनामी का दंश झेला था। लोगों की नजरों में अपने लिये हिकारत महसूस किया था। तिल-तिल वह वहाँ भी मर ही रही थी कि तभी उसे कमलकिशोर की नजरों में अपने लिये झुकाव

नजर आया तो इस बार अपने जीवन को संवारने के लिए उसने सावधानी से खेल खेला।

उमा के दूर की रिश्तेदारी में बहन थी चंदा। कमलकिशोर के घर की समृद्धि जानती थी वह और उसे पूरी आशा थी कि वह अपने प्रेम में दीवाने हुये कमलकिशोर के जीवन में उमा का स्थान ले ही लेगी।

अपनी मीठी बातों से, अपने नखरों से उसने इस कदर विवश किया कमलकिशोर को कि वह आखिर उसे लेकर गाजे बाजे के साथ अपनी ड्यौढ़ी पर हाजिर हो ही गये।

वहाँ उस ड्यौढ़ी पर, उस दरवाजे पर जो स्वागत हुआ चंदा का, उसके बारे में उसे कोई अंदेशा दूर-दूर तक नहीं था।

यह चंदा अच्छे से जानती थी कि उस घर में वह सहज स्वीकार्य नहीं होगी लेकिन वह यह भी कहाँ जानती थी कि उसके साथ ही कमलकिशोर भी उस ड्योढ़ी से दूर फेंक दिये जायेंगे।

चंदा की सारी आशाओं पर, सारी कामनाओं पर जो तुषारापात हुआ, उसकी कल्पना तो कहीं दूर-दूर तक नहीं थी।

उसके भाग्य की दरिद्री ने यहाँ भी एक कोठरी, एक आंगन और एक चौथाई खेती के आनाज पर ही बांध कर रख दिया। वह भी कमलकिशोर के अंश से, उस पर उसका कोई अधिकार नहीं।

बहुत तड़पी, बहुत चीखी चिल्लाई वह कमलकिशोर पर कि वह अपना हक, अपनी संपत्ति से अपना अधिकार कैसे छोड़ सकते हैं। लेकिन निर्विकार कमलकिशोर ने उसकी एक न सुनी। नयका के फैसले के सामने जो सिर झुकाया कि दुबारा उस पर कभी विचार करने को भी राजी नहीं हुये।

उसके जिंदगी में उसे नामर्द ही मिले। पहला वह जिसने उसकी आंखों में सपने सजाकर उसे अपने साथ ले गया और उन्हीं सपनों के परखच्चे उड़ाकर उसे उसके गांव पटक गया।

दूसरा यह भी नामर्द ही निकला जिसका दामन थाम वह उसके दरवाजे पर आई कि सुख समृद्धि उसके पांवों की दासी बनेगी। लेकिन इसने भी सिर झुकाकर त्याज्य होने की पदवी पाकर घर के कोने में जा बैठा और उसे भी वहाँ बैठने पर विवश कर दिया।

हाय री उसकी फूटी हुई किस्मत…आज भी वह गांव वालों के लिये मिसराईन ही है। दो बेटियां उसकी कमलकिशोर दुबे की ही हैं लेकिन दुबाईन वह आज भी नहीं है…

क्रमशः …

साधना मिश्ना समिश्रा

स्वरचित, सुरक्षित

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साधना मिश्रा समिश्रा

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