गुरुकृपा !! – पायल माहेश्वरी

“ओम् जय जगदीश हरे …..” आरती की मधुर स्वर लहरियां रोज सुबह की तरह ‘गुरुकृपा’ भवन में गूँज रही थी, घर के सभी सदस्य आरती में सम्मिलित हुए पर रोज की तरह वैशाली अपने सुबह के जिम में व्यायाम करने गयी थी।

” वैशाली कभी मेरी अपेक्षा पूरी नहीं कर सकती हैं वह अपनी आदतें कभी नहीं बदलेगी” वैशाली की सासु-माँ मधु अपने पति से बोली।

” वैशाली एक अलग परिवेश से आयी हैं मधु उसे सामन्जस्य बिठाने का अवसर तो दो तुम बहुत जल्दी निर्णय ले लेती हो ” वैशाली के ससुरजी परेश बोले।

” मम्मी पापा बिलकुल सही कह रहें हैं वैशाली दिल की बहुत अच्छी व सच्ची हैं उसके इसी गुण ने मुझे रिझाया था” वैशाली का पति विशाल बोला।

विशाल व वैशाली का प्रेम विवाह हुआ था जिसमें दोनों परिवारों का समर्थन प्राप्त था,दोनों ने लंदन में अपनी डाक्टरी की पढाई एक साथ पूरी की थी और वही दोनों की मुलाकातें व प्यार का सिलसिला परवान चढ़ा था।

विशाल भारत के दिल्ली शहर का रहने वाला था वही वैशाली का परिवार वर्षो से लंदन में बस गया था, वैशाली का पालन-पोषण लंदन में आधुनिक तौर-तरीकों से हुआ था।

वैशाली को भारत देश व यहा के लोग बहुत पसंद थे इसलिए उसने शादी के बाद स्वदेश में रहने वाली विशाल की बात मान ली थी।

वैशाली एक आधुनिक विचारधारा वाली प्यारी बहू व अच्छी डाक्टर थी,पर उसमें एक ही कमी थी वह भगवान को नहीं मानती थी नास्तिक विचारधारा रखती थी।

इसके विपरीत विशाल की माँ मधु बहुत धार्मिक प्रवृति की महिला थी और वैशाली के इस नास्तिक रवैये से बहुत चिंतित रहती थी।

” वैशाली!! बेटा में ये नहीं कहती की अंधविश्वास व आडम्बर का अनुसरण करो पर भगवान की पूजा-अर्चना व भक्ति मन को शांति प्रदान करती हैं मेरी बात मानकर दिन का थोड़ा समय भक्ति में व्यतीत करो तो देखना तुम्हें कितनी आलौकिक शान्ति मिलेगी “मधु जी ने समझाया। 

” मम्मी!! वैसे तो मैं यह सब नहीं मानती हूँ पर आपका मन रखने के लिए मैं रोज पूजा में सम्मिलित हो जाऊंगी लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी ” वैशाली बिना किसी लागलपेट के बोली।

” क्या बात मुझे माननी पड़ेगी?” मधु जी उत्सुकता से बोली।

” मम्मी!!जरा अपनी और देखिए आपका वजन कितना बढ गया हैं बीपी और कोलेस्ट्रॉल भी बहुत ज्यादा आया हैं आपको अपनी सेहत पर ध्यान देना पड़ेगा व मेरे साथ जिम चलना पडेगा” वैशाली ने आदेश सुना दिया।



” अरे !! इस उम्र में जिम मुझसे नहीं होगा ” मधु जी पर अहम् सवार था।

” मैं भी अपने विचार नहीं बदल पाऊंगी ” वैशाली हठ करने लगी थी।

बहुत विचार-विमर्श के बाद यह तय हुआ की दोनों सास-बहू सिर्फ पन्द्रह दिन के लिए एक-दूजे की बात मानकर देखेगी।

” अपनी रोजमर्रा की आदतें बदलने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता हैं पर जीवन में बदलाव बहुत जरूरी होता हैं, किसी की अच्छाइयों को अपनाना बुरी बात नहीं हैं, इस तरह तुम्हारा व वैशाली का रिश्ता एक मजबूत बंधन में बंध जाएगा ” परेश जी ने मधु जी को समझाया। 

शर्त के अनुसार वैशाली ने अपने पाश्चात्य संस्कार बदलकर  आध्यात्मिक दृष्टिकोण को अपनाने कोशिश करने की ठानी। 

दूसरी और मधु जी ने वैशाली के निर्देशानुसार अपनी बरसों पुरानी नियमित दिनचर्या व खानपान में बदलाव लाने की बात मानी।

वैशाली और मधु जी एक दूसरे का मार्गदर्शन करते हुए और नजदीक आ गयी थी और दोनों सास बहू दोस्ती के अनोखे बंधन में बंधने लगी थी। 

परेश जी और विशाल अपने घर के बदले हुए सकारात्मक वातावरण को देखकर बहुत हर्षित नजर आ रहे थे पर पूरी पिक्चर अभी भी बाकी थी।

शर्त वाले पन्द्रह दिन शुरू हो गये थे और साथ में कभी ना समाप्त होने वाले एक आत्मिक बंधन का भी आगाज़ हुआ जहाँ दोनों सास बहू ने अपने अहम् और जिद को दरकिनार करते हुए एक दूजे का मार्गदर्शन लेकर बेहतर बनने की ठान ली थी।  

 ” ओम् जय जगदीश हरे …..” आज फिर ‘गुरुकृपा’ में आरती की स्वर लहरियां गूँज रही थी पर आज  वैशाली सुन्दर साड़ी में सजीधजी आरती की तैयारी में लगी हुई थी और मधु जी उसे आरती करने के तौर-तरीके समझा रही थी।

उसके कुछ समय बाद ही ‘गुरुकृपा ‘ का दृश्य बदल गया मधु जी व वैशाली जिम वाली व्यायाम की पोशाक पहनकर जिम की और चले यह दृश्य देखकर परेश जी व विशाल हक्के-बक्के रह गये।



जिम में पहले दिन मधु जी को वैशाली ने व्यायाम के निर्देश दिये और मधु जी के पैर दुखने लगे।

वैशाली जब शाम को अस्पताल से वापिस आयी तो मधु जी के निर्देशानुसार रामायण पढनी शुरू कर दी,हालांकि उसे शुरूआत में कोई रूचि नहीं नजर आयी,पर जैसे जैसे वो पढ़ती रही उसे आलौकिक आनंद आने लगा।

 ” मम्मी!! मैं तो समझती थी धर्म, पाठ-पूजा हमें अन्धविश्वास की और ले जाता हैं पर रामायण तो अद्भुत हैं,  मैंने सारी जिंदगी स्वयं को इस अनुभव से वंचित रखा और आज आपकी वजह से मैं यह ज्ञान प्राप्त कर पायी ” वैशाली मधु जी से बोली।

” बिटिया!! यह तो सिर्फ शुरुआत हैं आगे देखना हमारी भारतीय सभ्यता व संस्कृति कितनी महान हैं ,धीरे-धीरे 

तुमको इन सब की आदत हो जाएगी और तुम्हारी दिनचर्या बदल जाएगी ” मधु जी बोली। 

” दिनचर्या तो आपकी भी बदल जाएगी मम्मी और धीरे-धीरे आप अपनी खोई सेहत वापिस पा लेगी ” वैशाली की आँखे शरारत से चमक रही थी। 

मधु जी उपर ही उपर मुस्कुराती रही पर मन ही मन वैशाली को कोस रही थी उनके पाँव टूटकर उनके हाथ में आ रहे थे पर शर्त वे हारना नहीं चाहती थी। 

वैशाली ने अपने हाथों से मधु जी के पाँवो की मालिश करी और उनका नया डायट प्लान बनाया जिसके अनुसार मधु जी का शाम वाला भोजन सिर्फ सूप व सलाद तक सीमित कर दिया गया था और वैशाली भी इसमें उनका साथ देने लगी।

पहले तो मधु जी को यह नयी दिनचर्या रास नहीं आयी पर धीरे-धीरे इस नयी दिनचर्या के अनुसार चलने में उन्हें मजा आने लगा अब दोनों सास बहू रसोई में पौष्टिक व स्वादिष्ट भोजन बनाने के नये प्रयोग करने लगी, मधु जी अपने पुराने तंग कपड़े फिर से पहनकर बहुत खुश थी और वैशाली अपनी सफलता पर खुश थी।

धीरे-धीरे इस नयी दिनचर्या के दिन गुजरने लगें वैशाली और मधु जी ने पूरी ईमानदारी के साथ अपनी चुनौतियों का सामना किया व एक-दूजे की मार्गदर्शक बनी।



आज निर्णायक पन्द्रहवां दिन था व परेश जी और विशाल दोनों सास-बहू का अनुभव सुनकर निर्णय लेने वाले थे।
” वैशाली बिटिया !! तुम्हारे ये भक्तिमय पन्द्रह दिन कैसे बीते हैं क्या तुम आगे भी ऐसी दिनचर्या अपनाना चाहती हो?” परेश जी ने पूछा।

” पापा!! मैं बहुत सकारात्मक महसूस कर रही हूँ, मेरे अन्दर एक आलौकिक शान्ति आ गयी हैं मैंने रामायण व गीता विस्तार से पढी और पाया की यही तो जीवन का सार हैं, भजन की स्वर लहरियां मुझे ताजगी देती हैं और मेरे काम भी एक फुर्ती व नवीनता आ गयी हैं, सभी पेशेंट भी मुझसे संतुष्ट व खुश रहते हैं मैं आस्तिक बनना चाहती हूँ ” वैशाली की आखों में संतुष्टि के भाव थे।

” मम्मी !!आपके बदलाव के बारे में आपका क्या कहना हैं?” विशाल ने पूछा।

” मैंने तो एक नयी जिन्दगी पायी हैं इन पन्द्रह दिनों में मुझे स्फूर्ति महसूस होने लगी हैं मेरी थकान भी मिट रही हैं और वैशाली ने कल ही मेरा बीपी व कोलेस्ट्राल नापा वह पहले से कम आया हैं, मैंने तो मेरी खोई हुई जवानी वापिस पा ली हैं ” मधु जी शर्माते हुए बोली।

” और हमने हमारी पत्नियों का एक नवीन अवतार पा लिया हैं ” विशाल व परेशजी हंसते हुए शरारत से बोले।

आज’ गुरुकृपा ‘ भवन ने भी अपनी पूर्णता पायी थी और वो भी मुस्कान से खिल उठा, ‘ गुरुकृपा ‘ की दीवारें व आंगन उस नये बंधन का साक्षी था जिसमें सिर्फ आदर और अपनापन था जहां अहम् का कोई स्थान नहीं था।

सिर्फ जन्म वाले बंधन ही मजबूत होते हैं ऐसा जरूरी नहीं हैं, थोड़ी सी समझदारी, सहनशीलता व सकारात्मकता हर रिश्ते को मजबूत बंधन बना देती हैं फिर वह चाहे सास बहू का क्यों नहीं हो।

#बंधन

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं

धन्यवाद ।

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