गृहलक्ष्मी – पूजा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज दीवाली पर अनंत  ने अपनी कम्पनी के एक साल होने पर एक पार्टी रखी थी कंपनी के लोगों से मेरा परिचय अपनी पत्नी के रूप में करवा रहे थे ,आप मेरी पत्नी वेदांशी ” 

   कुछ विशेष लोगो को भी आमंत्रित किया था  और प्रचार के लिए मीडिया के भी दो एक लोग थे ।

       मेरे पापा मम्मी भी आए थे और बहुत खुश थे वह लोगों से हटकर बैठे सबकी प्रतिक्रिया देख रहे थे तभी एक 

सज्जन ने पूछा _

   मेम आप क्या वर्किंग या हाउस वाइफ ?

मेरे कुछ कहने से पहले ही अनंत ने कहा मेरी पत्नी वेदांशी बनस्थली विद्या पीठ की टापर है कंप्यूटर साइंस में , मेरी स्ट्रेंथ है मेरी गृहलक्षमी भी ।

      अनंत के परिचय कराने के ढंग से मम्मी बहुत भावुक हो गई दादी की यादकर बोली तू अपनी दादी की लक्ष्मी से गृहलक्ष्मी बन गई ।

       मम्मी बताया करती थी जब मैं पैदा हुई तो ये सुनकर की बेटी हुई है दादी दुखी हो गई थी तभी दादा जी ने कहा_ अरे भाग्यवान लक्ष्मी आई है तुम्हे खुश होना चाहिए कहते हुए वह दादी को और सभी को मिठाई खिलाने लगे थे ।

मैं उनके बेटे की पहली संतान थी वह तो कुल दीपक की आस लगाए थीं ।

    फिर दादी मुझे लक्ष्मी कहकर ही बुलाने लगी ।

पापा मम्मी ने सोचा था बेटी होगी तो उसका नाम बेदांशी ,और बेटा हुआ तो बेदांश रखेंगे जो पापा के नाम वेदप्रकाश से मिलते थे ।

       मेरे पापा ने मुझे बहुत अच्छी शिक्षा दी संस्कार भी दिए ,दादी मुझे बहुत पढ़ते देख कहने लगती थी

   जे बेद हमारी लक्ष्मी को जाने कितना पढ़ाई  कराइए जाने बिटिया को कलक्टर बनाई अरे बिटिया को घर गृहस्थी भी सिखानी है की नाही ।

  पापा हंसकर बोलते अरे अम्मा सब सीख जायेगी जब समय आएगा घर गृहस्थी का भी कर लैगी।

     बनस्थली में पढ़कर मैने बहुत कुछ सीखा बी टेक करने के बाद जब इंफोसिस में मेरी नौकरी लगी तब दादी बहुत बीमार थी वह बस एक रट लगाए थी हमको लक्ष्मी के पैर पूजने है शादी करो तभी मैं मर पाऊंगी ।

   पापा ने उनकी की इच्छा पूरी करने के लिए मेरी शादी अनंत के साथ  तय कर दी वहआई आई टी से करने के बाद हैदराबाद में माइक्रोसाफ्ट में काम कर रहे थे । हम दोनो हैदराबाद में ही रहते थे मुझे नौकरी के साथ घर गृहस्थी भी करनी आ गई थी जैसा मैंने मां को करते देखा था वैसा ही मैं घर को संभालने लगी आज दस साल में हम लोगो ने अपनी कंपनी  भी बना ली  है सब दादी के आशीर्वाद से वही हमे लक्ष्मी से गृह लक्ष्मी बनने के तरीके सीखा गई ।

      अपनी ससुराल के साथ भी मैं सबको खुश रखने की कोशिश करती रही और सबने मेरे स्नेह के बदले मुझे प्यार और सम्मान भी दिया ,आज अनंत के द्वारा मेरा परिचय जो गृह लक्ष्मी सुनकर  मुझे अच्छा लगा ।

  एक स्त्री में ही इतनी शक्ति होती है की वह बाहर और घर   दोनों को संभाल सकती है तभी उसे गृह लक्ष्मी  कहते है ।

        स्वरचित रचना 

# गृहलक्ष्मी # 

पूजा मिश्रा 

   कानपुर

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