गीत – विनय कुमार मिश्रा

“भैया आप मुझसे बातें करिए, मुझे अपने गीत सुनाइये मैं सुनूँगी”

मैंने हाथ पकड़ कर कहा। भैया थोड़े हतप्रभ हो मुझे देखने लगे। और मेरा हाथ छुड़ाकर दूसरी तरफ बैठ गए। मेरी आँखें भीग आईं। मुझसे नाराज नहीं हैं ये। बस मर्यादा की एक झूठी परंपरा ढो रहे हैं। भैया मेरे जेठ हैं। इनके सामने आने की मनाही थी। इस घर में मुझे चालीस साल से ज्यादा हो गएं। पूरे घर में सब को देखा है।सबसे बातें किया मैंने। बस इनके सामने आज पहली बार आई हूँ। जिसे ज़िंदगी भर भाई मानते आई उससे कभी बात नहीं किया। भैया को गाने बजाने का बहुत शौक था। जब दालान में ये कोई गीत गाते तो पूरा गांव होता था। मैं बस सुनती थी। और मन ही मन गर्व करती थी भैया के इस कला पर। कभी इस कला को पर्दे के पीछे से देखने की कोशिश करती

“छोटकी बहू! तुम कमरे में जाओ.. ये तुम्हें शोभा नहीं देता”  

इस पवित्र रिश्ते में इतना पर्दा क्यूँ था मैं कभी समझ नहीं पाई। भैया की कोई संतान नहीं है। पर इन्हें इसके लिए कभी उदास नहीं देखा। ये मेरे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। पहले माँ बाउजी फिर एक दिन दीदी के जाने से थोड़े उदास रहने लगे थे। गीत-संगीत भी छूट गया। पर बच्चों और अपने भाई से दिल की बात कहा करते थे। पिछले साल इन्होंने अपने भाई और मैंने अपने पति को खो दिया। मेरे साथ साथ भैया भी टूट गए हैं। बच्चे बड़े हो गएं हैं। वो अब अपनी ही दुनिया में रहते हैं। उनके पास हमारे लिए समय नहीं। ना कभी दस मिनट बैठते हैं। कुछ दिनों से पर्दे से ही देखा करती हूँ।अपने पुराने गीतों को धीरे से गुनगुनाते हुए रो पड़ते हैं। शायद अपने आस पास उन लोगों को बहुत याद करते हैं जिनसे कभी ये दालान गुलजार रहता था।अपने दालान में बिल्कुल अकेले पड़े रहते हैं। आज भैया की शादी की सालगिरह भी है। सुबह से वही गीत अपनी कपकपाती आवाज में गुनगुनाने की कोशिश करते फिर रोने लग पड़ते। ये गीत उन्होंने दीदी के लिए लिखा था। जब भी गाते थे तो दीदी मुझसे चहक कर कहा करती थी।

“तेरे भैया ये गीत मेरे लिए गाते हैं”

आज बच्चों को अपने पास थोड़ी देर बैठाना चाहते थे पर उन्होंने नहीं सुना। आज सुबह से ना जाने कितनी बार भैया को रोते देख मुझसे रहा नहीं गया।

भैया अब भी चेहरे को दूसरी तरफ किये मेरे चले जाने का इंतजार कर रहे हैं

“भैया! अपनी छोटी बहन से भी नहीं करेंगे अपने दिल की बात”

उन्होंने अब भी मेरी तरफ नहीं देखा

“जरा इधर देखिए मेरी तरफ..इस बहन के सिवा अब कौन है आपका जो आपकी बात सुने.. घुटघुटकर मर जायेंगे आप! मैं नहीं देख सकती आपको इस तरह भैया, मैं नहीं देख सकती” मैं फूटफूटकर रो पड़ी। उन्होंने पलट कर मेरे माथे पर अपना हाथ रख दिया

“तू..सच ..में सुनेगी… छोटकी..मेरा गीत”

“गीत ही नहीं भैया, आपके मन मे जो भी है मैं सब सुनूँगी”

भैया के गीत फिर से पूरे दालान में गूँज उठे, मैं भरी आँखों से ताली बजा उठी..!

विनय कुमार मिश्रा

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!