आपको और? – विनय कुमार मिश्रा

“मेरे एक नाना-नानी भी यहीं रहते हैं ना मम्मी?”

“हाँ”

आज पत्नी के साथ बिटिया को लेकर एडमिशन के लिए उस शहर में आया हूँ जहां से मेरा एक रिश्ता होकर भी नहीं है। मेरी पहली पत्नी इसी शहर से थी। हमारी शादी बहुत धूमधाम से हुई थी। सिर्फ सात महीने का ही साथ था हमारा। शादी के बाद पाँच महीने का बच्चा था उसकी पेट में। बहुत खुशी खुशी आई थी फिर अपने इसी मायका वो। फिर एकदिन खबर मिली कि एक दुर्घटना हो गई है। मैं जबतक ट्रेन से पहुँचता संगीता अस्पताल में दम तोड़ चुकी थी। मेरी पहली पत्नी और मेरा पहला प्यार भी खत्म हो चुका था। आखिरी बार उससे बात भी नहीं कर सका था मैं। बार बार उसकी कही आखिरी बातें जो स्टेशन पर उसने कही थी मुझे याद आती थीं

“तुम सबसे ज्यादा किसे प्यार करती हो?” उसने ट्रेन की खिड़की से मेरे कानों में धीरे से कहा था

“आपको…और…?”

“और.?”

ट्रेन खुल गई थी और वो मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थी।एक अधूरा जवाब मिला था। वो आखिरी बात मैं कभी भुला नहीं। 

फिर वक़्त के साथ इस घर में आना जाना भी बहुत कम हो गया मेरा। मुझसे इस घर का रिश्ता होकर भी अब टूट चुका है। मैंने अपनी तरफ से कुछ सालों तक कोशिश की थी कि संगीता इस दुनिया में भले ही ना हो पर जो रिश्ता बन गया है इस घर से उसे निभा सकूँ। जिस सास ससुर को माता पिता की तरह मन ही मन मान लिया था कमसे कम उनका साथ निभा सकूँ।पर संगीता के चले जाने के बाद मैं इनलोगों के लिए बेगाना हो गया। छोटे साले की शादी की खबर भी बाद में मिली थी। दिल में एक ठेस सी लगी थी। मेरी शादी में आना भी इन्होंने उचित नहीं समझा। मैं इतनी दूरी का कभी कारण नहीं समझ पाया। मेरे दिल में आज भी संगीता के माता पिता के लिए उतनी ही इज़्जत है।इस शहर में आज आकर ना जाने क्यूँ उनसे मिले बिना चले जाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। मैं पत्नी और बिटिया के साथ आज लगभग बाइस साल बाद उस दरवाजे के सामने था। जहां बड़ी धूमधाम से मैं बारात लेकर आया था। उसदिन मेरे लिए ये लोग आँखें बिछाए खड़े थे आज देख कर शायद पहचाने ना या देख कर आँखें फेर लें। मैं इसी असमंजस में था तभी बिटिया ने दरवाजे पर लगे बेल को बजा दिया। दरवाजा खुला और सामने ससुर जी थे। बीमार और उम्र से ज्यादा बूढ़े दिख रहे थे। पहले बिटिया और पत्नी को आश्चर्य से देखा फिर मुझे कुछ देर देख उन्होंने पहचान लिया।




“विमल बाबू आप?” चेहरे का तेज बिलकुल खत्म हो गया था उनके। बहुत ही ज्यादा उदास लगे। हमने उनके पांव छुए।उन्होंने अंदर आने को कहा और सासु माँ को आवाज लगाई

“देखो विमल बाबू आये हैं सपरिवार”

माँ जी भी अस्वस्थ लग रही थी और उदास भी। हम बैठ कर बातें ही कर रहे थे कि नज़र संगीता की फूल चढ़े तस्वीर पर गई। और साथ ही कुछ और वैसी ही तस्वीर पर। जिसे देख मैं अंदर से कांप गया। उन तस्वीरों में एक हमारे छोटे साले की भी तसवीर थी जिसे देख मैंने ससुर जी का हाथ पकड़ लिया। वे रो पड़े

“ये सब कैसे हुआ बाउजी?”

“हम तुम्हें अभागा समझ तुमसे रिश्ता तोड़ लिए थे बेटा… पर अभागे तो हम थे..हम। संजीव का पूरा परिवार भी कुछ साल पहले कार एक्सीडेंट में चल बसा”

मैं अवाक रह गया। माँ जी भी फूट फूट कर रो पड़ी। उन्हें देख मैं अंदर ही अंदर रो पड़ा।

“पहले बेटी छोड़ गई.. फिर बुढ़ापे में बेटे के परिवार के चले जाने से हम बिलकुल टूट चुके हैं..हम दोनों बिल्कुल अकेले हो गए हैं, बिल्कुल अकेले” ससुर जी की रोती बिलखती आवाज ने हम तीनों की आँखों में आँसू ले आये थे। मेरे होंठ सिल गए थे और वाणी मूक हो गई थी तभी मेरी बिटिया मेरे ससुर जी से लिपट गई

“नहीं नाना जी, आप दोनों अकेले कहाँ हैं, हम हैं ना”

“हाँ माँ, संगीता दी के जैसी ही मैं भी तो आपकी एक बेटी हूँ” पत्नी ने रोते हुए माँ जी को गले से लगा लिया” उन आंसुओं के बीच बाउजी और माँ जी के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई। सामने संगीता की तस्वीर में पूरा परिवार नज़र आ रहा था। मैं भरी आँखों से उस तस्वीर को देख रहा था कि तभी लगा जैसे वो आंखिरी बार स्टेशन पर मेरे सवाल का जवाब मेरे कानों में कह रही हो

“आपको..और. अपने इस परिवार को..!”

विनय कुमार मिश्रा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!