गलतफहमी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  महिमा और मधु पक्की सहेली थीं। वे दो जिस्म एक जान थीं | जबसे उन्होंने होश सम्हाला था तबसे वे एक साथ थीं। एल के जी. में साथ ही एक ही स्कूल में प्रवेश  लिया तब से पूरी स्कूलिंग फिर एक ही कालेज  से ग्रेज्यूशन किया। वे एक दूसरे के बिना रह ही नहीं पाती थीं। कभी महिमा मधु यहाँ खाना खा लेती तो कभी मधु महिमा के यहाँ ।

समय बीत गया अब वे बड़ी हो गई तो को उनकी शादी की चिन्ता हुई।पहले उनके माता पिता अक्सर मजाक में कहते थे कि दोनों की शादी एक ही घर में दो भाइयों  से करनी पड़ेगी। पर यर्थाथ में ऐसा सम्मभव नहीं हुआ। महिमा की शादी पढ़ाई पूरी होने के बाद  छः माह में ही हो गई। दोनों विछुड गईं महिमा जब भी मायके आती घंटो दोनों समय बिताती फिर महिमा के जाने के साथ बाद उदास हो जाती। एक साल बीतते ही मधु  की शादी भी हो गई। अब उनका  मिलना मुश्किल हो गया। क्योंकि जब महिमा मायके आती तो  मधु नहीं होती और जब मधु आती तो महिमा नहीं होती। केवल फोन पर ही दोनों अपने मन की बात कर पाती ।

 धीरे धीरे घर गृहस्थी का बोझ पड़ते ही यह सिलसिला भी कम हो गया और बाद में लगभग  बन्द हो गया।

 आज लगभग आठ साल बाद दोनो एक दूसरे को देख खुशी से नाच उठीं।

 हुआ यो॔ कि मधु महिमा के पड़ोस में ही फ्लैट किराये पर लिया था। वह और उसके पति सुयश अभी ट्रक  से सामान खाली करवा ही रहे थे कि तभी महिमा का बेटा   जो छ – वर्ष का था आकर बोला – मम्मी पडोस मे  नये आंटी – अंकल रहने आए हैं, उनके हमारे बराबर के बच्चे भी हैं अब हमें और दोस्त मिल  जायेगें। 

 उत्सुकतावश  महिमा बाहर देखने निकली उसने तुरन्त मधु को पहचान लिया । दौड़कर उसके गले लग गई, मधु भी उससे चिपट  गई महिमा  तू यहाँ है।  इतने वर्षो तक भले ही व्यस्तता के चलते वे  मिल नही पाईं, फोन से भी बात नहीं करी किन्तु उनका प्यार मरा नहीं  था , वह दिल के किसी कोने मे दुवक गया था जो आज मिलते ही आँखों के रास्ते वह  निकला।

मधु ने बताया की सुयश का ट्रान्सफर तीन महिने पहले ही दिल्ली में हुआ था। वे लोग पहले जहाँ रहते थे वहाँ से ऑफिस दूर पड़ता था  सो इधर फ्लैट ले लिया।

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महिमा बोली चल तू सामान देख तब तक  मैं चाय बना लाली हूँ। अब  खाने की चिन्ता मत कर शाम को साथ ही बैठ कर खाएगें । शाम को महिमा ने अपने पति अमित से सबका परिचय करवाया। सभी पुरानी बातों के साथ हँसी  ठहाके लगाते हुए  खाने में  व्यस्त थे । बच्चे भी  नऐ दो दोस्त पा  कर खुश  थे।

अब अमित और सुयश भी अच्छे दोस्त बन गए थे। उनके ऑफिस जाते ही दोनों     सहेली  शापिंग, बाजार के काम करने साथ  साथ ही जाति ।उनके बच्चों का एडमिशन भी उसी स्कूल  में  करवाया जहाँ महिमा के बच्चे पढ़ते थे सो बच्चों को स्कूल छोडना, पेरेन्ट्स मीटींग  में जाना सब साथ 2 होता। घर में कुछ खास बनता तो एक दूसरे के घर पहुंचाया जाता  ।  छुट्टी वाले दिन अक्सर एक के घर खाना बनता दूसरा परिवार आमंत्रित होता। 

उनका यह मेल मिलाप हंसी खुशी पडोस  में रहने वाली साराजी को विळकुल न भाई ।अब  वह हर समय इस फिराक में रहती कि कैसे इन दोनों में गलत फहमी पैदा कर लडाई करवाई  जाए वह हर हाल में उनमें दूरी पैदा करने पर आमदा हो गई।

आखिर उन्होने एक दिन मधु को अकेला पाकर उससे बात करनी शुरू की और ऐसे ही महिमा से भी दोस्ती बढ़ानी शुरू की।  किन्तु जब वे दोनों साथ होती तो वह उनसे कन्नी काटकर निकल जाती। कुछ समय बाद जब उनको विश्वास हो गया अब सही समय है इनकै कान भरने  का सो उन्होने  दोनों  से अकेले  में  एक दूसरे के विरूद्ध कान भरने शुरू किए एक दिन वह मधु  से बोली बुरा मत मानना बहुत दिनों से मैं एक बात आपसे कहना चाह रही हूं कि आपतो महिमा को इतना मान सम्मान देती हैं किन्तु वह तो मुझसे कह रही थी

मधु बडी चिपकू है हर समय साथ लग जाती है। अपनी गाडी का खर्च बचा मेरे साथ ही आती-जाती है। मधु अवाक रह गई यह सुनकर की महिमा ऐसा भी बोल सकती है। जबकि वे गाड़ी तो दोनों ही ले जाती कभी वह कभी महिमा। उसे विश्वास तो नही  हो  रहा था किन्तु शक का बीज बोने में साराजी सफल रहीं। और यही सब उन्होने महिमा के साथ भी दोहराया। उसे अच्म्भा हुआ मधु ऐसा कैसे कह सकती है।

किन्तु उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। सारा  जी  ने फिर एक दिन अपना तीर छोडा  आज महिमा के मिलते ही बोली महिमा बात तो तुम्हारी आपसी है किन्तु मैं तुम्हें बताये बिना नहीं रह पा रही, कल मधु कह रही थी कि जब देखो खाने का प्रोग्राम बना लेती है, हमारी तो जीवन में कोई प्राइवेसी ही नहीं रह गई जब देखो तब चिपके रहते  हैं ।महिमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ खून का घूंट पी कर रह गई जिसे वह प्राणों से ज्यादा चाहती थी वह मेरे प्रति ऐसे विचार रखती है। यही सब कहकर उन्होने मधु को भी विचलित कर  दिया।

  वे दोनों सतर्क हो गई।  अब बतचीत न के बराबर  होती । आमना  सामना होने पर एक दूसरे से आँखे चुरा  आगे बढ लेतीं। उनकी यह  हालत देख कर साराजी को बडा मजा आ रहा था। उनके पति अभी भी एक- दूसरे से बात करते , बच्चे साथ खेलते | साराजी को यह बात भी बैचेन कर रही थी।

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 अत: साराजी ने फिर एक निशाना साधा। साराजी मधु से  बोली क्या आजकल  तुम  दोनों बोलती नहीं हो कोई बात है क्या? मधु धीमें से बोली हाँ मन नहीं करता।

 तभी साराजी मधु से बोली बताने  वाली  बात तो  नहीं है  फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा बताती हूँ तुम महिमा   से  न कहना। कल पार्क मैं मिली थी कह रही थी  कि मधु के बच्चों में   एटीकेटस बिल्कुल नहीं है आते ही पूरा घर सिर पर   उठा  लेते हैं और खाने की चीजों पर   ऐसे  टूट पड़ते हैं मानों वर्षों के भूखें हों ।मधु का  मुँह खुला का खुला रह गया । क्या हो गया है  महिमा  को  जब दोस्ती  नहीं रखनी थी तो हाथ आगे बढ़ाया ही  क्यों? अगले दिन यही सब कुछ उन्होंने महिमा से भी  कहा। महिमा उनकी बातें सुन  अवाक रह गई। 

सोचने लगी  मेरी प्यारी सहेली को क्या हो गया ? अब दोनों ने बच्चों का मिलना भी बन्द  कर दिया। बच्चे साथ खेलने की  जिद करते परन्तु उन्हें नहीं जाने दिया जाता  वे भी उदास रहते। दोनो ही दु:खी थीं।  और अपने आप में ऐसे  सिमट गई  थीं जैसे कछुआ सिमट जाता है अपने खोल में एक दो बार इनके पतियों ने भी पूछा क्या हुआ है तुम दोनों के बीच बोलना क्यों बन्द कर दिया। पर वे  कुछ न बता कर  बात टाल  जातीं।

 तभी माहिमा की मम्मी यहाँ कुछ दिनों के लिए आई। महिमा को उदास देख कर बोली  क्या कुछ परेशानी है, नहीं मम्मी सब ठीक  है ।शाम को वे पार्क गईं उनकी भेंट मधु से हुई उन्होंने बड़े प्यार से उसे बुलाया हाल चाल पूछे किन्तु उन्हें आश्चर्य इस बात का था कि  महिमा ने क्यों नहीं बताया मधु  के बारे में।

 मधु का व्यवहार भी कुछअनमना सा था।  घर आकर उन्होंने महिमा से पूछा कि तुम जानती हो मधु यही पड़ोस  मे रहती है। 

 हाँ मम्मी ।

 तो तुमने मुझे  उसके बारे में क्यों नही  बताया।

 क्या बताती मम्मी जिस राह पर जाना   नही उसका  क्या पता बताना।

  मम्मी बोली- महिमा तू ये कैसी बातें कर रही है तुम दोनों बचपन की दोस्त हो

क्या ये भी भूल  गई। तब महिमा ने उन्हे पूरी बात बताई। बे बोली ये सब बातें मधु ने तुझसे कही हैं। 

नहीं मम्मी अगर उसने मुझसे कही होती तो मुझे इतना बुरा ना लगता जितना की अब लगा कि उसने किसी तीसरे से बात की। 

अलका जी बोली मैं नहीं मानती ये सब, जहाँ तक मैं जानती  हूॅ  मधु ऐसा सब कुछ कह ही नही सकती ।

महिमा- मम्मी  आपको  उस पर इतना विश्वास है। 

हाँ बेटा कानों सुनी बात पर  इतनाभरोसा नहीं करना चाहिए। तुम दोनों को एक बार मिलकर यह बातें साफ करनी चाहिये थी। कहीं कोई गलतफहमी हो गई। 

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महिमा बोली उसीने सारे रिश्ते तोड  दिए मेरे को तो उसकी बहुत याद आती है। कोई बात नहीं बेटा मुझे कुछ  दिन का समय दो मैं आगई हूॅ न सब ठीक कर दूॅगीं।

शाम को पार्क में वे फिर मधु से मिली और उससे भी पूछा ताछी की, उसके ऑसू आ गए मधु रोते हुए बोली महिमा ने  मेरे से बोलना बन्द कर दिया , मैं बहुत दुखी हूॅ। मुझे नहीं पता ऐसा क्यों  किया।

अलकाजी को  समझते  देर नहीं लगी कि दोनों गलत फहमी का शिकार हुई हैं। किसी तीसरे ने यह आग लगाई है। फिर उन्होने मधु से पूछा  तुम्हें यह सब बताया किसने।

 मधु बोली पड़ोस में सारा आंटी रहती हैं उन्ही से महिमा ने मेरे बारे मे  यह सब कहा।

 घर आकर जब यही सवाल उन्होने महिमा से किया तो वह भी बोली सारा आंटी से मधु ने कहा।

  अलकाजी सारा आंटी का खेल समझ  गई किन्तु वे प्रमाण सहित यह बात दोनों को बताना चाहती थीं। सो वे एक दिन पार्क में उनसे मिली धीरे-धीरे मेलजोल  बढायाा उन्हें यह नहीं बताया कि वे महिमा की मम्मी है। सारा जी पाँच छ दिन में ही उनसे अच्छी घुल मिल गई। एक दिन अलका जी उनके घर गई और बातों- बातों मे उन्होंने उन दोनों का जिक्र छेड दिया। कैसी पडोसी है जो एक दूसरे से बात तक नही॔ करती । तब सारा जी बोली नहीं बहन जी वे तो बड़ी अच्छी दोस्त थीं मैंने ही दोनों के बीच ऐसी गलत फहमी पैदा की  कि

बे अब एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करती। मेरी तरफ देखती तक नहीं थी दोनो परिवार एक दूसरे  के संग  मस्त रहते मुझे  यह अच्छा नही लगा और मैंने उन्हें अलग कर दिया। अब दोनों मेरे से बात करती हैं। यह सब बातें करते समय अलकाजी ने अपना फोन चालू कर रखा था जिसमे सब बातें रिकार्ड हो गई  । फिर अलकाजी बोली बहन जी बहुत देर हो गई चाय नहीं तो पानी तो पिला  दो। सारा जी बोली – कैसी बाते करती हैं मैं अभी चाय बना कर लाई।जैसे ही वे किचन में गई अलका जी ने फोन बन्द कर पर्स में रख लिया ।चाय पी वे घर आगई और अमित से बोली बेटा जाकर मधु और  सुयश को बुला लाओ कहना मैने  बुलाया है।

 अमित बोला माॅ ऐसा क्या काम है कल  बुला लेगें।

नहीं बेटा पहले ही बहुत देर हो चुकी है अमित जाकर उन्हें ले आया। सब ड्राइंग रूम  मे बैठ गए तब अलका जी ने फोन चालू कर रिकार्ड की बातचीत सुनाई। सुनकर सब हक्के –  वक्के  रह गए दोनों एक दूसरे को कातर निगाहों से देख रही॔ थी कि ये हमने क्या किया। दूसरे के वहकावे में आकर अपने वर्षो के प्यार दोस्ती  का गला घोंट दिया। हम आपस मैं बैठकर एक दूसरे से पूछ भी तो सकते थे कि ऐसा उसने क्यों कहा बात तुरन्त साफ हो जाती। दोनों कीआँखों से पश्चाताप  के आँसू बह रहे थे। वे इतनी दुखी थीं कि और नहीं रूक सकीं और पश्चाताप के  भाव लिए एक दूसरे के गले लग रो पड़ी॔ दोनों ही अपनी ना समझी पर पश्चाताप कर रही थी।

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तभी अलका जी  ने दोनो को प्यार से समझाया बेटा कानों सुनी बात पर कभी विश्वास नहीं करते जबतक तुमसे किसी ने स्वयं न कहा हो । देखो कितनी बड़ी गलतफहमी का शिकार हो गई तुम दोनों।

वापस अपने दोस्त का साथ पाकर के दोनों के चेहरे प्रसन्नता से चमक रहे थे। फिर से सब खुश थे बच्चे भी अपने ऊपर लगे प्रतिबंध से आजाद हो अपने दोस्तों के साथ खुश थे। 

अलका जी बोली चलो इसी खुशी में सब चाय पीकर बाहर खाना खाने चलते है।

उन लोगों को एक साथ जाते देखकर सारा जी की छाती पर साँप लौट गया वे अपने आपको ठगा  महसूस कर रही थीं। उनका प्लान जो फेल हो गया था।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मोलिक अप्रकाशित

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