फ़र्ज़ का क़र्ज़ – प्रेम बजाज

सुरेश मोची का बेटा अभी अमित शादी को एक साल हुआ, ईश्वर ने चांद सा बेटा दिया, सब बहुत खुश हैं लेकिन अमित को चिंता सता रही है।

 एक तो दादा जी ने ज़िद के कारण 20 साल की उम्र में शादी कर दी उसकी, उस पर पड़पोते का मुंह देखना चाहते हैं मरने  से पहले।

 दादाजी बुज़ुर्ग है कोई काम नहीं कर सकते और अभी दो महीने पहले अचानक पापा का  एक्सीडेंट हो गया जिसमें वो अपने दोनों हाथ गवां बैठे।

 खाने वाले घर में , दादा-दादी, मां-पापा, अमित की एक बहन, और अब ये नया सदस्य इसका भी तो अच्छे से ख़्याल रखना है, तो खाने वाले 8 और  कमाने वाला एक। 

अचानक दादा जी को हार्टअटैक आया और बहुत कोशिश के बाद भी डाक्टर ना बचा सके, सारी जमा-पूंजी  अस्पताल में ही खत्म हो गई।

अब दादी की ख्वाहिश थी  कि,” पड़पोते वाले थे सोने की सीढ़ी चढ़कर गए हैं तो जनाज़ा धूम से निकले,  बैंड-बाजे के साथ ले जाना होगा।

चलो अमित ने अपनी सगाई की अंगूठी बेच कर इंतज़ाम किया। 

उसके बाद अब रस्मपगडी़ है , ब्रह्म भोज ऐसा हो कि दूनियां देखें, केवल दाल-रोटी नहीं चलेगी,।

दो तरह का पनीर, तीन तरह की सब्जी, साथ में मीठा भी अवश्य हो, और सभी रिश्तेदारों और शहर वालों को ब्रह्म भोज पर बुलाना है कोई रह ना जाए, तेरे दादा की तेरहवीं है, पता तो चले सबको कि पोता कितना चाहता था दादा को।

आज इस बात को 6 साल बीत जाने पर भी अमित उस ब्रह्मभोज पर लिया गया क़र्ज़ नहीं चुका पाया।

बहन की उम्र बढ़ती जा रही है, उसकी शादी कहां से करें, फ़र्ज़ का क़र्ज़ चुकाते-चुकाते अमित चिंता में रहने लगा और अब डिप्रेशन में चला गया। 

 

प्रेम बजाज©®

 जगाधरी ( यमुनानगर)

 

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