एक से कपड़े – अनु माथुर  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मेरी चाची सास कभी गाँव से बाहर नहीं निकली थी | या यूं कहे उन्हें कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी | बहुत छोटी थी वो जब उनकी शादी हुई थी | घर परिवार संभलने में वो कब जवानी से वो बुढ़ापे की दहलीज़ पर आकर खड़ी हो गयी उनको पता भी नहीं चला | दो बेटे, दो बेटियाँ थी उनकी सबकी शादी हो गयी थी | और अब तो वो दादी, नानी भी बन चुकी थी |

उनके बड़े बेटे सुरेश के बेटे निशांत की शादी होने जा रही थी मुंबई में | चाची ने बहुत मना किया लेकिन निशांत ने उनसे कहा जब तक आप नहीं आयेंगी मैं शादी नहीं करूँगा | चाची को उसकी ज़िद माननी पड़ी |

चाची को लेने भी वो ख़ुद ही गया था | सब चाची को देख कर बहुत खुश थे क्योंकि वो पहली बार गाँव से बाहर निकली थी |

शादी की रस्में शुरू हुई.. हल्दी, मेहंदी, संगीत, भात सब कुछ बहुत अच्छे से हो गया | चाची को सब बहुत अच्छा लग

रहा था |

शादी का दिन आया | सुबह नाश्ते के बाद मैं चाची के पास बैठी हुई थी तभी चाची बोली – बहुरिया एक बात पूछे क्या तुमसे?

मैंने बोला – हाँ चाची जी बोलिए ना |

ये सुरेश और निशांत ने शादी का इंतज़ाम तो बहुत बढ़िया किया है…उनका का काम ठीक चल रहा है ना… कोनू परेशानी तो नहीं है ?

मैंने हँस कहा नहीं चाची जी सब बढ़िया है आपके आशीर्वाद

से |

वो फिर बोली – वैसे तो हम सुरेश की बहुरिया से भी पूछ सकते है लेकिन फिर हमको ठीक नहीं लगा इसलिए तुमसे पूछा |

आपको ऐसा क्यों लगा – मैंने पूछा

उन्होंने इधर – उधर देखा और बोली

वो ऐसा इसलिए लगा की देखो ना हल्दी, मेहंदी, उ गाने बजाने और भात में सब एक ही जैसन कपड़ा पहने रहे …हमको और तोहार चाचा जी को भी दिए रहे |

मतलब हल्दी में सब पीला रंग का कपड़ा मेहंदी में हरा, गाने में सब गुलाबी सफेद और भात में नीला, मुझे लग रहा कि सुरेश ने एक ही थान में से सबका कपड़ा सिलवा दिया | शायद पैसे की कमी की वजह से |

एक मिनट तो मैं उनकी बात समझ नहीं पाई | फिर अचानक मुझे समझ में आया तो मैं जोर से हँसी और चाची जी से बोली – चाची जी ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रही है | आजकल ये फैशन है….. मतलब आजकल शादियों में ऐसा चलन हो गया है कि हल्दी है तो पीला पहनेंगे सब, मेहंदी है तो हरा पहनेंगे इस तरह |

चाची जी मेरी तरफ हैरानी से देखते हुए बोली – अच्छा ऐसा है… पहले ज़माने में लोग ऐसा करते थे क्योंकि इतना पैसा तो होता नहीं था तो सब घर वालों के कपडे एक थान में से बनवा देते थे ही ….और जब कहीं जाए तो पहचान लिए जाए | अब ये चलन हो गया |?

हाँ चाची जी बस आप ऐसा कह सकती है कि जो काम पुराने ज़माने में किसी मजबूरी की वजह से किए जाते थे वो अब चलन में आ गए है | और इन सबको लोग बहुत अच्छा भी मानने लगे है |

तभी एक वेटर कुल्लहड में चाय ले कर आया |

चाची मुस्कुराई और बोली -“ये भी चलन में है |”

मैंने कहा – हाँ चाची जी आजकल गाँव की हर चीज़ चलन में है वो सब काफ़ी महँगी भी है और लोग बड़े शान से उनको खरीदते है |

ये चाय जो आप पी रहीं हैं तंदूरी है… मतलब बनाई गयी ये स्टील के बर्तन में ही है लेकिन सौन्धापन देने के लिए बाद में इसे

गरम मिट्टी के बर्तन डाला जाता है | तभी इसमें स्वाद आता है |

चाची बोली – मतलब लोग गाँव की चीज़े पसंद करते है ?

हाँ चाची जी और बहुत ज़्यादा |

हम्म चाची जी ने कुल्लहड में से चाय पीते हुए कहा |

“तो आज कौन सा रंग पहनना है”? – चाची जी ने पूछा

मैं मुस्कुराई और बोली – “आज आप कोई भी रंग पहन

सकती है” |

आशा करती हूँ कि आपको ये कहानी पसंद आई होगी | फिर मिलूँगी एक नई कहानी के साथ |

धन्यवाद

स्वरचित

कल्पनिक कहानी

अनु माथुर

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