एक सा कुछ नही रहता – स्नेह ज्योति

राम कुमार जी ने अपना सारा जीवन बीमा कम्पनी में काम करते हुए गुज़ार दिया ।आज वो रिटायर है ऑफ़िस से भी और घर के कामों से भी ,अब उनके घर की और उनकी ज़िम्मेदारी उनके बेटे मनोज ने ले ली हैं ।

मनोज को मेरी नौकरी पसंद नही थी । वो कहता था कि ये भी कोई काम है घर-घर जा कर बीमा बेचो और ना ही कोई इज्जत मिलती है । काम तो वो ही अच्छा होता है जिसमें मान के साथ पैसा भी अच्छा मिलें । इसलिए ज़िद कर उसने मेरी नौकरी छुड़वा दी , आपको क्या ज़रूरत है काम करने की ,मैं कमा रहा हूँ आप बस आराम करो ।

अब तो मेरा सारा समय अपनी श्रीमति की फ़रमाइश पूरी करने में गुजरता है ।जो उस समय मैं उसे नहीं दे पाया , अब वो सारा समय उसी का है ।इसी बहाने मैं भी थोड़ा फ़िट रहता हूँ , नही तो पड़े-पड़े वक्त से पहले ही घुटने जवाब दे जाएगे । इसलिए मैं अपना हर काम खुद करता हूँ ताकि इन बूढ़ी हड्डियों में जान बनी रहे ।

मनोज ने अपने जीवन में बहुत शंघर्ष किया है। और आज वो एक अच्छी कम्पनी में कार्यरत हैं। लेकिन मैं आज भी उसे संभल के चलने को कहता हूँ । हाथ रोक के खर्चा किया करो कभी भी समय एक सा नही रहता लेकिन वो कहता है आज नही जिए तो फिर कल क्या जिए ।

ज़िंदगी हँसी ख़ुशी गुज़र रही थी । एक दिन मैंने मनोज को बालकोनी में सिगरेट सुलगाते हुए उदास खड़ा देखा । मैंने उसे आवाज़ दी ,पर उसने सुना ही नही , तब मैं उसके पास गया…. क्या हुआ बेटा ? जो घर में धुँआ उड़ा रखा हैं ???

कुछ नहीं बाबू जी ऐसे ही….

तुम इसे नही पी रहे ये तुम्हें पी रही है ….. ये उचित नही हैं




तब वो बात को छुपा चुप से निकल गया, लेकिन कुछ दिनो में पता चल ही गया कि उसकी नौकरी नही रही ।

मैंने उसे कहा कोई बात नहीं धैर्य रखो दूसरी मिल जाएगी । ऐसे ही समय का पहिया चलता रहा पर नौकरी नही मिली । एक दिन हिम्मत कर मैंने उससे कहा कि मैं बीमा कम्पनी में तुम्हें लगवा सकता हूँ । जब तक अच्छी नौकरी नही मिलती यही कर लो।

नही बिल्कुल नही ! ये भी कोई काम है , “मैंने इतनी पढ़ाई इसलिए नही की थी कि ये बेकार सा काम करूँ” ।मेरा भी कोई स्टेटस है ! उससे नीचे का तो मतलब ही नहीं है ….अभी तो गुज़ारा चल रहा है और मैं नौकरी ढूँढ रहा हूँ ,तो प्लीज़ आगे से ये सब मत कहना !! राम कुमार जी चुप खड़े सुनते रहे । आज की पीढ़ी की नज़रों में बड़ों की नसीहत बेमानी हैं ।

धीरे-धीरे महंगाई की मार और नौकरी ना मिलने के ग़ुबार से मनोज परेशान रहने लगा । जो भी जमा पूँजी थी , वो भी अब रिक्त होने की कगार पे पहुँच गयी ।क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा था ? बच्चों की फ़ीस भी देनी ज़रूरी थी , लेकिन पिता जी से पैसे कैसे माँगे उसकी ग़ैरत को ये मंज़ूर नही था । मगर वक्त के आगे बेबस मनोज की बीवी ने अपने ससुर को सारी बात बताई । राम कुमार जी तभी मनोज के पास गए और बोले ! तुमने इतना पराया कर दिया कि अपनी तकलीफ छुपाने लगे !

नही पिता जी , मैं आपको परेशान नही करना चाहता था । चुप कर दो वरना एक रख के दूँगा !

अब तुम मुझे बताओगे….जा कल बच्चों की फ़ीस जमा कर और “जो मेरा है वो तेरा ही है ख़बरदार जो आगे से ऐसी बात की “।

माफ कर दो पिता जी !

आज पिता जी की बातों से बहुत बड़ा सहारा मिला । मगर बाबू जी के पैसों से कितने दिन कटेंगे , यही सोच मनोज रोज काम की तलाश करता पर हर तरफ़ से निराशा ही हाथ लगती ।

एक दिन अचानक से रात को बिजली चली गयी ।बाहर जा कर देखा तो पता चला कि हमारी ही बिजली गयी है । तब याद आया कि मैं तो बिजली का बिल भरना ही भूल गया !

माफ करना बाबू जी मेरी वजह से आज आप लोगों को अंधेरे में रहना पड़ेगा ।कोई बात नही बेटा ! कल जा कर बिल भर देना ।

यूँ बार- बार बाबू जी के सामने शर्मिंदा होना अच्छा नही लग रहा था । वो मुझे हमेशा समझाते रहे कि फ़िज़ूलख़र्ची मत किया करो !लेकिन वो बात आज समझ आ रही है पर “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत “।




कभी – कभी तो बहुत झुँझलाहट होती है, हर बात पे ग़ुस्सा आता है । एक दिन तो हद हो गयी मैने बाबू जी के ऊपर चिल्ला के अपना सारा ग़ुस्सा निकाल दिया । ये देख बच्चे भी सहम गए , और जब सब शांत हुआ तो मैं शर्म से पानी-पानी हो गया । मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ ?? मैंने उनसे जाकर माफ़ी माँगी और अपने कमरें की तरफ बढ़ा तो मैंने बच्चों की बातें सुनी !

पिया राजू से कह रही थी भैया मेरा बैग फट गया है और पुराना भी हो गया है ,क्या मैं नया बैग ले लूँ ।

राजू – अभी रहने दो ! मैं यही ठीक करा के ला दूँगा ।

क्यों भैया ??

अभी पापा की नौकरी नही हैं तो ऐसे ही काम चलाना पड़ेगा ।

ये सुन ! मनोज को आत्मग्लानि होने लगी और सोचने लगा कि जिन बच्चों को मैंने कभी कोई कमी नही होने दी ,वो ही आज अपना मन मार मेरा सोच रहे हैं।

अगले दिन मनोज ने अपने बाबू जी के कहने पे बीमा कम्पनी में काम के लिए हाँ कर दी ।

ये जान सब के चेहरे पे एक मुस्कान खिल उठी मानो अब सब ठीक हो जाएगा ।

माना ये सब मनोज के मन मुताबिक़ नही था ।लेकिन अब वो जान गया था कि हमेशा वक़्त एक सा नही रहता । हमें आज का ही नहीं आने वाले कल का भी सोचना चाहिए । इसलिए अब वो अपनी छोड़ अपनो के लिए जीना सिख गया था ।

#अप्रैल मासिक चौथी रचना

स्वरचित

स्नेह ज्योति

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