एक रुपैय्या – किरण केशरे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: ऋतु भाभी का अभी अभी फोन आ गया था, जीज्जी , शैल दी और आप कब तक आ रही हो,,,! फिर मुझे भी तो अपने भाई के यहाँ जाना है,,,शहर में ही मेरा मायका है तो क्या  हुआ !! भाभी की आवाज में अपनापन कम कर्तव्य पुरा करने का आभास ही ज्यादा लग रहा था  । 

अभी चार दिन थे राखी के त्यौहार को,,,छोटी बहन शैल को मैंने पूछा की वो कब तक आएगी राखी पर,,,लेकिन वह थोड़े रोष में बोली क्या फायदा जीजी,,,जहाँ हमारा जाना सिर्फ भाई भाभी के लिए त्यौहार को निभाने की रस्म भर हो  ! 

ऐसा नही कहते शैलू,,,वहाँ माँ, बाबूजी भी तो हमारी राह देखते हैं ना,,, दोनों आपस में ही बातें करते रहते हैं की हमारी दोनों बेटियाँ साथ आएगी तो हम ये करेंगे, वो कहेंगे!! 

 भैया के दोनों बच्चे गुड्डन और गोलु भी तो हमें और तन्वी और बबलू से कितना प्यार करते हैं ! और ऋतु भाभी भी दिल की बुरी नही है,,, बस थोड़ी सी झल्ली है,,, मैं हँस पड़ी थी  ! 

वो तो है जीजी,,,,पर बात बे बात भाभी का बातों ही बातों में अपने मायके और भाई-भाभी की बड़ाई कर हमें नीचा दिखाने की आदत मुझसे सहन नही होती । और उस पर भाई की चुप्पी तो बहुत खलती है,,,, शैल ने अपनी भड़ास निकाली! 

अरे कोई बात नही,,, मेरी बहन ! फिर भी हमें अपने माँ, बाबूजी और सबके के लिए जाना ही होगा !! और दोनों भाईयों को भी दुख होगा हमारे नही जाने पर,,,,बड़े भैया,भाभी को सामने से कुछ बोल नही पाते पर हमें लाड़ भी तो करते हैं ! 

आज राखी का त्यौहार ,,,, बड़े उत्साह से बाबूजी और माँ हमारी राह तक रहे थे, गुड्डन और गोलु मेरी बेटी तन्वी और और शैल के बेटे बबलू से मिलकर बहुत खुश हो गए थे,,,भैया ने भी स्नेह के साथ स्वागत किया ! ऋतु भाभी ने भी अपनी खुशी ये कहते जाहिर की,,,,”चलो आप दोनों साथ ही आ गई तो बहुत अच्छा हुआ नही तो पार साल एक बहन राखी पर तो एक तीज पर आई थी”

सुनकर शैल का चेहरा तमतमा गया,, लेकिन मैंने इशारे से मना कर दिया की बिना कारण कलेश होगा और माँ बाबूजी को बुरा लगेगा ,सभी मिल बैठकर आपस में बतिया रहे थे,,,, 

ऋतु  भाभी सबके लिए चाय नाश्ते का प्रबन्ध कर रही थी की, गुड्डन ने आकर कहा मम्मी…मम्मी ! नानी का फोन आ 

रहा है…ऋतु रसोई से निकल कर बड़े उत्साह से फोन पर माँ से बात करने लगी ! माँ का स्वर सुनकर वह चौक गई,,,,माँ का स्वर थोड़ा बुझा हुआ था,,,कह रही थी,,,,ऋतु बेटी ,तुम अपनी नंदों के साथ ही राखी पर्व अपने घर आनंदपूर्वक मनाना क्योंकि तुम्हारी भाभी भी अपने मायके चली गई है,,,और भाई भी छुट्टी नही मिलने से घर नही आ रहा ! यहाँ तुम बाद में चली आना हमसे मिलने ! तुम्हारी भाभी भी आ जाएगी तब तक!! 

तुम आ जाओगी तो तुम्हारी सास ससुर और नंदो को अच्छा नही लगेगा,,,,,, कम से कम तुम तो अपने परिवार के साथ हसीं खुशी ये त्यौहार मनाओ  ! कह कर माँ ने फोन रख दिया,,,, ऋतु की आँखो में माँ की बात सुनकर आँसू छलक आए,, माँ और हम बहनें समझ नही पा रहे थे की, अचानक ऋतु भाभी को क्या हुआ  !! पूछने पर बताया की भाई भी नही आ पाएगा और भाभी अपने मायके रक्षाबंधन मनाने गई है,,,, 

छोटा भाई शिवम भी तब तक अपनी मेडिकल शॉप से आ गया था,,, बहनों और भांजे भांजियों को देखते ही वह बहुत खुश हो गया  , ढेर सारी चाकलेट्स  और रंग बिरङ्गे गिफ़्ट पैकेट सभी बच्चों को पकड़ा दिये। 

हम बहनें अपने दोनों भाईयों को शुभ मुहूर्त में राखी बाँध रही थी,,,, ऋतु भाभी माँ और पिताजी के पास बैठी थी,,,सुंदर चेहरे पर उदासी छाई हुई थी  ! राखी बंधवाने के बाद शिवम उठा माँ पिताजी के पैर छुकर आशीर्वाद लिया और ऋतु भाभी से बोला  “आप मुझे राखी नही बाँधेगी भाभी,,,,मैं भी तो आपके भाई जैसा ही हूँ ना” ! 

ऋतु अचकचा  गई,,, ये वही शिवम है जिसे वह वक्त बेवक्त ताने देती थी,,,की तुम तो सेठ बनकर दुकानदारी करते हो! जब चाहा दुकान पर गए नही तो नही!! नौकर तो है ही,,,,देवरानी आएगी तो वो भी मजे में रहेगी। एक तुम्हारे भैया दिन-रात नौकरी में खटते रहते हैं,,,

लेकिन शिवम भी भाभी की बात का बुरा नही मानता,,,हमेशा उनकी बातों को हँसकर टाल देता। 

तभी माँ ने ऋतु से कहा, “बहू सोच का रही हो,,, अपने भाई जैसे देवर को राखी बाँध दो बहुरिया”

ऋतु ने उठकर शिवम को स्नेह से पाटे पर बैठाया और कुंकुम  का तिलक अक्षत लगाकर उसके हाथ में  राखी की रेशम डोर बाँध दी,,,शिवम ने झुक कर भाभी के पैर छुए तो ऋतु ने उठाकर उसका माथा चूम कर आशीर्वाद दे दिया,,,,और हँसकर कहा भैया ! मेरा लीफाफा दो,,,,तभी बाबूजी बोल उठे अरे,,,पहले मैं अपनी बहू को एक रुपैय्या दूंगा ! जो अभी तक शैल को देता था,,,,मैं हँसकर बोली बाबूजी वो एक रुपैय्या नही आपका आशीर्वाद और प्यार है, जो आप हमें बचपन से देते थे,,,,अब हमारी प्यारी भाभी ने हथिया लिया  ! ऋतु , शैल की तरफ देख खिलखिला उठी,,,घर में खुशियों के गुलाब महकने लगे,,,,थोड़ी देर पहले माँ की बातों से जो उसके मन में पीहर न जाने के  दुःख से उदासी सी छाई थी, वह अपने प्यारे से ससुराल के सभी लोगों का दुलार पा कर सुख मे बदल गई  ! 

किरण केशरे

#सुख-दुःख

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!