एक दूजे के लिए – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

अन्वी आज सबसे दूर भाग जाना चाहती थी। जिन परिवार वालों के लिए उसने अपना सब कुछ लगा दिया आज उन्होंने ही उसको पराया बना दिया। वक्त के साथ खून के रिश्तों पर भी किस कदर बर्फ जम जाती है ये उसको महसूस तो होना शुरू हो गया था पर आज अपनी आंखों से देख लिया था।

परिवार की बड़ी संतान होने की कीमत तो वो बहुत पहले से चुकाती आई थी। उसे आज भी याद है जब स्कूल में उसने विज्ञान विषय से पढ़ाई करनी चाही तो उसको ये कहकर रोक दिया गया कि उसमें बहुत खर्चा आएगा और अभी उसके छोटे भाई बहन भी हैं जिनकी पढ़ाई और अन्य खर्चें भी देखने हैं।

वो तो फिर भी पढ़ाई में होशियार है कोई ना कोई प्रतियोगिता निकाल ही लेगी। उसने बिना किसी विरोध के अपने परिवार को अहमियत देते हुए इस बात को मान लिया। जब तक पापा थे तब तक फिर भी सब ठीक था पर उनके अचानक दुर्घटना में निधन के बाद घर की सारी जिम्मेदारियां उसके कंधों पर आ गई।

कहां तो उसने सोचा था कि वो बैंक परीक्षा देगी और उसमें पास होने के बाद शादी कर लेगी। फिर परिवार और नौकरी दोनों संतुलन बैठाकर आराम से संभालेगी पर जैसा हम सोचते हैं वैसा कहां हो पाता है। ईश्वर की योजनाएं हमारे से दो कदम आगे चलती हैं।

एक दिन उसके पापा को ऑफिस से लौटते वक्त सामने से तेज़ी से आते एक ट्रक ने अपनी चपेट में ले लिया। उन्होंने दुर्घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया। पापा छोटी सी फर्म में अकाउंटेंट थे। कुछ इंश्योरेंस भी नहीं था। बस उनके अच्छे व्यवहार और ईमानदारी को देखते हुए अन्वी को उनकी जगह थोड़े कम वेतन पर नौकरी मिल गई।

जहां मां और छोटे भाई बहन दुख से बिलख रहे थे वहीं अन्वी की आंखों से आंसू सुख चुके थे। उसे अपने छोटे भाई-बहन के भविष्य की चिंता थी। उसने अपनी पिता की चिता के आगे अपनी मां को दिलासा दिया था कि अब से घर की सारे कर्तव्य वो निभायेगी। उसके छोटे भाई-बहन को किसी भी बात की समस्या नहीं होगी।

अभी उसके स्नातक होने में एक वर्ष बाकी था। उसने फर्म में शिफ्ट में नौकरी की बात की। अब पहले वो कॉलेज जाती और उसके बाद नौकरी करती। बीच-बीच में समय मिलता तब बैंक की परीक्षाओं की तैयारी करती। ज़िंदगी उसके लिए मशीन बन गई थी। छोटे भाई-बहन के भविष्य के साथ वो कोई कोताही नहीं करना चाहती थी।

देखते देखते उसके स्नातक का आखिरी साल भी पूरा होने को आया। जिस दिन आखिरी परीक्षा थी उस दिन उसके साथ में पढ़ने वाला कार्तिक उसके पास आया और बोला कि वो उससे कुछ बात करना चाहता है। उसके बात करने के तरीके से अन्वी को भी ये एहसास था कि वो क्या कहना चाहता है,वैसे भी पिछले तीन साल से दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। मन ही मन पसंद भी करते थे। दोनों ही काफ़ी संस्कारी और संयमी थे।

अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना जानते थे। जब कार्तिक ने अन्वी से कहा कि वो उसे हमेशा के लिए अपना हमसफर बनाना चाहता है तब अन्वी ने कहा कि पसंद तो वो भी उसको बहुत करती है पर शायद इस जन्म में वो उसकी हमसफर नहीं बन पाएगी। अब उसे अपने परिवार को संभालना है। उसका अब एकमात्र उद्देश्य अपने भाई बहन का भविष्य बनाना है। अगर वो शादी कर लेगी तो शायद उनके साथ न्याय नहीं कर पाएगी।

तब कार्तिक ने कहा कि वो परिवार की अहमियत समझता है। वो हर कदम पर उसके साथ खड़ा है। उसको पिताजी की कंपनी संभालनी है। उसके संभालते ही वो अन्वी को जीवन संगिनी बना लेगा। फिर अन्वी की सारी जिम्मेदारियां वो भी साझा करेगा। अन्वी बहुत ही स्वाभिमानी थी। वो छोटी सी उम्र में ही काफ़ी परिपक्व हो गई थी।

वो समझती थी कि शादी के पहले के वादों में और बाद के हालातों में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। वो नहीं चाहती थी कि उससे शादी करने के बाद उसे किसी ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़े कि वो अपने भाई-बहन के प्रति अपने फर्ज़ भी पूरे ना कर पाए। ये सब सोचकर उसने कार्तिक के प्रस्ताव को नकार दिया। उसकी बेरुखी ने कार्तिक का दिल तोड़ दिया। 

कार्तिक ने अपनी तरफ से अन्वी को समझाने का हर संभव प्रयास किया पर असफल रहा। इस तरह एक प्रेम कहानी अपनी मंजिल पर पहुंचे बिना ही समाप्त हो गई। इस बात को 10 साल बीत गए। इस बीच बहुत कुछ हुआ। कॉलेज समाप्त होने के एक वर्ष के अंदर अन्वी का बैंक प्रतियोगिता में चयन हो गया।

उसको अपने शहर के ही अच्छे बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर की नौकरी मिल गई। अच्छी नौकरी मिलने से उसका वेतन भी काफ़ी अच्छा आने लगा। अच्छा वेतन घर पर आने से उसके घर वालों का भी रहन-सहन में परिवर्तन आ गया।जहां वो अभी भी अपने काम में व्यस्त रहती वहीं दूसरी तरफ छोटे भाई बहन मौज मस्ती में लगे रहते। अगर कभी वो उनको कुछ समझाना या डांटना भी चाहती तब ऐसे में मां भी उनकी गलतियों पर पर्दा डालती और तो और अब भाई बहन उसके सामने आने में कतराने लगे थे।

घर में ही वो बिल्कुल अकेली पड़ गई। उसके लिए शादी के लिए रिश्ते भी आते तो उसकी मां और भाई-बहन कोई ना कोई कमी निकालकर अन्वी तक बात पहुंचने से पहले ही समाप्त कर देते। अन्वी भी इस और कोई ध्यान नहीं देती थी क्योंकि उसकी शादी की इच्छा तो कार्तिक से अलग होने के बाद ही कहीं दफन हो गई थी।

ये सब तो चल ही रहा था पर हद तो तब हुई जब भाई अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़कर अपना काम शुरू करने के लिए पैसे की मांग करने लगा और बहन भी कॉलेज जाने के नाम पर फैशन में लगी रहती।उसने दोनों को समझाने की कोशिश की। जब वो नहीं माने तब सख्ती से भाई को पढ़ाई पूरी करने को कहा और बहन पर भी नज़र रखनी शुरू की। उसकी यही सख्ती घर वालों को नागवार गुजरी।

यहां तक कि उसकी मां ने भी बोल दिया कि आज अगर उसके पिता जिंदा होते तो उसके दोनों बच्चों को इस तरह तरसना ना पड़ता। आज वो जो कुछ भी है और जिस बात का रोब दिखाती है वो पिता के बदले जो नौकरी मिली थी उसके बलबूते है। बहन ने तो उसको ये भी बोला कि अपने समय में वो कॉलेज की मस्ती से वंचित रही इसलिए हमारी खुशी भी नहीं देखी जा रही। 

उन लोगों की बातें उसके कलेजे को चीर रही थी। आज वो खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी। उस दिन अकेले में रात को उसके आंसू सारे बांध तोड़कर उसके तकिए को गीला करते रहे। शायद ये जरुरी भी था। पापा के निधन के बाद से ही जैसे वो पत्थर हो गई थी।

आज रो लेने के बाद वो बहुत ही हल्का महसूस कर रही थी और उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिए। पापा की जो जमापूंजी की एफडी थी उसको तुड़वाया,भाई को काम करने के लिए पैसा दिया। साथ ही साथ एक मैरिज ब्यूरो के द्वारा और आस पास रिश्तेदारी में बहन के लिए लड़के देखने शुरू किए। बहन के स्नातक पूरा होते ही एक अमीर और अच्छे घर के लड़के का देखकर एक महीने के अंदर उसकी शादी कर दी।

इधर बैंक की मुंबई शाखा में अपने ट्रांसफर के लिए भी आवेदन कर दिया। बहन के विदा होते ही उसने मां को महीने के खर्च के पैसे देते हुए कहा कि मेरा ट्रांसफर मुंबई हो गया है। मैंने अभी तक की अपनी सभी जिम्मेदारियां निभाई हैं और आगे भी निभाऊंगी पर शायद अब यहां नहीं रह पाऊंगी क्योंकि शायद हमारा समाज घर की बड़ी बेटी से जिम्मेदारियां निभाने की उम्मीद तो करता है पर उसका प्रभुत्व स्वीकार नहीं कर पाता। 

मां उसकी बातों पर कुछ नहीं कह पाई। 

वो चुपचाप रात की फ्लाइट से मुंबई निकल गई। पहले तो उसको लगा कि वो कहां आ गई क्योंकि हर कोई यहां भागता हुआ ही नज़र आता। फिर उसे लगा कि वो भी तो भाग ही रही है अपने अतीत से। वैसे भी कई बार परायों के बीच रहना अपनों से ज्यादा आसान होता है। धीरे धीरे वो यहां के माहौल में रचने बसने लगी।

कुछ दिन बैंक के गेस्ट हाउस में रहने के बाद उसने पास की ही सोसाइटी में एक कमरे का फ्लैट किराए पर ले लिया। अब उसको मुंबई में रहते हुए दो साल हो गए थे। एक दिन वो बैंक में व्यस्त थी तभी उसने एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनी। आवाज़ की तरफ उसकी निगाहें गई तो देखा कार्तिक था। वो अपनी कंपनी के लिए लोन पास करवाने आया था और वरिष्ठ प्रबंधक से बात कर रहा था। अन्वी ने उसको देखा जरूर पर वो उसका सामना नहीं करना चाहती थी।

वैसे भी अन्वी को लगा कि अब तक तो कार्तिक की शादी भी हो गई होगी और उसका अपना परिवार होगा। ये सब सोचते हुए वो अपने फ्लैट में वापिस आ गई। कार्तिक के विवाह प्रस्ताव की स्वर्णिम यादें आज उसके मन मस्तिष्क में बार बार जगह बना रही थी। वो सोच रही थी अच्छा हुआ कि कार्तिक ने उसे नहीं देखा पर कार्तिक ने उसे देख भी लिया था और  उसके फ्लैट का पता भी लगा लिया था। अगले दिन सुबह जब अन्वी बैंक जाने के लिए निकली तो देखा कि कार्तिक उसके दरवाज़े पर खड़ा था। 

अन्वी तो कार्तिक को देखकर हक्की-बक्की रह गई। तब कार्तिक ने मसखरी करते हुए कहा कि माना मैं बहुत हैंडसम हूं पर कब तक ऐसे देखती रहोगी? उसके ऐसा बोलने पर वो ख्यालों की दुनिया से वापिस आई। तब कार्तिक ने कहा कि अगर कोई समस्या ना हो तो एक कप चाय ही पिला दो और एक पुराने दोस्त के लिए एक दिन की छुट्टी तो तुम ले ही सकती हो। अन्वी से कुछ कहते ना बना। उसने कार्तिक को घर में बैठाया।

फिर दोनों की बात शुरू हुई।अन्वी कार्तिक से उसकी पत्नी और परिवार के बारें में पूछना चाहती थी पर उससे पहले ही कार्तिक ने उसके सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। पहले तो अन्वी चुप रही पर फिर कार्तिक के बार-बार पूछने पर उसने सब कह सुनाया। सब सुनने के बाद कार्तिक ने उसको कहा कि इतना सब हो गया अब तो स्वयं को अहमियत देना शुरू करो।

अभी सिर्फ बत्तीस साल की ही हो तो खुद का जीवन साथी क्यों नहीं खोज लेती? कार्तिक की बातें सुनकर अन्वी ने बातें दूसरी दिशा में घुमाते हुए उसकी पत्नी और परिवार के लिए पूछा। तब कार्तिक ने कहा कि मैंने अभी तक शादी नहीं की पर अब होने वाली क्योंकि मेरी बड़ी खूबसूरत सी प्रेमिका है। 

प्रेमिका शब्द सुनकर अन्वी अंदर ही अंदर नारीसुलभ ईर्ष्या से सुलग उठी। कार्तिक को उसके चेहरे पर आ रहे भावों को देखकर मन ही मन बहुत मज़ा आ रहा था। उसने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा कि अच्छा हुआ अन्वी तुम मेरे को मुंबई में मिल गई अब मेरी शादी में जरूर आना। अन्वी की आंखों में नमी सी उतर आई आखिर उसके जीवन पहला और आखिरी प्यार था कार्तिक।

कार्तिक को जब लगा कि बात थोड़ा गंभीर हो गई है तब उसने अन्वी से कहा चलो तुम्हें फोटो ही दिखा देता हूं अपनी प्रेमिका का। उसने अपना मोबाइल अन्वी की तरफ बढ़ाया। अन्वी ने बड़े बोझिल मन से मोबाइल पर निगाह डाली तो देखा उसका ही कॉलेज के समय का फोटो था जो कार्तिक ने विदाई समारोह पर पता नहीं कब ले लिया था।

अब कार्तिक ने मुस्कराते हुए कहा कि मेरे को पता था जिस दिन मेरी अन्वी परिवार के साथ साथ खुद को भी अहमियत देने लग जायेगी उस दिन भगवान खुद मेरे को उससे मिलवा देगा क्योंकि हम एक दूजे के लिए ही बने हैं। वैसे भी कहते हैं  “किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है “। कार्तिक की बातें सुनकर अन्वी के कपोल गुलाबी हो गए। कार्तिक और अन्वी ने परिणय सूत्र में बंधने से पहले अपने-अपने परिवार वालों को सूचित किया।

जहां कार्तिक के माता पिता कब से इस दिन का इंतजार कर रहे थे वहीं अन्वी की मां की बातों में कोई उत्साह नहीं था। उनको लग रहा था कि कहीं अब अन्वी घर के खर्चे के लिए पैसे भेजना ना बंद कर दे क्योंकि बेटा तो कारोबार शुरू करने के नाम पर लिए रुपयों भी जुए में गंवा चुका था।

उन्होंने दबी जबान में कहा कि तीस से पार होने के बाद शादी करने पर आगे परिवार बढ़ाने में समस्या आती है और शादी ही करनी थी तो अपनी बिरादरी में लड़कों की कमी थी क्या? उनकी ये बातें सुनकर अन्वी ने बिना विचलित हुए कहा कि बत्तीस साल की उम्र कोई बहुत ज्यादा नहीं होती और वैसे भी मैं केवल आपको सूचित कर रही हूं।

आप निश्चिंत रहिए क्योंकि घर का खर्चा में पहले की तरह आपके अकाउंट में भेजती रहूंगी। ये कहकर उसने फोन काट दिया। अब वो सब भूल कर तैयार होने लगी क्योंकि आज उसे कार्तिक के साथ शादी की खरीदारी करने जाना था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी। कुछ रिश्ते एक दूजे के लिए बने होते हैं। पर मेरा मानना है कि कई बार खून के संबंध भी पानी हो जाते हैं ऐसे में हर किसी को अपनी स्वयं की अहमियत नहीं भूलनी चाहिए क्योंकि सबकी ज़िंदगी में कार्तिक जैसा साथी नहीं होता।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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