एक अतृप्त माँ – पूजा मनोज अग्रवाल

#ख्वाब 

बात सन 2003 की है , उस समय मेरी प्रेगनेंसी का प्रथम तिहाई चरण था ,,,,,उन दिनो मेरा स्वास्थ्य कुछ ठीक न था ,,, मुझे हर समय तीव्र सर दर्द की शिकायत रह्ती ,,,। गत कई दिनो से मुझे एक अजीब सा स्वप्न भी आ रहा था ,,,,, कुछ ही दिन शान्ति से बीतते थे ,,,,कि फ़िर से वह दु:स्वप्न,,, मेरी नींद मे दस्तक देने आ जाया करता । घर मे सबसे साझा करने पर किसी ने भी मेरी इस बात पर कुछ खासा ध्यान ना दिया था,,,। 

मैंने डॉक्टर से भी इस बारे मे अपनी परेशानी साझा की ,,,,,।

डॉक्टर ने कहा , ” प्रथम गर्भावस्था में कई बार कुछ माओँ  मे ऐसी परेशानियां देखने को मिलती है । चिन्ता की कोई बात नही । 

वे मुझे चिंता मुक्त करने का हर सम्भव प्रयास किया करती,,,। उनकी मोटिवेशनल बातें सुनकर कुछ दिन तो सब कुछ नॉर्मल चलता और फिर थोड़े दिन बाद फिर से वही विचार,,,, वही सोच मुझ पर  हावी हो जाती । 

इस बीच मेरे ख्वाबों ने मेरा पीछा कभी छोड़ा ही नहीं था ।  नींद से डरने लगी थी मैं ,,,नींद के आगोश में खोने के बाद स्वप्न मे मुझे एक नवजात शिशु के करुण क्रंदन का स्वर सुनाई पड़ता,,,,, जिसे सुनकर मैं यहां से वहां ,, वहां से यहाँ उस शिशु को ढूंढने का निष्फल प्रयास किया  करती । मुझे उस शिशु का रूदन स्वर तो सुनाई पड़ता,,, परंतु कहीं भी कोई शिशु  दिखाई ना पड़ता,,,, मैं जहां तक  उस शिशु का स्वर सुन पाती , वहां तक एक विक्षिप्त युवती की भांति इधर से उधर उसे ढूंढती फ़िरती ,,,।

शिशु की  करुण क्रंदन सुन कर ऐसा लगता मानो वह एक दो दिन का बालक जन्म जन्मांतर से भूखा है ,,,व अपनी क्षुधा पूर्ति के लिए अपनी मां को अपने रुदन स्वर से पुकार रहा है ,,,, । मै इतना ही स्वप्न देख पाती और मेरी नींद टूट जाया करती।


 ,,,, समय बीतते  प्रेगनेंसी का नवा महीना शुरु हो गया था ,,मेरा मन व  मस्तिष्क दोनो ही भयभीत थे,,,। कई बार इस बारे में अपनी मां से बात की ,,,तो वे मुझे चिंता ना करते हुए तनाव मुक्त रहने की सलाह दिया करती ,,, । 

अपनी कुछ शारीरिक व मानसिक परेशानियों के चलते  ,,,मैं अवसाद ग्रस्त हो चली थी । प्रथम संतान थी तो सब कुछ मेरे लिए नया था ,,,।  मै प्रेग्नेंसी की सभी तक्लीफो और अवस्थाओ से अनभिज्ञ थी  ।

 1 अगस्त 2003  कि सुबह 4:00 बजे का समय ,,,,  फिर वही चिर परिचित ख्वाब चलचित्र की भांति मेरे मानस पटल पर चलने लगा था ,,,,,,कभी ना दिखने वाला शिशु आज मुझे दिखाई पड़ा था  । अगले ही पल मै उसके समीप खडी थी ,,,,खून से लथपथ ,,, बिन माँ का वह नवजात शिशु अनावरत रो रहा था ,,,,,उसे देखते ही मेरे भीतर की माँ तडप उठी थी  ,,,, मेरा द्रवित हृदय उसे उठा कर आलिंगनबद्ध करना चाह रहा था,,,। ज्यों ही मैने उसे उठाने को हाथ बढाये,,,यह क्या  ! वह शिशु तो मेरे हाथों से आर पार हो गया ,,, यह ठीक वैसा ही था ,,,,जैसा की फिल्मों में कोई आत्मा  किसी इंसानी शरीर के आर पार हो जाती हैं ,,,।

लाख कोशिशो के बाद भी मैं उस शिशु को अपने हाथों में न उठा पाई । मातृत्व का यह अधूरापन अपनी उच्च पराकाष्ठा पर था ,,,,मै स्वयं  को विक्षिप्त व  व्यथित देख रही थी ,,,।  नींद के आगोश मे भी मेरी आंखों से अश्रु बह निकले थे ।

 घबराकर मै उठकर बैठ गई,,, पास मे ही ये लेटे  थे ,,,मेरी हर दिन की परेशानी से वाकिफ थे ,,,”इन्होने मुझे आराम करने की सलाह दी ,,,। परंतु इतने भयंकर दु:स्वप्न के बाद मेरी आंखों से नींद नदारद हो चुकी थी ।



अनायास ही बुरे  विचार मन में सक्रिय हो गये,,, मैने आज ही डॉक्टर से मिलने का निश्चय किया  ,, कुछ ही देर में हम हॉस्पिटल पहुंच चुके थे । डॉक्टर ने मुझे  तुरंत  अल्ट्रासाउंड कराने के लिए भेजा,,,। मैने अल्ट्रासाउंड कराया और पतिदेव ने मेरी रिपोर्ट गाड़ी के डैशबोर्ड पर रख दी ,,,,। भविष्य मे होने वाली अनहोनी से अनजान  , मैं अपने आने वाले बालक के बारे में सोच कर मन ही मन खुश हो रही थी,,,, मात्र 10 या 15 दिन का इंतजार और एक प्यारा सा बच्चा ,,,मेरी गोद में ,,,,। अनायास ही रिपोर्ट पर मेरी नजर गई,,,।  और उसे उठाकर पढ़ने की चेष्टा की,,,, इतने ही पतिदेव ने तुरंत मेरे हाथ से वह फाइल खींचकर अपनी सीट के पीछे दबा ली । कुछ ही मिनटों के अंतराल पर हम हॉस्पिटल पहुंच चुके थे,,,। मै गाड़ी से उतर गई,,,, और  ये गाड़ी पार्क करने के लिए गए,,। इनकी आंखों से बचाकर चुपचाप मैंने अपनी रिपौर्ट ले ली थी,,,।  और उसे खोलते ही मेरी नजर उसकी अन्तिम पंक्ति के उस शब्द पर अंकित हो गई । अरे यह क्या था ,,,,,  lying,,,,,,अर्थात ,,,,,पड़ा हुआ,,,, ।  इसका क्या अर्थ था,,, रिपोर्ट मेरे सामने थी , उसका हर शब्द मै पढ चुकी थी ,,,,मेरा अजन्मा  शिशु जा चुका था,,,,केवल उसकी देह मेरे भीतर रह गई थी,,,,।  अपने मनोभावों पर मेरा कोई नियंत्रण ना था । गहरा सदमे मे ,रो- रो, चीख पुकार कर मै बेहोश होकर गिर पड़ी थी ,,,। अब तक पति देव घर पर सासु मां को सूचित कर

चुके थे ,,। वे भी तुरंत मेरे पास पहुंच गई थी,,,।

 रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने बताया ,,,,उसके प्राण निकले हुए 12 घन्टे बीत चुके हैं ,,,अजन्मे मृत बच्चे को तुरंत शरीर से निकालने के लिये मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया ,,,,आर्टिफिशियल पेन की सहयता से  बेजान बच्चे का जन्म कराया गया । रात के 1:30 बजे तक मैं शारीरिक पीड़ा से मुक्त हो चुकी थी ,, परंतु उस दिन मुझे  जो मानसिक पीड़ा मिली थी,,, उसकी दुखद अनुभूति आज भी महसूस करती हूँ  ,,,,। जन्म  प्रक्रिया की वजह से उस नन्हें से बच्चे  का चेहरा विकृत हो चुका था,, इसलिये डॉक्टर ने  उसका चेहरा ना दिखाने की हिदायत दे दी थी ।

 उसे एक नजर जी भर कर  देख भी  ना देख पाई, ,,,, ऐसी अभागी माँ थी मै,,,,। 

“उसे एक पल को दिखा दो मुझे ” ,,,, कह कर अपनी सास से लिपट गई थी  ,,, सासू माँ ने मेरा दर्द  समझते हुए उसे एक नजर दिखाने का फैसला लिया ,,,।



उसका छोटा सा शरीर सफेद कपडे मे लपेट कर मेरे पास लाया गया ,,,,बस एक पल हाथ से छू भर पाई थी मै ,,,जल्दी ही सब उसे मेरी आंखों से दूर ले गये ,,,,, मै रोती बिलख्ती ही रह गई ,,,,।

आज इस घटना को 19 वर्ष बीत चुके हैं। मैं उस तारीख ,,,उस दिन ,,, को नही भुला पाई हूं ,,,। समय के साथ घाव हल्के पड़ गये हैं,,,परंतु उसके दृश्य धूमिल ना पड़े हैं,,,वे आज भी मेरे हृदय के कोने मे कहीं दफन हैं । 

  9 महीने तक परेशान करने वाले इस डरावने स्वप्न का अन्त हो चुका था,,,, इस स्वप्न का अर्थ मै समझ चुकी थी  ,,,परमात्मा मुझे इस स्वप्न के माध्यम से इस अनहोनी घटना का पूर्वाभास कराते रहे थे,,,,,पर मैं नादानी वश उसे कभी ना समझ पाई थी,,,,।

एक अधूरी माँ अगले दिन वापस अपने घर लौट आई,,,,,दोबारा वह स्वप्न मैने कभी ना देखा,,,

उस शिशु का मुझसे जुडा  कुछ कर्म फल शेष था,,, जिसका भुगतान हम दोनो माँ बेटे ने मिलकर  कर दिया था  ,,,,।

पूजा मनोज अग्रवाल

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