ख्वाब – पुष्पा पाण्डेय

आज शारदा सुबह-सुबह ही स्नान कर माता रानी के सामने 

दीपक जला कर पूजा कर रही थी। घंटी की आवाज से फूलमति की नींद खुल गयी।

“अरे बेटा!आज इतनी सुबह क्यों उठ गयी?

कहीं जाना भी तो नहीं है।”

“माँ, आज रात में नींद ही कहाँ आई?”

जवाब सुनकर फूलमति ने मन-ही-मन में बुदबुदाया– मुझे भी नींद कहाँ आई। क्या मेरा सपना आज साकार हो पायेगा।

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अतीत के पन्ने फड़फड़ा ने लगे।—–

फूलमति पाँच साल की रही होगी। अपनी मालकिन को देखती थी एक बड़ी गाड़ी आती थी और बड़े रौब से उसमें जाकर बैठ जाती थी और फिर शाम को आती थी। रोज फूलमति दूर खड़ी चुपचाप टुकुर- टुकुर देखा करती थी। एक दिन अपनी माँ से पूछ ही बैठी।

“माँ ! मैडम आँटी रोज इतनी बड़ी गाड़ी में बैठकर कहाँ जाती हैं?”

“बेटा, मैडम आँटी बड़का साहब हैं। नौकरी करने जाती हैं।”

“मैं भी बड़ी होकर गाड़ी से नौकरी करने जाऊँगी।”


“इसके लिए पढ़ाई करनी पड़ती है।”

” मैं पढ़ाई करूँगी।”

आगे फूलमति की माँ कुछ न बोल सकी।बस मन में यही सोचकर रह गय कि हम गरीबों के लिए ये सब थोड़े ही होता है।बच्ची है, बड़ी होकर समझ जायेगी।

तब से फूलमति स्कूल जाने के लिए माँ से जिद्द करने लगी। माँ ने भी उसे एक सरकारी स्कूल में दाखिला दिला दिया। 

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जैसे-तैसे छठ्ठी कक्षा तक पहुँच गयी। अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आती थी। फूलमति का परिवार दिहाड़ी मजदूर वर्ग  का था। उसकी माँ उस मैडम के घर खाना बनाने का काम करती थी। फूलमति को इससे अधिक पढ़ाने के पक्ष में परिवार वाले नहीं थे। उसकी माँ भी सोचती रही- इतना पढ़ गयी बहुत है। अब थोड़ा काम- धंधा भी सीख ले। फिर इसकी शादी भी तो करनी होगी। फूलमति बहुत रोयी थी ।उसे तो मैडम की तरह गाड़ी से नौकरी करने जाना था। लेकिन——

कुछ साल बाद पूलमति की शादी हो गयी। लड़का एक स्कूल में चपरासी का काम करता था।फूलमति बहुत खुश थी कि उसका पति स्कूल में नौकरी करता है। खुशी और बढ़ गयी जब बेटी शारदा ने जन्म लिया।

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बेटी उसी स्कूल में पढ़ने भी लगी। कौन जानता है कि जिन्दगी एक पल में सबकुछ बदल देगी। फूलमति का पति एक हादसे का शिकार हुआ और माँ बेटी को इस दुनिया में संघर्ष करने के लिए छोड़ गया।—–


एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। किसी तरह फूलमति को उसी स्कूल में सफाई कर्मचारी के तौर पर नौकरी मिल गयी और माँ बेटी की जिन्दगी पटरी पर आ गयी। 

अब फूलमति का एक ही लक्ष्य था- बेटी का भविष्य।

उसकी आँखों में आज भी वो ख्वाब पल रहा था। वह चाहती थी कि मेरा सपना अब मेरी बेटी पूरी करे, लेकिन कभी किसी को बताया नहीं। 

“माँ! अभी तक तुम वहीं बैठे-बैठे क्या सोच रही हो?”

आज उसे कुछ भी करने को मन नहीं कर रहा था। काम पर जाने से भी मना कर दिया।——-

शारदा अपने कमरे में मोबाइल लेकर बैठ गयी। आज P.S.C का परिणाम आने वाला था। 

घंटों बाद शारदा  अपने कमरे से चिल्लाती हुई आई ।

” माँ ! मैं सलेक्ट हो गयी।”

और माँ के गले लग गयी। फूलमति की आँखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लगी।

“आज मेरा ख्वाब पूरा हो गया। ये ख्वाब मैंने बरसों पहले अपने लिए देखे थे जो आज मेरी बेटी ने उसे पूरा दिया।”


” बरसों पहले? कभी बताया नहीं? मैं तो तुम्हें और संघर्ष करते हुए नहीं देख सकती थी, इसलिए आगे  पढ़ने की बजाय  मैं P.S.C की परीक्षा में शामिल हुई।”

“मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी  मेरे सपने पूरे करने के तनाव में आकर पढ़ाई  करे।”

“माँ ,अब तुम्हें ये सफाई कर्मी वाले काम नहीं करने पड़ेंगे।”

” नहीं बेटा, जब-तक हाथ-पाँव चलते रहेंगे,मैं काम करना नहीं छोड़ सकती। ये काम ही मेरा ख्वाब पूरा किया।

 

स्वरचित और मौलिक रचना

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड। 

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