दोबारा गरम की हुई चाय – ज्योति व्यास

मेरा बेटा ,मेरी बहू ,मेरा पोता…..

ओ माय गॉड !कितना बोलती है यह महिला।

एक तो सुबह ऑफिस पहुँचने की जल्दी ,सारे काम निपटा के समय से निकलना और ऊपर से इतनी तेज आवाज़ में बातचीत !दोनों में तालमेल बैठाना मुझे थोड़ा जटिल ही लगता है।

ये महिला और कोई नहीं मेरी गृह सहायिका है जो इतनी बातूनी है कि पूछो मत!

आज रविवार था और मैं भी रिलैक्स मूड में थी।रोज की तरह मैंने अपनी चाय ले कर के उसे भी दी।आज मैंने उसे अपने पास बैठा लिया और हम बात करने लगे।

मैंने पूछा ,”तुम अपने बेटे ,बहू और पोते की बात तो रोज करती हो ,कभी अपने पति के बारे में कोई चर्चा नहीं करती हो ! क्या वे कहीं बाहर रहते हैं ?”

उसने छूटते ही कहा , “नहीं ,नहीं यहीं हैं।खेती !खेती करते हैं।”

थोड़ी देर चुप रहने के बाद उदासी के साथ बोली

“उन्होंने दूसरी शादी कर ली है न !


“ओह ! मुझे तो पहले ही शक़ था। कुछ तो दाल में काला है ।”मैंने कहा।

अरे तुम तो आज भी इतनी अच्छी दिखती हो ।फिर क्यों ?

इस पर वह थोड़ा खुश हो गई।फिर उदास हो कर बोली ,”मेरा बेटा पैदा  हुआ था और मैं थोड़ा बीमार पड़ गई थी ।बस इन्होंने चोरी से शादी कर ली।”

फिर मैंने कहा ,”तुमने कोई कोर्ट कचहरी नहीं की ?”

थोड़ा निराश हो कर बोली ,”अब क्या कोर्ट कचहरी !,सब साथ मे ही तो रह रहे हैं। वो भी हमारे साथ ही रह रही है।”

मैंने आश्चर्य से कहा ,वाह दीदी !मानना पड़ेगा आपको और आपके पति को।दूसरी पत्नी के बाद भी साथ में रह रहे हो।

कितना प्यार करती हो न अपने पति को !!!

“नहीं मैडम जी !आप गलत सोच रहीं हैं।

” जैसे दुबारा गर्म की हुई चाय में पहले वाली मिठास नहीं रह जाती उसी तरह समझौता किया हुआ रिश्ते में भी कोई प्यार नहीं रह जाता है।”

आँसू पोंछते हुए उसने कहा और फर्श पर दुगुनी ताक़त से पोंछा लगाने लगी।

रविवार का आनंद समाप्त हो चुका था।

ज्योति अप्रतिम

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