खून – कंचन श्रीवास्तव 

साल पुजने को आया पर अपनो के बीच आई दूरियां सिमटने का नाम नहीं ले रही।

सुन सुन के औरों से थक गई है अपनी गलतियां।

जिसका असर किसी पर पड़े ना पड़े पर उसकी सेहत पर साफ नज़र आ रहा। जीना तो उसने नहीं छोड़ा वो भला कोई छोड़ सकता है जब तक सांसें हैं तब तक ठीक ठाक चलने के लिए उसे उसका ख्याल तो रखना ही पड़ेगा ,मसलन खाना पीना पर जो रौनक उसके चेहरे की थी वो कहीं न कहीं जाती रही और अपनों की वैमनस्य ने उसे दीमक की तरह चाट डाला यानि वो कई मर्ज से ग्रसित हो गई।

फिर एक दिन हार कर जब डाक्टर ने सलाह दी की देखिए अपने मन की बात किसी से कहिए ,उसे हल्का कीजिए तभी आप ठीक हो सकती है।

क्योंकि यदि कोई इंसान मन से बीमार है तो दवा भी काम नहीं करती जब तक उसका मन खुश नहीं होगा।

पर ये तो चिकना घड़ा थी। उसकी बात को तबज्जों न देते हुए अपने में ही बड़बड़ाने लगी।

कौन है अपना जिसके सीने में दर्द सारा उड़ेल दें।

जो थे उनसे तो ऐसी अनबन है कि क्या करें।

इसलिए सहना हमें खुद ही होगा।


सोचती हुई केबिन से बाहर निकली तो आटो स्टैंड के पास खड़ी आटो का इंतजार कर रही थी।

इसी बीच उसकी मुलाकात रेखा चाची से हो गई।

जो उसे देखकर सकपका गई और बोली अरे तुम तो पहचान में ही नहीं आ रही आखिर हो क्या गया।

तब इसने सारा दर्द उसने बयां किया।

इस पर वो उसे अपने घर ले गई और सारी बात सुनने के बाद निचोड़ यही निकला कि उसे न होते हुए भी गलती मान लेनी चाहिए।

अपनी खुशी के लिए।

क्योंकि कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं ।इससे पहले जैसे तो नहीं रहेंगे फिर भी रिश्ते महक उठेंगे जिसकी खुशबू में तुम नहाकर खुद को स्वस्थ महसूस करोगी।

घर आकर इसने इस पर विचार किया तो इसे सही लगा।

और इसने फोन मिला कर बात करने को कहा।

इस पर वो लोग राजी हो गए।

और बात चीत से मामला सलट  गया।

जिसका असर उसके चेहरे और सेहत पर साफ नज़र आने लगा जहां हर दम चेहरा मुर्झाया और उदास रहता था वहीं  चहकने और खुश रहने लगी


तो उसी चाची ने फोन करके एक रोज फिर हाल चाल पूछा।तो इसने सब कछ ठीकठाक बताया।इस पर उन्होंने कहा- बेटा

खून के रिश्ते अजीब होते हैं।

जीते जी जुदाई बर्दाश्त नही करते।  ग़लतफहमियों को दूर करके एक दूसरे के साथ बने रहना  चाहते हैं।

स्वरचित

कंचन आरज़ू

 

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