दो बुजुर्गों का आशीर्वाद मिला – सुषमा यादव : Moral Stories in Hindi

शिवानी अपने पति, मां और सास के देहांत के बाद अपने पिता और श्वसुर जी को गांव से अपने साथ अपने कार्यस्थल एक शहर में लेकर आई। दोनों अकेले थे।उसके दो बेटियां थीं दोनों को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया जो बड़ों के आशीर्वाद से आज उच्च पदों पर बाहर आसीन हैं।

वह अकेले ही दोनों बुजुर्गों के साथ रहती साथ में नौकरी भी करती थी।

दोनों को नहलाने धुलाने में मदद करके नाश्ता,खाना बनाने,खिलाने के पश्चात अपनी नौकरी पर चली जाती। बीच में उसके पिता जी जो स्वस्थ थे,चाय वगैरह बना कर अपने समधी जी को देते और खुद भी पीते। दोनों टीवी देखते या बाहर बैठकर हंसी मजाक करते।

सबका समय अच्छा चल रहा था।

वह भी दोनों को हंसता देखकर खुश होती। बीच बीच में वह दोनों को लेकर अपने गांव भी जाती, खेतों को अधिया में दे रखा था। फसलों को बेचकर पैसे अपने श्वसुर जी के हाथ में रखती। आखिर वह उनके फसलों की कमाई थी।वे खुश हो जाते और बहू को सौंप देते।

दो बार श्वसुर जी बीमार हुए उनको शिवानी ने अस्पताल में भर्ती कराया। अपने ड्राइवर की मार्फत। दिन में वो अस्पताल,घर और अपनी नौकरी में समय देती रात को ड्राइवर सोता।

कुछ सालों बाद श्वसुर जी बहुत बीमार हुए, शिवानी से बोले,,बहू, तुमने मेरी बहुत सेवा की, मैं बिस्तर पर से उठ नहीं सकता था तुमने सभी फर्ज एक बेटे का निभाया। मैं अब अधिक दिन नहीं जी पाऊंगा। मेरा आशिर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। खुश रहना, तुम्हारी सारी परेशानियां भगवान दूर करेंगे। इसके दो दिन बाद ही उन्होंने अंतिम सांस ले ली। 

अब शिवानी और उसके पिता जी अकेले हो गये थे। दोनों को उनकी बहुत याद आती ।

 कई सालों बाद पिता जी भी बीमार पड़ गए। शायद वो अपने साथी का विछोह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। बेटी ने उनकी भी खूब सेवा किया, बिस्तर पर ही वो सब करते पर शिवानी एक बच्चे की तरह उनकी भी श्वसुर की तरह साफ सफाई करती। अपने हाथों से खाना खिलाती।

एक दिन सुबह-सुबह जब शिवानी अपने पिता जी को दूध दलिया खिला रही थी,वो बोल नहीं पा रहे थे,बस आंखों से आंसू बहने लगे, उन्होंने ऊपर की तरफ़ इशारा किया, और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए झुक कर उसके पैर छू लिए। यह देखकर शिवानी घबरा गई, शायद वो ऊपर जाने का इशारा कर रहे थे।वह भी रोने लगी, उनके गले लगकर बोली, नहीं बाबू जी,आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते, मुझे आपकी बहुत जरूरत है। मैं बिल्कुल अकेली हो जाऊंगी।

उसने देखा कि बाबू जी उसे कृतज्ञ नजरों से देख रहे थे, वो लेट गए और एक लंबी सांस खींचकर अलविदा कह गए।

शिवानी ने ही अपने पिता और श्वसुर का प्रयागराज संगम में दाह संस्कार किया।

अब तो शिवानी एकदम अकेले हो गई। वह कभी अपने गांव तो कभी दोनों बेटियों के पास चक्कर लगाते लगाते थक रही थी। गांव की प्रापर्टी बेचना चाहती थी पर पांच, छः सालों से ना तो उचित दाम मिल रहे थे और ना ही ईमानदार लोग। सब एडवांस देने की बात कहते।पर वो अपने फैसले पर अडिग रही। भले ही कम पैसे मिले पर पूरा पैसा एक साथ मिले। कोई भी तैयार नहीं हुआ।वो तो बेईमानी पर अड़े थे, अकेली महिला क्या कर सकती है? 

उस साल शिवानी गांव में अकेले बैठी निराश हो कर चारों तरफ देख रही थी कि इतने में जमीन के ग्राहक आये, उन्होंने तुरंत शिवानी की मांग मान ली, जबकि शिवानी ने पहले से तिगुना राशि मांगी।

पर बिना ना नुकुर किये उन्होंने तीन दिन में पूरी धनराशि उसके एकाउंट में जमा कर दिया और चौथे दिन मकान सहित रजिस्ट्री हो गई। शिवानी आश्चर्य चकित रह गई। कहां वह सालों से परेशान थी,कम दाम में बेचने को भी तैयार थी पर आज तो कमाल ही हो गया है। उसे समझ में आ गया कि श्वसुर जी और पिता जी ने उसे खूब आशीर्वाद दिया था, उनका आशीर्वाद आज फलीभूत हो गया है। वह दोनों की तस्वीर के आगे अश्रुपूरित नेत्रों से देखते हुए धन्यवाद कह रही थी।

अगर आप अपने बुजुर्गों की सेवा निःस्वार्थ भाव से करते हैं तो उसका सुखद प्रतिफल आपको जरूर मिलता है। उनका आशीर्वाद आपको हर विषम परिस्थितियों से बचाता है।

सुषमा यादव पेरिस

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

# आशीर्वाद

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