दिल टूटा पर भरोसा नहीं टूटा – सुषमा यादव

दिल के टुकड़े हुए हजार,,पर भरोसा नहीं टूटने दिया,,,

पिछले वर्ष करोना काल में मैं भी दिल्ली में ही रह गई थी, वापस नहीं जा पाई, करोना काल में सभी पुराने सीरियल पुनः शुरू हो गये थे, मैंने भी एक सीरियल देखा, ‘ फ़रमान’ , इस में नायिका नायक के अंत समय में भी नहीं जाती है उसे देखने,।उसे किसी को दिया गया अपना वचन जो निभाना था, किसी को भरोसा जो दिया था। उसके हवेली के सामने की कोठी में उसका प्यार दम तोड़ रहा था,पर वो नहीं गई तो नहीं गयी, क्या वचन बद्धता निभाई उसने,।।

ये तो एक पुरानी कहानी है,पर ये देखकर मुझे भी अपनी बरसों पहले की कहानी याद आने लगी, जो कि एक हकीकत है,,

सोलहवां साल,, क्या कहने, मन में नई तरंगें,नई उमंगे,आकाश को छूने की तमन्ना,मन बावरा ,तो बस यही गुनगुनाता रहता,”पंछी बनूं उड़ती फिरूं , मस्त गगन में” ।।

ऐसे ही मगन होकर एक दिन स्कूल से वापस लौटते समय अपने घर जाने वाली गली से होकर तेजी से जाते समय एक सुंदर लडक़े से टकरा गई, दोनों ने एक दूसरे को एक क्षण को देखा, मैं बहुत घबरा गई, और तेजी से  घर की तरफ़ भागी,पर आंखों के सामने वही चेहरा बार बार आ रहा था, दरअसल दो,तीन गलियों से होता हुआ अंदर बहुत से लोगों के घर बने थे, उन्हीं में से एक घर उसका भी था,।

इसी तरह कई बार हम दोनों आमने-सामने हुए,हम एक-दूसरे को एक नज़र  देखते , वो मुस्कुरा देता और मैं शर्मा कर भाग जाती,, एक दिन वो बोला , तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, और एक छोटा सा पत्र चुपके से नीचे डाल दिया, मैंने जल्दी से उठा कर अपनी किताब में रख लिया और रात को सोते समय अपने कमरे में पत्र खोल कर पढ़ने लगी,वाह,कितनी खूबसूरत लिखावट है, कितने प्यार से लिखा गया है,, मैं तो खुशी के मारे पागल ही हो गई, मेरी सहेलियों के चहकने का राज़ अब मुझे भी मालूम हो गया था,।

फिर क्या था, पत्रों का आदान-प्रदान होने लगा,बस गली में हम दोनों चुपके से लेटर नीचे गिरा देते, उठा लेते और चले जाते,पूरा पत्र प्यारी, प्यारी बातों से और शेरों, शायरी, गीतों से भरी रहती,।कई महीनों तक ये सिलसिला जारी रहा, दिन पंख लगा कर जैसे उड़ते जा रहे थे, बहुत ही खुशी से समय उड़ान भर रहा था, परंतु एक दिन आखिर विस्फोट हो ही गया, जो नहीं होना था वो हो गया,।

बाबू जी अचानक ऊपर मेरे कमरे में आये और बोले , क्या पढ़ रही हो मीनू, और पुस्तक हाथ में लेकर देखने लगे, ये क्या, अचानक एक छोटा सा पत्र किताब से नीचे गिर गया, बाबू जी ने उठाया और पढ़ने लगे, बहुत ही गुस्से से मुझे देखा और जाकर मां को खूब डांटने लगे, क्या करती हो दिन भर , एक लड़की नहीं संभाल सकती,,मेरा तो रो,रोकर बुरा हाल हो रहा था, मैं डर के मारे थर-थर कांप रही थी, मां ने भी मुझे बहुत डांटा,।




हालांकि आप जानना चाहते हैं कि उस पत्र में क्या लिखा था,,

पत्र केवल दो लाइन का था,

‘ प्रिय मीनू,

कल शिवरात्रि का मेला लग रहा है, क्या तुम देखने आओगी,

तुम्हारा शिवम्,

पर मेरी पोल तो खुल चुकी थी, कभी एक दूसरे की उंगली तक का स्पर्श नहीं हुआ, कभी भरपूर एक दूसरे को नज़र भर देखा नहीं,पर अपराधिनी तो बन गई थी ना उनकी नज़र में,

अब क्या था, घर में तूफ़ान आ गया था, बाबू जी ने कहा तो नहीं कुछ, पर मौनव्रत एवं भूख-हड़ताल शुरू कर दिया, मैं लगातार रोये जा रही थी, स्कूल भी जाना बंद कर दिया, दिन भर घर में मातम छाया रहा, मुझे कुछ भी कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी,

दूसरे दिन मां ने आकर कहा कि जा कर माफ़ी मांगो और बोलो कि अब ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी,, तुम्हारे बाबूजी ने खाना, पीना छोड़ दिया है, यह सुनकर मैं डरते, डरते गई और उनके पैरों पर गिर पड़ी, रोते हुए बोली कि बाबू जी मुझे माफ़ कर दीजिए, और फिर धीरे से गंभीर आवाज गूंजी, मैं तभी तुम्हें माफ़ करूंगा जब तुम मेरा कहना मानोगी, चूंकि बाबू जी मां के मनाने पर खाना तो खानें लगे थे पर सात दिन हो गए थे , मुझसे बात नहीं करते थे, मैं अपने पिता से बहुत प्यार करती थी, अतः मैंने कहा कि आप जो भी कहेंगे, मैं करूंगी,

बाबू जी ने कहा , मुझसे वादा करो, कि ,अब मैं कभी भी ऐसी गलती नहीं करूंगी,

तुम कभी मेरा भरोसा नहीं तोड़ोगी, क्या तुम पर मैं भरोसा कर सकता हूं।।




मैंने कसम ली और रोते हुए अपने कमरे में चली गई, मैं तो जिंदा ही मुर्दा बन गई और शिवम् को बिना कारण बताए ही वनवास दे दिया। स्कूल आना जाना छोटे भाई के संरक्षण में होने लगा, अब घर भी बदल दिया गया,,हमारा आमना ,सामना  फिर नहीं हो पाया,,

समय अपनी गति से सरकता जा रहा था, अब मेरी टीचर्स ट्रेनिंग पूरी हुई और मेरी पोस्टिंग एक स्कूल में हो गई, जब अपने पिता जी के साथ स्कूल में ज्वाइन करने गई तो आफिस में उन्हें देखकर दंग रह गई,इतने सालों बाद ,ओह, मेरे तो हांथ पैर कांपने लगे, बाबू जी ने मुझे कड़ी नजरों से घूरा और चले गए, अब उनके बस में तो नहीं था कि वो मेरी नौकरी ही छुड़वा देते,, वो बहुत पहले से उसी स्कूल में शिक्षक थे,

फिर से उन्होंने पूरी कोशिश की बात करने की, पत्र देने की,पर मुझे तो अपना दिया गया वचन निभाना था, मैं पत्थर की मूर्ति बन गई थी, पर अपने जज्बातों को कैसे रोकूं,,

स्कूल में एक बड़े से कमरे को दो भागों में बांट दिया गया था,बीच में छोटी सी दीवार बना दी गई थी,हम  शिक्षक बच्चों को पढ़ाते समय एक दूसरे को आसानी से देख सकते थे,

एक पीरियड में हम दोनों आमने-सामने होते थे,,जिसे मैंने   महीनों पत्रों का आदान-प्रदान होने पर भी भरपूर नजरों से नहीं देखा, वो पैंतालीस मिनट तक सामने रहे, तो इतने समय तक मेरी जो हालत होती , शब्दों में बयां करना मुश्किल है, मैं तो बच्चों को पढ़ा भी नहीं पा रही थी,तीन,चार दिन ऐसे ही बीता, आखिर में मैंने परेशान हो कर एक फैसला किया और एक दिन स्लेट पर लिखा,” आप यहां से अपना ट्रांसफर  करवा लीजिए, यहां से चले जाइए,,, और एक बच्चे से कहा कि जाओ , सामने उन सर को दे दो, उन्होंने पढ़ा,, कुछ बोले नहीं और आफिस में चले गए,,जब मैं आफिस में गई तो देखा कि वो अकेले चुपचाप बैठे हैं, मैं तुंरत ही वापस लौटने लगी, पीछे से आवाज आई कि आखिर बात क्या है, कुछ बताओगी भी, मैंने नजरें झुका ली और बोली कि आप यहां से चले जाइए , प्लीज़, वरना मैं ये नौकरी छोड़ दूंगी,, उन्होंने आश्चर्य और दुःख से मुझे देखते हुए कहा , ठीक है,,

दूसरे दिन से वो मुझे स्कूल में दिखाई नहीं दिए,, कुछ दिनों बाद मेरा मन बेचैन होने लगा, मैंने एक शिक्षक से पूंछा तो पता चला कि वो मेडिकल अवकाश पर चले गए हैं, और अपने तबादले की अर्जी भी दे दिए हैं, जबकि उनका घर भी यही पर है, और अभी इसी साल तो ये यहां आएं हैं, पता नहीं , क्या हो गया,, मुझे बहुत ही दुख हुआ पर सोचा कि यही सही रहेगा, और संतोष की सांस ली, आखिर में वो चले गए, बिना बताए बिना कुछ कहे,,, फिर मैंने कभी नहीं देखा उनको, जबकि उनका गांव मेरे शहर से मात्र एक , डेढ़ घंटे की दूरी पर था, खैर,।  




करीब दो साल के बाद एक दिन मैं अपनी प्रिय सहेली के घर गई , कुछ देर बाद उसने मुझे कहा कि तुमसे एक बात पूछूं, मैंने कहा कि हां बोलो, तुम्हारे और शिवम् के बारे में हम सब जानते हैं,,,यह सुनकर मैं सन्न रह गई, तुम कैसे,,, उसने बताया कि मेरा भाई और वो दोनों दोस्त हैं, जब तुम स्कूल में पढ़ती थी तो वो तुम्हारा पीछा करते थे, तुमसे कुछ कहना चाहते थे,पर तुम्हारा भाई हमेशा तुम्हारे साथ में रहता था, एक दिन मेरे भाई ने देख लिया और पूछा तो उसने तुम्हारे और अपने बारे में सब बता दिया, और बोला कि मैं एक उपन्यास लिख रहा हूं, और उसका समापन लिखना है, वो तुमसे मिलकर पूंछना चाहता है कि मेरा कसूर क्या है , जो तुम उससे इतनी दूर चलीं गईं, कारण बताए बिना,,

मेरी सहेली ने कहा कि तुम उसका उपन्यास पढ़ कर उसका समापन लिख दो, मैं भाई से कहकर गांव से बुलवा देती हूं,, मैं बहुत रोई और मैंने मना कर दिया, उसके बाद मैं कभी भी उसके घर नहीं गई, क्या पता, कभी मुलाकात ही ना हो जाए,

उस शहर में उसी स्कूल में तेरह वर्ष रही ,पर कभी नहीं देखा, वापस पुनः ट्रान्सफर हो कर दूसरे शहर वापस आई जो कि उनके गांव से मात्र दो, ढ़ाई घंटे की दूरी पर है, आज़ भी वहीं हूं, नजरें ढूंढती हैं कि एक बार दिखाई दे जायें तो मन का सब गुबार निकाल दूं, 

आज मैं सेवा निवृत्त हो गई हूं,पर उम्र के इस पड़ाव पर भी कुछ नहीं भूलीं हूं, सब कुछ जैसे अभी की बात हो,मन के एक कोने में दर्द शायद अंत तक रहेगा,

आज भी उनके पत्र में सुंदर लिखावट में लिखी ये चंद पंक्तियां जब कभी कहीं भी सुनाई दे जाती है तो आंखों से आंसू बहने लगते हैं,,

” आंचल में सज़ा लेना कलियां,

दामन में सितारें भर लेना ,

ऐसे ही कभी जब शाम ढले,

तो याद हमें भी कर लेना,,,

*** बाबूजी मैंने आपसे किया वादा निभाया, आपका भरोसा क़ायम रखा, कभी वापस मुड़ कर नहीं देखा,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र

स्वरचित मौलिक

# भरोसा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!