भरोसा – शकुंतला अग्रवाल शकुन 

घर दुल्हन की तरह सजा हुआ है। हो भी क्यों नहीं? इस घर की लाड़ली बिटिया (रीना) की शादी जो है। मंगल-गीत गाए जा रहे हैं।आज रीना के हल्दी लगी है। वो परियों की रानी लग रही है और उसकी सब सहेलियाँ परियाँ।मिसेज वर्मा का तो कहना ही क्या?50 की उम्र में भी, वो तो ऐसी लग रही है जैसे- साक्षात उर्वशी उतर आई हो स्वर्गलोक से।इसीलिए अधिकांश वो ईर्ष्या की शिकार होती थी।

भोजन से निवृत्त होकर सब सहेलियाँ व परिवार की अन्य महिलाएँ चुहल करने बैठ गईं।तब…..ीना ने अपनी मम्मी को आवाज लगाई।”मम्मा! आओ तो, सभी आ गए हैं।””काम न करूँ, तुम्हारे साथ गप्पे मारूँ?” अमिता प्यार- भरी झिड़की देते हुए बोली।

“काम तो होता ही रहेगा, अब आ जाओ ना।”

“अच्छा बाबा, आती हूँ।”

हाथ का काम निबटा कर अमिता भी लड़कियों के साथ आकर बैठ जाती है।

अचानक रीना को मजाक सूझा और वो बोली…..।

“बारी-बारी से सब अपनी-अपनी लवस्टोरी सुनाएंगे।”

कुछ ने ना-नुकुर की और कुछ ने अपनी- अपनी कहानी सुनाई, अंत में रीना, मम्मी की ओर मुखातिब होकर बोली।

“मम्मा! अब आपका नम्बर है, आप अपनी लवस्टोरी सुनाइए।”

“अरे! यह सब आजकल का फैशन है, हमारे समय में लव-शव नहीं किया जाता था। कोई गलती से कर भी लेता तो, बहुत बदनामी सहनी पड़ती थी।”

आंटी! आप आज भी इतनी सुंदर लगती हो, पहले तो कहर ढाती होंगी। लड़कों की लाइन लगी रहती होगी?” अमिता की सखी बोल गई।

“चल, हट ऐसा कुछ नहीं था।”कहकर अमिता सिर दर्द का बहाना बनाकर वहाँ से खिसक ली, और अपने बेडरूम में आ गयी।आज अपनी ही बेटी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया तो, उसके घाव हरे हो गए।



अगले ही पल वह अतीत के समंदर में गोते लगाने लगी। जिसमें उसके हाथ सदा विष ही आया ,अमृत का स्वाद तो उसने चखा ही नहीं था कि अमृत कैसा होता है?

यहाँ तक कि उस समंदर से निकलने वाला प्रेम- कलश भी, विष- कलश बन गया था। जब सुधीर ने यह बताया कि वो पिता बनने वाला है। एक बारगी तो अमिता की हालत ऐसी हो गई जैसे कोई साँप सूँघ गया हो, पर हिम्मत करके वो बोली…..

सुधीर! तुम तो बोल रहे थे कि तुम्हारी बचपन में ही शादी हो गई थी। जिसे आप नहीं मानते व आपका उससे कोई सम्बन्ध नहीं है। बाल- विवाह को सरकार भी मान्यता नहीं देती है। आपकी नौकरी लगते ही हम शादी कर लेंगे। यही बोले थे ना?”

सुधीर:-” हाँ, बोला था।”

अमिता:-“तो फिर यह सब क्या है? और यह बच्चा?”

“अमिता! मुझे गलत मत समझो। जो भी हुआ मजबूरी में हुआ है।”

“ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई थी? जिसने मेरे दामन में काँटें भरने पर मजबूर कर दिया तुम्हें। क्या यह भी याद नहीं रहा, आपने ईश्वर को साक्षी मानकर मेरी माँग में सिन्दूर सजाया था?” अमिता करुण-स्वर में बोली।

“सब याद था, पर माँ के हार्ट-अटैक आ जाने से उनकी देख- रेख करने के लिए, पिताजी के कहने पर मुझे बाल- विवाह को मानना पड़ा व उमा (पत्नी) को लाना पड़ा।”

“उसके साथ सम्बन्ध बनाने के लिए भी पिताजी ने ही बोला होगा? सुधीर! कितना झूठ बोलोगे? यह क्यों नहीं कहते कि अपनी काम- वासना को नहीं दबा पाए थे।”

“अमिता! ऐसा नहीं है , मुझे भी तुम्हारी चिंता रहती है।” सुधीर चिंतित -स्वर में बोला।



“मेरी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। उम्हें जो करना था, सो कर दिया आगे क्या करना है, मैं देख लूँगी। मैंने तो स्वयं से ज्यादा‌ भरोसा तुम पर किया और पूर्ण समर्पण भाव से तुमको चाहा। पर तुमने मेरे भरोसे को अपने पैरों तले रौंदकर मेरी आत्मा तक को लहूलुहान कर दिया। गलती तो मेरी ही थी, जो दो वर्ष की अवधी में भी मैं तुम्हारा असली चेहरा नहीं पढ़ पाई। खैर! अब अपने रास्ते अलग हो गए हैं, मेरा नाम भी कभी अपनी जुबान से मत लेना…..।”

“अमिता! इतनी बड़ी सजा मत दो। मैंने तुम से प्यार किया है।”

“बहुत प्यार करते हो तभी तो मेरी खुशियों को ग्रहण लगा दिया, अपने ही हाथों से। क्या चाहते हो, मैं तुम्हारी रखैल बनकर रहूँ?

अब इन बातों का कोई औचित्य नहीं है।” कहकर अमिता ने अपनी नई राह पर कदम बड़ा दिए।

कहते है कि समय हर घाव को भर देता है। अमिता भी अपनी हिम्मत से कुछ समय पश्चात अतीत से निकलने में कामयाब हो गई।

ईश्वर की कृपा व माता-पिता के आशीर्वाद से, चन्दन जी जैसा जीवनसाथी मिल गया जिसने अपनी खुशबू से अमिता के जीवन को भी खुशनुमा बना दिया।

फिर भी दिल के किसी कोने में टीस तो रहती है जो कभी-कभी काँटे-सी चुभने लगती है।इस झंझावत के चलते अमिता की आँखों से कब सैलाब फूट पड़ा उसको ज्ञात नहीं हुआ।



“अरे! अमिता कहाँ हो?” चंदन जी की आवाज सुनकर अमिता वर्तमान में लौट आती है।

“जी! यहीं हूँ, आती हूँ ।”

अमिता बाहर जाती उससे पहले ही, चंदन कमरे में आ जाते हैं अमिता की हालत देखकर…..”यह क्या ? तुम्हारी आँखों से बेमौसम बरसात क्यों हो रही है?”

“बिटिया के जाने के बाद घर सूना हो जाएगा ,यह सोचकर ही मन बैठा जा रहा है और कुछ नहीं …..।” अमिता अपना दर्द दबाते हुए बोली।

उसी समय रीना भी आ जाती है।”मम्मा! क्या हुआ? मैं तो मजाक कर रही थी।”

” कोई हमे भी बताएगा, कौनसा मजाक?” चंदन जी ने उत्सुकता-वश पूछा।

“कुछ नहीं पापा! यह मेरे और मम्मा के बीच की बात है।” रीना ने स्पष्ट किया। तभी अमिता ममत्व -भरे स्वर में बोली…..

“अरे! रीना बेटा, ऐसा कुछ नहीं। तुम छोड़कर चली जाओगी, सो तुमसे बिछड़ने का दर्द सहा नहीं जा रहा।”

“मेरी प्यारी-मम्मा!” कह कर रीना गले लग जाती हैं।इस तरह—–पहले प्यार के कटु अनुभव को ममता के आवरण से ढकने की कोशिश में अमिता फिर कामयाब रही।

✍स्व रचित व मौलिक

शकुंतला अग्रवाल शकुन 

भीलवाड़ा राज.

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