दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है -संगीता अग्रवाल Moral stories in hindi

सिया क्या कर रही हो ये …नीचे मम्मी जी आवाज दे रही हैं तुम्हे सुना नही ?” प्रेरणा अपनी देवरानी के कमरे में आ बोली।

” वो ….भाभी कुछ नही ..मैने ध्यान नही दिया मम्मी जी की आवाज पर ..!” सिया अपनी हरकत पर झेंपते हुए बोली और बाहर की तरफ जाने लगी।

” रुको सिया बैठो यहां !” प्रेरणा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे बैठाते हुए कहा।

” पर भाभी वो मम्मी जी !!” सिया प्रेरणा से नजर चुराते हुए बोली।

” मम्मीजी का काम मैं कर आई थी …तुम बताओ क्यों अपने आप को सजा दे रही हो ऐसे…!” प्रेरणा सिया की ठुड्ढी पकड़ उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए बोली।

असल में सिया जिसकी शादी चार साल पहले हुई थी वो दो बार अपना अजन्मा बच्चा खो चुकी थी और अब डॉक्टर ने बोला कोई चमत्कार ही इन्हे मां बना सकता है। सिया सबके सामने तो अपना दुख जाहिर नही करती पर अकेले में कभी रोती है कभी अपने पेट पर तकिया बांध शीशे में खुद को गर्भवती महसूस करती है और फिर खुद ही तकिया गिरा रोती है। हालाकि घर में सिया का बहुत ध्यान रखते है सब प्रेरणा तो उसका बड़ी बहन की तरह ख्याल रखती है प्रेरणा के बच्चों के साथ भी सिया काफी अच्छा महसूस करती है पर फिर भी अपने पति राघव के सामने या अकेले में वो टूट ही जाती है।आज भी वो तकिया बांधे शीशे में खुद को निहार रही थी कि प्रेरणा आ गई।

” भाभी ये सब मेरे साथ ही क्यों हुआ मैं कैसी औरत हूं जो अपने पति को पिता का सुख नहीं दे सकती !” ये बोल सिया रोने लगी।

” पगली तू अकेली नहीं बहुत सी ऐसी औरते हैं और तू चिंता मत कर कोई चमत्कार जरूर होगा और तू मां भी बनेगी समझी अब जी छोटा मत कर चल तुझे थोड़ा घुमा लाती हूं तुझे अच्छा लगेगा !” प्रेरणा बोली।

थोड़ी आनाकानी के बाद सिया तैयार हो गई दोनो घूम कर आई तो सिया थोड़ा बेहतर थी।

” सुनो सिया की हालत देखते हुए मैने एक निर्णय लिया है अगर आप साथ दे तो ?” रात को प्रेरणा अपने पति रितेश से बोली।

” ऐसा क्या निर्णय लिया है पहले पता तो लगे!” रितेश बोला।

” मैं सिया के लिए एक बच्चे को जन्म देना चाहती हूं मम्मी जी अनाथाश्रम से बच्चा लाने के हक में नही और बिना बच्चे के सिया एक दिन पागल हो जायेगी। इसलिए मैं एक बच्चा उसकी गोद में डालना चाहती हूं !” प्रेरणा बोली।

” पर इस उम्र में …. जबकि हमारे खुद के बच्चे बड़े होने लगे है ये सही रहेगा ?” रितेश ने कुछ सोचते हुए पूछा।

” हम एहतियात बरतेंगे तो सब ठीक होगा बस आप हां कर दो क्योंकि मुझसे सिया का दर्द नही देखा जाता !” प्रेरणा दुखी हो बोली।

” जब तुम इतना नेक काम करना चाहती हो तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं  तुम एक बहू पत्नी भाभी और मां के रिश्ते में तो बेस्ट थी ही जेठानी का रिश्ता भी बाखूबी निभा रही हो !” रितेश पत्नी को गले लगा कर बोला।

उसके बाद शुरू हुई उनकी कोशिश क्योंकि प्रेरणा की छोटी बेटी दस साल की थी तो उनकी कोशिश में वक्त लगा तब तक सिया की हालत और खराब होने लगी अब वो अकेले में घंटो बैठी रहती।

” सिया तुम्हे मेरे साथ डॉक्टर के चलना है मेरी तबीयत ठीक नहीं और हां वहां कुछ नही बोलना जो बोलना या पूछना घर आकर !” प्रेरणा ने एक दिन सिया से कहा।

सिया हैरान हो प्रेरणा को देखती रही बोली कुछ नहीं !

” आपका नाम ?” रिसेप्शन पर स्लिप बनवाते हुए पूछा गया।

” सिया राघव वर्मा!” प्रेरणा बोली तो सिया आंखे फाड़ देखने लगी पर बोली कुछ नहीं।

” हां तो मिसेज सिया आपके लिए खुशखबरी है आप मां बनने वाली हैं!” डॉक्टर ने चेकअप बाद कहा ये शब्द सुन सिया की आंख भर आई क्योंकि वो तो इन शब्दों को सुनने को तरस रही थी अगले पल वो निराश भी हो गई क्योंकि मां प्रेरणा बनने वाली थी सिया खुद नही। खैर दोनो देवरानी जेठानी घर आ गई।

” मांजी आपको पता है आप दादी बनने वाली हैं और मैं बड़ी मम्मी !” घर आ रहस्यमई मुस्कान के साथ सिया को देखते हुए प्रेरणा बोली।

” क्या ….सच में !” प्रेरणा की सास निर्मला जी हैरानी और खुशी के मिले जुले भाव ले बोली।

” भाभी क्यों मेरे जज्बातों से खेल रही हैं आप या फिर मेरा मजाक उड़ा रही हैं !” सिया अब चुप न रह पाई और रोते हुए बोल पड़ी।

” सिया मैं ना तो मजाक उड़ा रही तुम्हारा ना जज्बातों से खेल रही मैने इस बच्चे को तुम्हारे लिए ही जन्म देने का फैसला किया है इसलिए तुम्हारा नाम ही आएगा इस बच्चे के साथ !” प्रेरणा ने मानो धमाका किया।

” क्या …!!” घर के सभी सदस्य चौंक पड़े।

प्रेरणा ने सबको अपना फैसला बताया साथ ही ये भी की रितेश उसके साथ है बाकी घर वालो के साथ की उम्मीद करती हैं वो। सब घर वाले प्रेरणा के त्याग से नतमस्तक हो गए । सिया तो खुशी की अधिकता में प्रेरणा से लिपट कर रो दी। राघव ने भाभी के आगे हाथ जोड़ दिए। और निर्मला जी …वो तो ये देख खुश थी की उनके घर के बहुएं एक दूसरे की खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकती है  वरना आजकल तो देवरानी जेठानी की लड़ाई के किस्से ही सुनने को मिलते है।

सिया प्रेरणा का खूब ख्याल रखती प्रेरणा भी सिया के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिता उससे गर्भावस्था के एक एक अनुभव को बताती। हर बार डॉक्टर के वो सिया के साथ ही जाती जिससे सिया अपने बच्चे के बारे में हर बात जान सके और मातृत्व का अनुभव कर सके। अब सिया की उदासी , उसका अकेलापन तो मानो कही उड़नछू हो गया था वो अब खुश रहने लगी थी ।

” प्रेरणा अगले हफ्ते तुम्हारी गोद भराई होगी तुम अपने लिए नई साड़ी ले आना !” गर्भावस्था के सातवें महीने में निर्मला जी बोली।

” नही मांजी गोद भराई तो सिया की होगी आखिर मां भी तो वो बन रही है !” प्रेरणा बोली।

” पर बहु ऐसे कैसे आखिर बच्चे को तो तुम्ही जन्म दे रही हो !!” निर्मला जी हैरानी से बोली।

” मांजी मैं चाहती हूं सिया को एक पल को भी ये न लगे की वो मां नही बन रही बल्कि मैं चाहती हूं वो मातृत्व के हर एहसास को जिए इसलिए प्लीज आप गोद भराई सिया की करवाइए !” प्रेरणा बोली सिया आज अपनी जेठानी में एक भगवान देख रही थी जो उसकी खुशी के लिए ना केवल नौ महीने का कष्ट सह रही है बल्कि हर पल उसे ये एहसास भी करा रही है जैसे वो खुद मां बन रही हो। 

” बेटा मोहल्ले की औरतें क्या कहेंगी !” निर्मला जी बोली।

” मांजी आज नही तो कल उन्हे पता लगना ही है कि इस बच्चे की मां सिया है तो आज ही लग जाने दीजिए क्या फर्क पड़ता है !” प्रेरणा बोली तो निर्मला जी निरुत्तर हो गई।

प्रेरणा ने खुद से सिया को गोद भराई के लिए तैयार किया ..।

” भाभी मेरी कोई सगी बहन होती तो शायद वो भी मेरे लिए इतना त्याग ना करती जितना आप कर रही हो मैं तो आपके चरण भी धोकर पियूं वो भी कम होंगे !” सिया प्रेरणा के हाथ चूमते हुए नम आंखों से बोली।

” पगली मैं तेरी बहन ही तो हूं खून का रिश्ता ना सही दिल का रिश्ता तो है ना !” प्रेरणा ने ये बोल उसे गले लगा लिया।

गोद भराई का फंक्शन अच्छे से निमट गया सब सिया और प्रेरणा के रिश्ते को बहुत सम्मान से देख रहे थे। 

तय समय पर प्रेरणा ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। होश में आते ही प्रेरणा ने उस बच्चे को सिया की गोद में डाल दिया।

” बहु अस्पताल से डिस्चार्ज मिल रहा है घर चलो अब !” निर्मला जी बोली।

” मांजी मैं यहां से अपने मायके जाऊंगी सीधा !” प्रेरणा बोली

” क्या …..तुम्हें क्या लगता है हम तुम्हारी देखभाल नही करेंगे? पर दो बच्चों की बारी क्या हमने कोई कमी होने दी।” निर्मला जी हैरानी से बोली।

” मांजी बात को समझिए सिया की खुशी के लिए यही सही है वो बच्चे के करीब तभी आएगी अपने मातृत्व को तभी जी पाएगी जब मैं बच्चे से दूर रहूंगी वरना उसके मन में एक असुरक्षा की भावना रहेगी इसलिए मैने निर्णय लिया है मैं मायके जाऊंगी रितेश अपना ट्रांसफर करवा लेंगे फिर हम दूसरे शहर चले जायेंगे !” प्रेरणा बोली।

” भाभी आपने ऐसा सोचा भी कैसे की आपको घर से दूर करके मैं खुश रहूंगी …मेरे मन में कोई असुरक्षा की भावना नहीं है जो औरत अपनी देवरानी के लिए इतना बड़ा त्याग कर सकती है वो किसी के मन में क्या असुरक्षा की  भावना आने देगी …आपने मुझे मां बना मुझपर उपकार किया है अब मुझसे मेरी बहन ना छिनिए मुझे एक बच्चे को पालना तो आप ही सिखाएंगी ना इस बच्चे को हम दो माएं पालेंगी आप अपने घर से कहीं नही जायेंगी !” तभी वहां सिया आकर बोली और प्रेरणा के गले लग गई। प्रेरणा की आंखे भीग गई निर्मला जी दोनो बहुओं की बलैया लेने लगी। जब प्रेरणा को अस्पताल से छुट्टी मिली सिया उसे घर ले आई और उसका बहुत ख्याल रखती थी । बच्चा भी अब दो माओं के आँचल तले पलने लगा हालाँकि प्रेरणा उसे ज्यादा से ज्यादा समय सिया को देती थी यहाँ तक की उसने बच्चे को दूध की बोतल भी लगानी चाही पर सिया ने उसे यही कहा की बच्चे से उसका हक मत छिनिये । 

दोस्तों देवरानी जेठानी का प्यार आज के समय में कही खो गया है पर मेरी नज़र में ये बहुत प्यारा रिश्ता है बशर्ते दोनो तरफ से निभाया जाए। ये एक सच्ची कहानी है आज वो बच्चा बड़ा हो चुका है उसे अपनी असली मां का भी पता है पर फिर भी उसके मन में सिया और प्रेरणा दोनो के लिए बराबर सम्मान है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

3 thoughts on “दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है -संगीता अग्रवाल Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही ह्रदय स्पर्शी कहानी.. सत्य कथा है, तो इसके पात्रों को नमन है🙏🌹🙏

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