दिल का रिश्ता – भगवती सक्सेना गौड़

सामने अथाह जल समुद्र और लहरों का शोर और उसमे एक अधेड़ उम्र की रीमा एक कुर्सी पर बैठे हालात का जायजा ले रही थी, मोबाइल में न्यूज़ देखे जा रही थी। पूरे जीवन स्वयं को कर्म में झोंक दिया था, स्कूल में शिक्षक थी, फिर प्रिंसिपल बनी और एक महीने पहले ही रिटायर हुए। मन में आया बहुत हो गया, अब थोड़ा सैर सपाटा किया जाए और एक रिसोर्ट बुक करके मुम्बई से गोआ चली आई। बड़ा ही मनोरम दृश्य था जो दिल को और नैनो को सुकून पंहुचा रहा था, दो दिन मस्ती में गुजरे। अचानक तीसरे दिन हर कोई होटल में कोरोना और लॉक डाउन की बाते कर रहा था, समाचार खोला तो दंग रह गयी। सारे आने जाने के साधन भी बंद, खैर होटल के मालिक ने कहा,”चिंता न करे, हमारा परिवार भी यही है, आप बेफिक्र होकर यहां रहे।”

रिसोर्ट बिल्कुल समुद्र के किनारे था, इसलिए रीमा का अधिकतर समय वहीं किनारे ही बीतता था, उसे यूं लगने लगा जीवन का स्वर्णिम समय वो यहां बिता रही है, कॉलेज लाइफ और उस समय की कविताएं, दोस्त सब याद आ रहे थे, पहले बहुत कुछ लिखा करती थी, माहौल ने उसे लिखने को उकसा दिया, बस अंतर ये था, पहले कलम चलती थी, आज उंगलियां दौड़ रही थी।

इसी बीच उसे महसूस हुआ कोई दो आंखे उसे ध्यान से देख रही हैं, अनजान जगह थी इसलिए उसने ध्यान देना ठीक नही समझा। उसी दिन शाम को रिसोर्ट के बाहर कुर्सी में चाय और सागर की लहरों में खोई थी कि कोई बिल्कुल पास आकर पूछ बैठा, “शायद आप प्रेसीडेंसी कॉलेज की रीमा ही हैं।”

गहरी निगाहे डाल रीमा ने कहा, “हां जी, और और और उसको कंपकपी छूटने लगी, और शायद आप रमेश।”

कालेज की रोमांटिक जोड़ी सामने थी, जो हर प्रोग्राम में साथ रहती थी, अंतिम वर्ष तक दोनो दिनभर एक गीत गुनगुनाते थे, हम बने तुम बने एक दूजे के लिए। पर वो समय दूसरा था, दोनो को गाना पड़ा था…..वक्त ने किया क्या हसीन सितम, तुम रहे न तुम हम रहे न हम। आज लॉक डाउन ने दोनो को समुद्र के विराट जल स्थल में अकेले छोड़ दिया। अब उम्र की कोई सीमा नही रही, दो दिल एक हफ्ते तक जल में ही अधिकतर अनमोल क्षण में जीते रहे।

रमेश कोलकाता से आये थे, एक दिन सुबह आकर उन्होंने रीमा से कहा, ” सामान पैक कर लो, मेरा एक रिपोर्टर दोस्त कार लेकर मुम्बई जा रहा, तुमको मैं छोड़ दूंगा फिर देखता हूँ कैसे मैं कोलकाता जा पाता हूं।”

शब्द कुछ और बोल रहे थे, आंखे कुछ समझने को तैयार नही थी, फिर भी दोनो समय की नजाकत को पहचान कर मन ही मन गुनगुना उठे, जुदाई पे मेरी न आंसू बहाना अगर हो सके तो मुझे भूल जाना।

#दिल_का_रिश्ता

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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