दीपावली की रात – के कामेश्वरी

 चारु बेटा हमारी बात मान ले । हमने बहुत दुनिया देखी है। आज ही किरण आंटी एक रिश्ता लाई हैं कहती है कि लड़के वालों ने कहा है कि वे बच्चे के साथ तुम्हें स्वीकार करने के लिए तैयार हैं । 

सोच ऐसा रिश्ता कहाँ मिलेगा । 

चारु ने कहा— माँ मैं नौकरी करती हूँ और आप सब हैं मेरे साथ फिर मुझे दूसरी शादी करने की क्या ज़रूरत है  ? मैं अपने बेटे को आप सभी के सहयोग से पाल लूँगी आप फ़िक्र मत कीजिए । 

चारु फ़िक्र कैसे नहीं करेंगे ? सोच बेटा हमारी भी उम्र हो रही है ईश्वर से कब हम दोनों को बुलावा आ जाएगा मालूम नहीं है इसलिए हमें तुम्हारी फ़िक्र होती है । 

उनकी बातों को सुनकर भी अनसुना करते हुए चारु अपने कमरे में पहुँची।  जहाँ उसके पति राकेश बिस्तर पर पड़े हुए थे । 

राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा कि—  क्या बात है ? आज फिर तुम्हारे शादी की चर्चा हुई है क्या ? जिसके कारण तुम्हारा मूड ऑफ हो गया है ।

चारु राकेश के पास बिस्तर पर बैठ गई और उसका हाथ पकड़ कर रोने लगी । 

राकेश चुपचाप उसे रोते हुए देखता रहा । उसे मालूम है कि वह उसे चुप कराएगा तो वह फूटफूट कर रो देगी । उसे रोते हुए छोड़ दिया तो थोड़ी देर में वह अपने आप सँभल जाएगी । जैसे राकेश ने सोचा वैसे ही चारु ने आँसू पोंछते हुए कहा राकेश चाय पियोगे । उसने हाँ में सर हिलाया तो वह जल्दी से फ्रेश होकर रसोई में चाय बनाने के लिए चली गई थी । 

राकेश बीती बातों को याद करते हुए सोचने लगा था कि तब कैसा था जब मैं एकदम स्वस्थ था । 




राकेश बैंक में नौकरी करता था। चारु अपने माता-पिता के साथ उसकी बहन के घर के पास रहती थी ।  उसका बहन के घर आना जाना लगा रहता था । राकेश वहीं के ब्राँच में काम करता था । इसलिए वह भी लंच के समय बहन से मिलने जाता था । उसी समय उसने चारू को देखा था। लंबे से बाल थे रंग गोरा था हिरनी जैसी बड़ी बड़ी आँखें थीं वह सलवार सूट पहन कर भाभी कहते हुए अंदर आई थी । जैसे ही अंदर आई नए व्यक्ति को देख कर वापस जाने के लिए मुड़ी तो दीदी ने आवाज़ दी चारु आ जा यह मेरा भाई है । 

वह सकुचाते हुए बैठक में आई जहाँ मैं और दीदी बैठे हुए थे । दीदी के बुलाने पर दीदी के पास बैठ गई । राकेश को तो वह पहली ही नज़र में ही भा गई थी ।

 वह मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था । दीदी ने हम दोनों का एक दूसरे से परिचय कराते हुए कहा कि राकेश यह चारु है हमारे सामने के घर में रहती है एम एस सी कंप्यूटर साइंस में कर रही है ।चारु यह मेरा भाई राकेश है यहीं बैंक में नौकरी कर रहा है । दोनों ने एक-दूसरे को हेलो कहा । चारु पाँच मिनट के बाद चलती हूँ भाभी कहते हुए चली गई परंतु जाते जाते मेरा दिल भी ले गई थी ।अब तो राकेश जब तब दीदी के घर जाने लगा । समय के अंतराल में चारु के साथ उसकी अच्छी दोस्ती भी हो गई थी । 

दोनों ने एक-दूसरे को प्रपोज़ भी कर लिया परंतु उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि घर वालों को कैसे बताएँ इसलिए उन दोनों ने दीदी से मदद माँगी । दीदी बहुत खुश हो गई थी क्योंकि उसे चारु बहुत पसंद थी । उसने ही अपने माँ पापा से बात की और चारु के घर में भी उसने ही उन लोगों को बताया था । 

दोनों घरों में किसी को भी एतराज़ नहीं हुआ । एक तो दोनों बच्चे पढ़े लिखे थे साथ ही दोनों एक ही बिरादरी के भी थे। इसलिए बिना किसी बाधा के दोनों की शादी हो गई थी । चारु ने भी एम एस सी के बाद बी एड कर लिया और एक स्कूल में जॉइन हो गई थी । 

दो साल बाद चारु ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया था । परिवार के सदस्यों को तो जैसे खिलौना मिल गया था । चारु और राकेश नौकरी के लिए चले जाते थे तो दादी दादा दोनों मिलकर एक हेल्पर की सहायता से उसे सँभाल लेते थे । दिन बहुत ही अच्छे से गुजर रहे थे। 

राकेश और चारु ने अपने बच्चे धृव का जन्मदिन बहुत ही धूमधाम से मनाया। धृव के जन्मदिन के दूसरे ही दिन दीपावली थी । राकेश को दीपावली का त्योहार बहुत पसंद था । वह बहुत सारे फटाखे फोड़ता था। शादी के बाद से चारु भी उसका साथ देने लगी थी । 

उस साल भी..

तभी चारु चाय लेकर आई । 

चारु ने कहा कि— राकेश बालकनी में बैठेंगे क्या? राकेश के हाँ कहते ही वह बालकनी से व्हीलचेयर लेकर आई और राकेश को उसमें बिठाया और दोनों बालकनी में बैठकर चाय पीने लगे थे। 




राकेश पहले चेयर पर भी नहीं बैठ पाता था तो चारु उसे बेडशीट के साथ नीचे गिराकर खींचते हुए बालकनी में ले जाती थी । 

 राकेश ने बताया था कि— चारु आज ऑफिस से फ़ोन आया था और वे लोग तुम्हें ऑफिस में बुला रहे हैं। तुम एक बार जाकर सारे फॉरमॉलटीस पूरे कर लो फिर जब अपॉइंटमेंट लेटर देंगे तब ऑफिस में जॉइन हो जाना। 

और हाँ स्कूल में भी बता देना कि तुम नौकरी छोड़ रही हो । चारु ने कुछ नहीं कहा और राकेश को अंदर ले जाने के लिए उठी तो राकेश ने कहा चारु मैं थोड़ी देर यहीं बैठूँगा तुम अपना काम कर लो फिर अंदर चलूँगा । 

चारु उसे वहीं छोड़कर अंदर रसोई में खाना बनाने के लिए चली गई थी । 

राकेश वहीं बैठे बैठे फिर अपने यादों में खो गया था और उस रात को याद करने लगा जिसके बाद से उसकी ज़िंदगी ही बदल गई थी । 

हाँ तो दीपावली का त्योहार था । बहन का परिवार भी आया हुआ था। बच्चे मामा मामा कहते हुए पीछे पड़े थे । माँ ने लक्ष्मी पूजा की पूरी तैयारी कर ली थी।  मेरा छोटा सा बेटा भी पापा पापा की रट लगाए हुए मेरे आगे पीछे घूम रहा था कि मुझे भी फटाके फोड़ने हैं । 

हम सबने मिलकर लक्ष्मी पूजा की और सबने प्रसाद भी खा लिया था । अब फटाके फोड़ने की बारी थी जिसका सब बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे । 

उस दिन यहीं इसी बालकनी से जो फोर्थ फ़्लोर में है बेटे को गोद में लेकर  उसे रोशनी दिखा रहा था।  उसी समय नीचे थाउजेंड वाली लड़ी किसी ने जलाई थी और बेटा अचानक उसे देखने के लिए झुक गया था जिसके लिए मैं तैयार नहीं था और वह मेरे हाथ से छूट गया।  मैंने आव देखा न ताव सीधे उसे पकड़ने के लिए कूद गया । ईश्वर की कृपा से मैं पीठ के बल गिरा और मेरा बच्चा मेरे ऊपर आकर गिरा । उसे तो कोई खरोंच तक नहीं आई सिर्फ़ डर गया था और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा था । पीठ के बल गिरने के कारण मेरी रीढ़ की हड्डी को चोट लगी थी । 

बच्चे के रोने की आवाज़ और मेरे चिल्लाने की आवाज़ से घर के सब लोग नीचे पहुँच गए थे। इसी बीच फ़्लैट में रहने वाले लोग जो फटाके फोड़ने नीचे आए थे सब भाग कर आए बच्चे को उठाया और मुझे भी उठाने की कोशिश करने लगे परंतु मैं नहीं उठ पा रहा था । किसी ने एंबुलेंस को फ़ोन कर दिया था । एंबुलेंस के आते ही सबकी मदद से मुझे अस्पताल पहुँचाया गया था । 




डाक्टरों ने देखा और फिर मेरा आपरेशन किया गया । मुझे ऑलमोस्ट एक महीने तक अस्पताल में ही रहना पड़ गया था ।

 उस हादसे ने हमारी ज़िंदगी में उथल-पुथल मचा दी थी । मेरी नौकरी नहीं रही क्योंकि मैंने बिस्तर पकड़ लिया था । जबकि मेरे माता-पिता ,चारु तथा बच्चे की ज़िम्मेदारी मुझ पर ही थी लेकिन अब चारु ने ही पूरे घर को सँभाल लिया था ।

 मेरे माता-पिता, छोटा बच्चा और मैं अपाहिज पति हम सबको चारु ने बेझिझक होकर सँभालने का ज़िम्मा ले लिया था । मेरा वह खास ख़याल रखती थी । 

सुबह स्कूल जाने के पहले ही वह मेरा पूरा काम करके मुझे नाश्ता खिला देती थी । स्कूल से आकर फिर मेरा काम करके चाय पिलाकर थोड़ी देर मुझसे बातें करके फिर खाना बनाने जाती थी ।

 छुट्टियों में या शाम को बच्चा रूम में ही खेलता था और वह भी ज़्यादा समय यहीं बिताने का प्रयास करती थी ताकि मैं अपने आपको अकेला महसूस न करूँ । मुझे अकेला कभी नहीं छोड़ती थी । उसके मन में क्या चलता था मुझे नहीं मालूम पर मेरे सामने हमेशा वह हँस मुख रहती थी सारी बातें मुझे बताकर मेरा सलाह भी लेती थी । मुझे उदास नहीं होने देती थी। कुछ महीने ऐसे चला लेकिन मैंने सोचा यह कब तक ऐसा चलेगा । उसकी पूरी ज़िंदगी मेरी सेवा में बीत जाए यह मुझे मंज़ूर नहीं था। मैं उससे बहुत प्यार करता था लेकिन उसे इस तरह घुटते हुए भी नहीं देखना चाहता था ।

 इसलिए अपने माता-पिता और बहन से सलाह मशविरा करके एक दिन चारु को अपने पास बिठाया और इधर-उधर की बातें करते हुए धीरे से उससे कहा कि चारु तुम्हारे आगे बहुत बड़ी ज़िंदगी पड़ी है कब तक तुम मेरी सेवा करती रहोगी । मैं ठीक हो जाऊँगा यह गेरेंटी भी नहीं है।  इसलिए मैंने बहुत सोच विचार किया और इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि मैं तुम्हें तलाक़ दे देता हूँ तुम दूसरी शादी कर लो अगर तुम्हें लगता है कि बेटे के कारण कुछ प्रॉब्लम आऐँगी तो तुम उसे यहीं छोड़ दो । 

चारु जो अब तक सर झुकाए उसकी बातें सुन रही थी उसने सिर्फ़ आँखें उठाकर मेरी ओर देखा अगर मुझे आँखों को पढ़ना आता था तो उसमें बहुत सारे सवाल जवाब मिल सकते थे । 

वह बिना कुछ कहे वहाँ से उठकर चली गई थी । अपने घर के और स्कूल के काम करते जा रही थी । उसने घर में सबसे बात करना बंद कर दिया था। जब भी कोई सवाल पूछता था तो सिर्फ़ हाँ या ना में ही जवाब देने लगी थी । 




एक दिन जब वह सोने के लिए कमरे में आई तो राकेश ने कहा—  क्या सोचा है तुमने ?

उसने शायद जानबूझकर कहा—  किस बारे में । 

वही जो मैंने तुमसे पूछा था । 

क्या पूछा था तुमने ?

वही तलाक़ के बारे में अगर तुम चाहो तो? 

जी हाँ !!अगर तुम चाहो तो ? है ना मैं तो नहीं चाहती हूँ । 

मैंने कहा— पर चारु प्रॉक्टिकल होकर सोचो ऐसे कैसे तुम्हारी ज़िंदगी कटेगी ?

देखो पहाड़ सी ज़िंदगी है तुम्हारे सामने और तुम उसे मेरे लिए बर्बाद कर रही हो । 

उसने मेरी तरफ़ तीव्र गति से देखा और कहा— तुम्हारी जगह मैं होती तो तुम यही करते थे ना ?

फिर उसने कुछ नहीं कहा और वह चादर ओढ़कर सोने का नाटक करने लगी। मुझे मालूम था कि वह रो रही थी।  मैं यहाँ से ही महसूस कर सकता था । 

वह समझती नहीं है मेरी भी मजबूरी थी। मैं उसे इस तरह घुट घुट कर जीते हुए नहीं देखना चाहता था । 

दूसरे दिन सुबह बिना मुझे उठाए नहा धोकर कमरे से बाहर चली गई ।अपनी आदत के अनुसार उसने सब  मेरे काम मशीनी गति से कर दिया था और स्कूल चली गई थी । 

मुझे बहुत बुरा लगा उससे बिना बात किए मैं कभी नहीं रहा था । शाम को चाय पीते वक़्त मैंने कहा चारु सॉरी मुझे माफ़ कर दो ना अब कभी मैं तुम्हारे दिल को नहीं दुखाऊँगा।  प्लीज़ मुझसे बातें करना मत छोड़ना। राकेश ने चारु की आँखों में अपने लिए ढेर सारा प्यार देखा था इसलिए वह उसे दुखी नहीं करना चाहता था । उसने कहा आज मैं आपको माफ कर देती हूँ परंतु वादा कीजिए कि आज के बाद कभी भी इस बात का ज़िक्र मेरे सामने नहीं करेंगे । मैंने कहा वादा रहा!!अभी दोनों में साथ जीने मरने की क़समें खाई जा रही थी कि धृव दौड़ कर आया और दादी कहा था तो हम दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो माता-पिता दोनों द्वार पर दोनों हाथों को जोड़कर खड़े थे और कह रहे थे कि हमें भी माफ कर दे बहू । जब तुम्हें अपने ऊपर विश्वास है तो हम तुम्हारा साथ कैसे छोड़ देंगे । चारु ने दोनों का हाथ पकड़ा और कहा आप क्यों माफी माँग रहे हैं । आप बड़े हैं मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए और कुछ नहीं । 




उसके बाद राकेश ने या उसके माता-पिता ने कभी भी चारु से इस बात का ज़िक्र नहीं किया । हम दोनों ने इस उम्मीद के सहारे अपनी ज़िंदगी को हँसते हुए गुज़ारने की सोची कि वह सुबह कभी तो आएगी । चारु भी कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार थीं। संघर्ष करना चाहती थी । अभी तो वे दोनों एक-दूसरे का सहारा बनते हुए वे आगे बढ़ रहे थे । 

दोस्तों हादसे तो होते हैं परंतु अपने जीवन साथी को छोड़कर नहीं जा सकते हैं ना। एक दूसरे का साथ देते हुए हिम्मत रखेंगे तो मंज़िल ज़रूर मिल जाएगी । 

स्वरचित

के कामेश्वरी

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