दत्तक माँ -नीरजा कृष्णा

अपने पति चंदन जी की अचानक मृत्यु के बाद वो बहुत शॉक में थीं। एकमात्र बेटी दूर विदेश में थी…बराबर आने की कोशिश कर रही थी…रोज़ सुबह शाम वीडियो कॉल करके हिम्मत बँधाती रहती थी…एक दिन उसे अचानक पंडित जी की बेटी अंजलि की याद आ गई।  वो फोन पर ही पूछ बैठी,”मम्मी, वो अपने पंडित जी की बेटी अंजलि कहाँ है? उसको शाम को अपने पास रखिए ना। अभी तो चाचा चाचीजी हैं पर कुछ दिनों में वो भी चले जाएंगे। तब आपके पास कौन रहेगा?”

चिन्तित तो स्वयं भी थीं पर सामने से बोलीं,”तू चिंता मत कर। और लोग तो है…पास पड़ोस के लोग भी ध्यान रखते हैं। फिर कोई ना कोई प्रबंध तो हो ही जाएगा।”

इसे दैवी संयोग ही कहिए…अचानक कॉलबेल बजी। सामने वो प्यारी सी अंजली खड़ी थी…दौड़ कर गले लग गई और  भरे गले से बोली,”आंटी, इतनी बड़ी बात हो गई… मुझे दूसरों से खबर मिली।अपनी गोद ली हुई बेटी को इतना पराया कर दिया”

वो प्यार से उसका सिर सहलाती रहीं और वो सुबकती रही। वो बहुत धीरे से कमजोर आवाज में बोलीं,”पंडित जी उस दिन ज़रा सी बात पर जो इस घर से निकले…फिर उलट कर नही देखा। हमारी भी हिम्मत नहीं हुई।”

अंजली तड़प कर बोली,”सारी गलती मेरी है। किस तरह मणि दीदी के जाने के बाद आपने और अंकल ने मुझे बेटी मान लिया था। मेरी पूरी पढ़ाई लिखाई का जिम्मा ले लिया था…मैं ही नमकहराम निकली।”



उन्होनें उसके मुँह पर हाथ रख दिया और बोली,”वाह तू तो बातें भी बहुत बड़ी बड़ी बनाने लग गई है…चल पहले चाय शाय पी और जी हल्का कर।”

उसने किसी को नहीं उठने दिया। किचन की ओर दौड़ गई… ट्रे में चाय बिस्किट लेकर आ गई।  जूठे कप प्लेट उठाने चाचीजी उठी ही थी…वो लपक कर उठी और सब बर्तन समेटने लगी। सब चौंक पड़े थे…अरे पंडित जी की बेटी जूठे बर्तन उठाऐगी.. वो और चाची दोनों एक साथ कह उठी,”अरे क्या कर रही है…हमें पाप का भागी बना रही है…पंडित जी की बेटी से जूठे बर्तन छुआना भी महापाप है।”

वो जोर से हँसते हुए बोली,”ये किस ज़माने की बात लेकर बैठ गई… पंडित जी की बेटी ना सही… एक बेटी तो सब कर सकती है ना। आप मुझे अपनी दत्तक पुत्री कहा करती थी। आज से आप मेरी गोद ली हुई माँ हैं…मणि दीदी के आने तक मैं यहीं रहूँगी।”

वो उसे गले लगा कर फफक पड़ी।

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