डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -98)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

“हां जया ! “,

जया को यूं बोलते देख अनुराधा की भी हिम्मत बढ़ गई,

” नैना ने हमारी भी बहुत मदद की है। विनोद ने कहीं एक छोटा सा फ्लैट देख रखा था। अब इसके थोड़े से हेल्प से इस महानगर में तुम्हारे भतीजे के सिर पर भी एक स्थाई छत हो गई है। “

” यों यह हम पर नैना का कर्ज है, जिसे हम धीरे-धीरे चुका देंगे लेकिन अभी जरुरत के वक्त तो … डूबते को तिनके का सहारा भी बहुत है “

नैना मुस्कुराई…

” कैसी बात करती हो अनुराधा ? यह मेरी तरफ से मेरे भतीजे का न्योछावर है “

मन ही मन … ,

” इस छोटे ने ही तो मुझे ममत्व का पहला पाठ पढ़ाया है “

उसे बीच में ही रोक कर ,

” नैना , हिमांशु की कोई खबर ?”

” अपने नये बिजनेस में उलझा है ” उसने बहुत सफाई से पिछले दिनों हिमांशु के अपने यहां आने और रुकने की बात छिपा ली।

“अब मैं भगवान् से तुम्हारे लिए एक ही चीज मांगती हूं। तुम्हारी खुशी

तुम्हें हम सबने ज़िम्मेदारी और परिवार की खुशी के लिए होम होते देखा है

कुछ देर रुक कर थरथराती हुई ,

” जिस दिन तुम्हारा ब्याह होगा मुझे उसी दिन चैन मिलेगा “

नैना अचकचा गई ,

” दीदी , तुम मुझे बचपन से कहानी सुनाती आई हो और अब भी मुझे मनाने में लगी हो “

” हां क्योंकि अब मैं देख रही हूं

तुम उसी कहानी वाली राजकुमारी की तरह अब भी रोती और मेहनत करती चली जा रही हो और लोग मोती चुनने में लगे हुए हैं  “

” ऐसा नहीं बोलते दी “

नैना ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया।

” मैं ने पिता और मां दोनों को सिर्फ दो जोड़ी कपड़ों के साथ जीवन जीते देखा है,

मुझे याद है…जब वे हमारे लिए सिर्फ भात और सब्जी खा कर उठ जाते ताकि हमें चावल के साथ दाल और सब्जी दोनों खाने को मिले “

यह सही है कि आज उसके सामने वैभव का विपुल संसार फैला है।

तो क्या वो अपने इस तृषित अतीत को भूल जाएं ?

कुछ क्षण वह खुद में ही डूब गई थी उसे समझ में नहीं आ रहा है,

” जिंदगी वापस ढ़र्रे पर है या ढ़र्रे से उतर रही है”

हिमांशु!  जिसके लिए वह स्वंय टूट कर समर्पित हो गई,

आजकल कुछ असंयत सा रहने लगा है। मैं भी काम में मन लगाने की कोशिश करती हूं पर सब कुछ अस्त- व्यस्त सा होता जा रहा है।

फिर भी नौर्मल बनी रहने के लिए सदा तत्पर रहती हूं।

…उसे हर वक्त कुछ पैसे चाहिए होते हैं।  उस दिन वह परेशान सा था मेरी आमदनी अच्छी खासी हो रही थी।

मैं उसकी मदद करने मे सक्षम हूं।

माया ने उसकी जिम्मेदारी मुझको सौंपी है।

एक दिन वह घर आया था। 

मैं नये नाटक के सफल मंचन के बाद घर लौटी थकी हुई बैठी थी। उसे देख कर प्रसन्न थी।

सोचा, उसे घर में सबकी रजामंद होने की ख़बर सुनाकर चौंका दूंगी  …

लेकिन उसके मुंह के कड़वेपन को लक्ष्य कर चुप रह गई।

तब आखिर उसकी इस भाव- भंगिमा के पीछे का कारण ढूंढ़ने में असमर्थ नैना के मन का रंग गहरा गया।

वह वहीं पास में रखी कंघा अपने बालों में धीरे-धीरे घुमाने लगी।

अब से पहले हिमांशु के मानसिक तनाव का कारण उसके पिता एवं मां के टूटे रिश्ते के को माना जा सकता है। 

लेकिन अब तो उन्हें गुजरे हुए भी कुछ दिन गुजर चुके हैं।

इन दिनों उसकी फिर से इस स्थिति के पीछे कारण क्या है ? या हो सकता है ?

उसने नये सिरे से विश्लेषित करते हुए सोचा,

” क्या मेरी व्यवसायिक जिंदगी में शोभित का अपेक्षाकृत ज्यादा हस्तक्षेप करना ?

या आर्थिक  स्तर पर मेरी तुलना में उसकी आर्थिक स्थिति स्थिर नहीं रहना है “

फिर भी उसने दिल पर पत्थर रख कर  ,

” हिमांशु, तुम अपने बिजनेस पार्टनर से मिले थे ?”

” बाद में पहले अभी मुझे कुछ पैसों का बंदोबस्त करना है “

” तुम्हें कितने पैसों की जरुरत है‌?

मुझसे कहो  मैं करूंगी इंतजाम लेकिन उसके बाद तुम … ? “

आगे कहती हुई चुप हो गई थी। आवेग में गला भर आया।

” हिमांशु तुम समझते क्यों नहीं हो ?

मुझे और माया को तुम्हारी चिंता है। उन्होंने तो कहा है अगर पैसों की जरुरत पड़ेगी तो वो अपने सारे एफ डी तुड़वा देगीं “

” हिमांशु , मैं किसी भी हाल में तुम्हें खुश और अपना बसता हुआ घर देखना चाहती हैं “

” माया? ,

अब यह माया बीच में कहां से आ गई  ?” विचित्र कचोट भरी थी स्वर में,

” उसके पैसे तो मैं हर्गिज नहीं छूऊंगा चाहे कुछ भी हो जाए “

आक्रोश में कह कर सिगरेट सुलगाई तो उसके हाथ कांप रहे थे।

मैं हैरान रह गई, भाई- बहन के संबंध इस कदर बिखर गए ?

फिर उठी और अलमारी से निकाल कर नोटों की गड्डी हिमांशु के जेब में डाल दिए।

उसके चेहरे पर पीड़ा भरी दुर्बलता के भाव पसरे थे।

मैं सोचने को मजबूर ,

” आज हमेशा से देने वाले हाथ लेने में कांप रहे हैं “

उस सारी रात नैना बहुत उदास रही थी।

यह उसके और हिमांशु के संबंधों की कैसी नियति है ?

वो जब थोड़ा आगे बढ़ने को होती है तो किस्मत पीछे खिसका कर ले जाती है।

आगे …

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