डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग 2)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

हम अक्सर शाम को मिलते और रास्तों पर अनवरत बातें करते हुए चलते रहते।

उन्हीं दिनों में एक दिन चलते हुए उसने अचानक रुक कर कहा —

आज तुम मेरे घर चलो ,घर पर कोई नहीं है सब मौसी के यहां शादी में गए हुए हैं। रात का खाना भी तुम मेरे यहां ही खा लेना और अगर दीदी वापस आ गई तो उनसे भी मिल लेना।

फिर मैं जाऊं या नहीं जाऊं ? इसी उधेड़बुन में उसके साथ उसके घर पहुंच गया।

तीन कमरा दो बाथरूम और रसोईघर वाले मध्यम साइज का आंगन वाला घर जिसके एक किनारे से ऊपर छत पर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं।

उसने मुझे दीवान पर बैठने को कह कर धीमी आवाज़ में टी वी पर आ रहे गाने का स्विच ऑन कर दिया और हाथ-मुंह धोकर कपड़े बदलने चली गई।

जल्दी ही वह छोटी बांह की फलसाई रंग की समीज और नीचे काले रंग की रेशमी प्लाजो पहनी हुई आ गई थी। गजब की प्यारी किसी बाग की अधखिली कली सी लग रही थी।  माथे और कान के पास के बाद थोड़े गीले बाल।

उसने अपने हाथ तौलिए से पोंछते  हुए मुझसे,

” तुम चाहो तो हाथ- मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ “

मैं बाथरूम की ओर बढ़ गया।

बाथरूम में साबुन की गंध के साथ उसकी देह गंध भी मिली हुई थी। उसी को सूंघता हुआ मैं चेहरे पर पानी के छींटें मार कर बाहर निकल गया।

नैना हंसती हुई तौलिया मेरी ओर बढ़ाई और बोली

”  अरे  तौलिया तो मेरे पास  ही रह गया “

मैं उसके बढ़े हुए हाथों में ही अपना  गीला चेहरा पोंछने लगा।

वो मीठी नजरों से मुझे देखती हुई ,

” चलो कमरे में चल कर बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं”

दीवान पर बैठ कर इधर- उधर नज़र घुमाते हुए कमरे की सज्जा देख रहा था। जो साधारण किस्म की थी। ‌सभी दीवारें गहरे हरे रंग से पुती हुई । मानों सालों से दुबारा पुते नहीं हैं

तभी खुले दरवाजे से उसकी दीदी ने कमरे में कदम रखा। मुझे देख कर दरवाजे पर उनके कदम एक मिनट के लिए ठिठके पर चेहरे पर कोई आश्चर्य नहीं था।

भावहीन चेहरा ,

 मैंने खड़े होकर उनकी ओर देखकर हाथ जोड़े,

मैं सुशोभित ,

” नैना को अपनी नये नाट्य संस्था में साथ रखना चाहता हूं “

मेरे जोड़े हुए हाथ देखकर उन्होंने मजबूरी में आंखों के इशारे से खुशी जताई और फिर दूसरी ओर रखे कुर्सी पर बैठ गई।

उसी समय नैना ट्रे में चाय के साथ कप ले कर आई। हम तीनों ने एक साथ चाय पी।  मैं जितनी देर वहां बैठा रहा मैं ही उनसे कुछ – कुछ बातें करता रहा जबकि वे सिर्फ हां-हूं से काम चलाती रहीं। और औपचारिकता वश भी मुझसे कुछ नहीं पूछा।

मुझे लगा कि वे जरूर नैना के साथ मेरी दोस्ती को जानती हैं पर उनके चेहरे पर ना क्रोध था और ना कठोरता।

बल्कि उनके व्यवहार में एक ठंडापन था।

जिसे छिपाने का वो बिल्कुल प्रयास नहीं कर रही थीं।

फिर उस दिन नैना ने मुझसे वहीं खाना खाने के लिए रुक जाने को कहा पर उसकी दीदी के हैरान कर देने वाले रवैये से  मैं वहां से लगभग भाग- छूटने की स्थिति में भाग कर चला आया था।

इसके बाद फिर लगभग एकाद- हफ्ते तक नैना से मुलाकात नहीं हुई थी।  न जाने क्यों मन ही मन इंतजार करते हुए भी उसके घर तक पुनः दोबारा जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था।  कहीं आश्वस्त था कि वह आएगी अवश्य …

क्या वह आई थी ?

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