चरित्र का प्रमाण पत्र – आरती झा आद्या

नहीं श्यामा तुम समझती क्यूं नहीं…हमारी शादी नहीं हो सकती है…राघव हॉस्पिटल के कैंटीन में बैठा डॉक्टर श्यामा से कहता है।

पार क्यूं डॉक्टर राघव…श्यामा को जब भी राघव की बात बुरी लगती वो उसे इसी तरह संबोधित करती।

ओह हो श्यामा… तुम नाराज मत हो प्लीज। मेरी मां के साथ नहीं रह सकोगी तुम और मैं उन्हें छोड़ नहीं सकूंगा..राघव श्यामा का हाथ अपने हाथ में लेकर कहता है।

राघव आज तुम्हें पूरी बात बतानी ही होगी। हर बार इतनी ही बात कहकर चल देते हो..खड़े होने के लिए राघव को तत्पर देख श्यामा कहती है।

पूरी बात जानने के बाद ना तुम और ना ही तुम्हारी फैमिली हमे स्वीकार करेगी…राघव श्यामा की ओर बिना देखे कहता है।

ओके इसका निर्णय तुम मुझ पर छोड़ दो… अपनी दोनों जिज्ञासु आँखें राघव के चेहरे पर टिकाए हुए ही श्यामा ने कहा।

ओह राघव तुमने मुझे इतना ही जाना है। मैं आंटी से मिलना चाहती हूं। कॉन्फ्रेंस के लिए मुझे मुंबई जाना ही है ना राघव तो मैं तुम्हारे घर ही रुकने वाली हूं, आंटी के साथ… नो कोई डिस्कशन नहीं..चलो अब मरीजों को भी देखा जाए…राघव ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही कि श्यामा ने उसे रोक दिया।

ठीक है जैसा तुम कहो। पर अकेले में फिर से सोचना.. इन सब वजहों से मम्मी चिड़चिड़ी हो गई हैं..राघव कह कर अपने सेक्शन की ओर बढ़ गया।

जब देखो ये दोनों बन ठन कर चल देती है..लता हाथ में मोबाइल लिए बालकनी में खड़ी होकर अपनी गॉसिप सहेली रमा से कह रही थी।

किसकी बात कर रही है, कौन दोनों…रमा ने पूछा।




अरे ये कुंती और पता नहीं कौन है ये लड़की… जब से आई है…दोनों बन संवर कर निकल जाती हैं…लता एक तरह से बालकनी में लटक कर दोनों को देख रही थी।

इसी के तो मजे हैं, जवानी से बुढ़ापा आ गया लेकिन बनाव श्रृंगार में कोई कमी नहीं आई… रमा हँसते हुए कहती है। 

हां…इसीलिए तो किसी से ज्यादा हेल मेल भी नहीं रखती कि कहीं सभी को इसके काले कारनामे दिख ना जाए। ऑफिस तो बहाना ही होगा…लता कहती हुई अपने कमरे में आकर बैठ गई।

पता चले कौन है वो लड़की तो बताना…रमा कहती हुई बात समाप्त कर गई।

अरे सुना तुमने..मेरी मेड बता रही थी कुंती के घर जो लड़की आई है ना वो राघव की गर्ल फ्रेंड है। शादी वादी की भी बात चल रही है…फिर से बालकनी में खड़ी हो लता रमा को ब्रेकिंग न्यूज से अवगत करा रही थी।

अरे मां तो मां बेटा भी चालू निकला। बिचारी बच्ची को सच्चाई मालूम ही नहीं होगी इसीलिए फंस गई बेचारी… रमा भी प्रतियुत्तर में कहती है।

कोई बात नहीं…मौका मिलते ही मैं बता दूंगी… लता के चेहरे पर टीवी पर चलने वाले धारावाहिकों की कुटिलाओं के चेहरे वाली मुस्कान मानो उस वक्त लता के चेहरे पर चिपक गई थी।

नई आई हो मोहल्ले में बेटा..पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हें… कॉन्फ्रेंस से लौटी श्यामा घर पर ताला लगा देख इधर उधर देख रही थी कि लता अचानक उसके सामने प्रकट हो पूछ बैठी।

जी वो.. 

लगता है कुंती घर पर नहीं है। जब तक वो आती है, आओ तुम हमारे घर चलो… लता प्रस्ताव देती है।




नहीं नहीं आंटी… आप परेशान ना हो…

परेशानी कैसी..आओ बेटा … श्यामा का हाथ पकड़ खींचती हुई लता अपने घर ले आई।

बताया नहीं तुमने… रिश्तेदार हो क्या…

नहीं आंटी…राघव की होने वाली पत्नी और कुंती आंटी की होने वाली बहू हूं मैं…

क्या… श्यामा की बात पर चाय का घूंट लता के गले में ही अटक गया।

तुम्हें कुंती के बारे में शायद कुछ पता नहीं है। माना राघव डॉक्टर है, पर इसका मतलब ये थोड़े ना है दूध में पड़ी मक्खी निगलो…लता चाय का कप टेबल पर रखती आवाज में हमदर्दी का पुट घोलती हुई कहती है।

मैं समझी नहीं आंटी… श्यामा पूर्णतया अनजान बनती हुई कहती है।

अरे कुंती दलदल है… श्यामा के बगल में बैठती फुसफुसाती हुई लता ने कहा।

जी मैं समझी नहीं…

वेश्या है कुंती… इसका कोई आशिक इसे यहां मकान खरीद छोड़ गया था। थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी थी तो स्कूल में पढ़ाने लगी और ये राघव कौन है, ये भी पता नहीं है किसी को। कौन है, कहां से उठा लाई …तुम्हारी भलाई के लिए कह रही हूं बेटा। यहां रिश्ता करना दलदल में धंसना ही है…चरित्र की बहुत बुरी है कुंती…चाय का अंतिम घूंट लेती हाथ चमकाती लता कहती है।

अच्छा आंटी फिर मिलते हैं…कहकर श्यामा खड़ी हो गई।

श्यामा और लता को एक साथ देख घर का ताला खोलती कुंती का चेहरा बुझ गया और चेहरे पर बेबसी स्पष्ट दृष्टिगोचर थी।

आंटी एक बात बता दूं…ये मेरी मां हैं और मुझे मेरी मां का चरित्र का प्रमाण पत्र किसी से नहीं चाहिए। ये जो भी रही हो इन्हें ये समझ आ गया जिंदगी कैसे जीनी है और आपको अभी तक समझ नहीं आया। चरित्र का अर्थ सिर्फ शरीर नहीं होता है आंटी। ये जो आप गॉसिप करती हैं ना…दूसरों का घर तोड़ती हैं ना..झूठ सच फैलाती हैं ना..ये भी चरित्र ही है। इन सारे गुणों के कारण आपके चरित्र प्रमाण पत्र में माइनस मार्किंग होगी आंटी। इसीलिए दूसरों को छोड़ अपने को सुधारिए…चलिए मां और हां आंटी जिन्हें आप आशिक समझ रही हैं ना वो इनके राखीबंद भाई हैं…दुनिया में आज भी अच्छे लोगों की कमी नहीं है आंटी… श्यामा लता को उसके काले कारनामों का दर्पण दिखा हतप्रभ सी अवस्था में छोड़ दरवाजा खोल कुंती के साथ घर के अंदर आ गई।




जी मां…मुझे राघव ने सब कुछ बता दिया है। किसी बात से मुझे रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता है। आपकी जुझारु प्रवृत्ति मेरी और राघव की अमानत है मां… घर में घुसते ही कुंती की आँखों में सवालों के कई बादल मंडराते देख श्यामा ने कुंती का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कह। 

और कुंती अपनी होने वाली बहू की सुलझी मानसिकता को देख गर्व से अभिभूत भविष्य के प्रति आश्वस्त हो गई।

#बहु 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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