” सक्षम बहू ” – सीमा वर्मा

तब हमारे पतिदेव का नया- नया तबादला दिल्ली शहर में  हुआ था।

मैं इसे संयोग ही कहूंगी,  रेंट पर रहने के लिए मकान ढूंढ़ती हुई मैं मोहिनी के नगर-मुहल्ले वाली कालॅनी में जा पहुंची थी।

जहां एक छोटे से घर के दालान पर खड़ी हुई उस मोहक सूरत और बड़े दिलवाली, फर्राटे से खड़ी बोली और अंग्रेजी पर समान अधिकार रखने वाली उस घर की घूंघट ताने बड़ी बहू से अनायास ही मुलाकात हो गई थी।

सिर पर लाल रंग की चुनरी जैसी दुपट्टे के एक बित्ते के घूंघट के अंदर से उसकी आत्मविश्वास से चमक रही आंखें देख कर मैं पूछ बैठी ,

” एक्सक्यूज़ मी ! इधर कोई फ्लैट किराए पर्पस से खाली होगा  ?

” फाॅर व्हाट रीजन , मैड्डम जी … ” उसकी मीठी चुलबुली आवाज सुनकर मैं चकित हो उठी “

तब थोड़ा रुक कर या यों कहें उसे अच्छी तरह जांच- परख कर मैं ने अपनी समस्या उसे कह सुनाई थी।

” ये … लो … जी… मैड्डम जी… ! चलो अभी देखती हूं “

कह कर मेरे साथ गली के उस पार बने मकान के जीने पर जा खड़ी हुई थी।

फिर उसके सौजन्य से ही मुझे यह घर मिल पाया जहां आज मैं यह रह रही हूं। बाद के दिनों में तो हम दोनों बहुत अच्छे मित्र बन चुके थे।

तब एक दिन अपने संकोच त्याग मैं ने उससे उसके घुंघटे के राज पूछ लिए।




” हम्म … दीदी ये तो गहरे राज की बातें हैं। जिसे आज सुन ही लो ” 

कहती हुई खिलखिला पड़ी।

— ‘ मोहिनी ‘

यह तो उसके बाहर का नाम था। घर में सब उसे प्यार से ‘ माहि’ बुलाते।

माहि दिल्ली के ही किसी मुहल्ले में जन्मी एवं दिल्ली के ही किसी नगर मुहल्ले के परम्परागत परिवार की बहू बनी थी।

जहां के लिए यह पढ़ी- लिखी सुशिक्षित बहू , सुन्दरता से अधिक अपनी शिक्षा के लिए कौतूहल का विषय थी।

काफी लोग रिवाज के चलते, पर काफी सारे तो महज उत्सुकता वश आए थे ,

” देखें तो जरा कुटुम्ब की पढ़ी- लिखी  बहू कैसी है , कितनी समझदार है , पढ़ी- लिखी तो बहुत है क्या दिखती भी हम जैसी है ? ,

” बातचीत कैसी  करती है। हम तो अंग्रेजी समझते भी नहीं हैं  तो उससे बतिया कैसे पाएंगे ? “

ऐसी जिज्ञासा और चिंता लिए आसपास की कितनी बहुएं मोहिनी का इंतजार कर रही थीं।




और तो और पड़ोस के बाबू साहब की बहू नीलिमा , जो कि मुश्किल से अपना नाम  लिख पाती थी।

ने पहली मुलाकात में ही ,

” भाभी, मैं ने सुना है। आपने खूब अच्छी पढ़ाई की है । फिर तो किताबों से नहीं डरती होगीं । मैं ने सुना है आप अंग्रेजी भी बोल लेती हो ,

मैं … मतलब मेरे तो  हाथ- पांव इसके नाम से ही फूल जाते हैं “

तभी कमरे में मोहिनी की रोबीली सासु मां ने प्रवेश किया था। नीलिमा की सांसें थम गई थीं।

मोहिनी की सासु मां मजबूत कद-काठी की एक दबंग महिला थीं। मुहल्ले में उनके खासे रोबदाब थे।

परिवार में ‌‌‌‌‌भी सही और ग़लत का फैसला करने का अधिकार सिर्फ उन्हीं को था।

मोहिनी के साथ उनका आरंभिक व्यवहार बेहद संतुलित था।

कमरे में प्रवेश करते ही  ,

” क्यों री  , मेरी नयी बहू को परेशान कर रही है

चलो आराम करने दो उसे “

यह बोलने से एक क्षण को मोहिनी और नीलिमा दोनों घबड़ा गयीं।




” और हां मोहिनी , तुम भी सुन लो इनको बदलने से ज्यादा आसान होगा तुम्हें खुद को बदल लेना  ” उन्होंने शायद उन दोनों की बातचीत सुन ली थी।

मोहिनी उनके इस अप्रत्याशित व्यवहार से अकचका गई थी।

फिर भी बिना डरे और घबराए  हुई मोहिनी ने

अपने नर्म – मुलायम हाथ से नीलिमा को थपथपाते हुए घूंघट के अंदर से ही आश्वस्त करने वाली निगाहों से ताका और मधुर आवाज में ,

” अभी आप जाओ सखी!  हम फिर मिलेंगे “

उसके मन में न जाने कितने तरह के भाव- विचार आ रहे थे।

आने वाला वक्त मोहिनी पर कैसा बीतने वाला था। यह तो ईश्वर के हाथों में था। लेकिन फिर भी मोहिनी ने अपने धैर्य नहीं खोए।

फिर धीरे- धीरे समय की रफ्तार के साथ चलती हुई मोहिनी ने अपनी उत्तम शिक्षा एवं संस्कारों के बल पर घर में सबके दिलों को जीतती हुई  चिरपुरातन एवं नूतन  में सामंजस्य को बिठाते हुए अपने एवं बच्चों के भविष्य को सुधारने में लग गई थी।

एक ओर जहां उसने घर के अंदर परिवार के मान की मर्यादा रखती हुई घूंघट को खुले दिल से स्वीकार कर लिया।

वहीं दूसरी तरफ अपनी सारी ऑनलाइन गतिविधियों को जारी रखती हुई वह पति के साथ कदम से कदम मिलाकर कर खड़े रहने की हिम्मत कर पाती है।

मैं अक्सर अपने घर की बालकॅनी से  उसके इस दोहरे आकर्षक व्यक्तित्व को देखती और सराहती हुई नहीं थकती हूं।

# ‘बहू ‘ आधारित

#शीर्षक ” सक्षम बहू ” 

सीमा वर्मा/ नोएडा

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